- कांग्रेस का दोनों सीटों पर प्रदर्शन काफी बुरा रहा है, और साफ है कि कन्हैया कुमार पूरी तरह से बेअसर रहे हैं।
- तेजस्वी यादव को अब नए सिरे से रणनीति पर विचार करना होगा, क्योंकि 6 साल बाद लालू प्रसाद यादव की वापसी भी कमाल नहीं दिखा पाई ।
- महागठबंधन में कांग्रेस का क्या भविष्य होगा, उस पर भी इन चुनावों का असर दिखेगा।
नई दिल्ली: 13 राज्यों के उप चुनावों में सबसे ज्यादा अगर कहीं नजर थी, तो वह बिहार पर थी। लालू प्रसाद यादव और तेजस्वी यादव ने तारापुर और कुशेश्वरस्थान पर सीटों के फैसले को बिहार की सरकार के भविष्य से जोड़ दिया था। राजद तो यह दावा करने लगी थी, 2 नवंबर के बाद नीतीश सरकार गिर जाएगी। लेकिन नतीजों ने पासा पलट दिया है और अब लालू की जगह नीतीश कुमार गरज रहे हैं। उन्होंने कहा लोकतंत्र में जनता ही सब कुछ है और उसने जनादेश सुना दिया है। उन्होंने यह भी कहा फैसला जनता सुनाती है, परिवार नहीं।
दोनों सीटों पर हारी राजद
मतगणना के शुरूआती रूझान में ऐसा लग रहा था कि राजद, जद (यू) को बड़ा झटका दे सकती है। लेकिन दोपहर आते-आते यह लगने लगा कि दोनों दल एक-एक सीट पर कब्जा करेंगे। और अगर ऐसा भी हो जाता तो तेजस्वी यादव को नीतीश कुमार पर हमला करने का मौका मिल जाता। लेकिन अंतिम परिणाम तेजस्वी की उम्मीदों के विपरीत रहे और उनकी पार्टी को दोनों सीटों पर हार का सामना करना पड़ा। कुशेश्वरस्थान पर जद (यू) ने 12695 मतों से तो तारापुर में 3852 मतों से जीत हासिल की है। हार से मायूस तेजस्वी ने बस इतना कहा कि वह जनता के फैसले का सम्मान करते हैं।
तेजस्वी लगा रहे थे ये गणित
बिहार विधान सभा में बहुमत के लिए 122 सीटों की जरूरत है। और नीतीश कुमार (Nitish Kymar) के नेतृत्व वाले एनडीए के पास चुनावों से पहले 126 सीटें थी। इसमें बीजेपी को 74, जनता दल (यूनाइटेड) को 41, हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा (HAM) को 4, विकासशली इंसान पार्टी को 4 सीटें है। इसके अलावा चुनाव बाद एलजेपी, बसपा और एक निर्दलीय विधायक जेडी (यू) के साथ है। जनता दल (यू) को नवंबर 2020 में हुए चुनावों में 43 सीटें मिली थी। लेकिन तारापुर, कुशेश्वरस्थान के 2 जेडीयू विधायकों की मौत की वजह से उसकी संख्या 41 रह गई थी आरजेडी को यही से उम्मीद की किरण दिख रही थी। क्योंकि उसे लगता था कि उप चुनावों में दोनों सीटें जीतने के बाद उसकी संख्या 75 से बढ़कर 77 हो जाएगी। और वह नीतीश पर जनता का भरोसा कम दिखा कर हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा और विकासशील इंसान पार्टी को अपने पाल में कर एनडीए में सेंध लगा सकेंगे।
कन्हैया का नहीं दिखा असर
इन चुनावों में कांग्रेस ने भी बड़ा दांव कन्हैया कुमार पर लगाया था। उसे उम्मीद थी की जेएनयू के पूर्व अध्यक्ष और युवा नेता कन्हैया कुमार, मतदाताओं में जोश भरेंगे। उनका साथ देने हार्दिक पटेल भी पहुंचे थे। इस चक्कर में पार्टी ने राजद की नाराजगी मोल लेते हुए दोनों सीटों पर अपने उम्मीदवार खड़े किए। लेकिन परिणामों से साफ है कि राजद का आंकलन सही था। क्योंकि कुशेश्वरस्थान पर कांग्रेस को केवल 5602 वोट मिले, जबकि तारापुर में 3506 वोट मिले। साफ है कि कांग्रेस का अलग से चुनाव लड़ने और कन्हैया के मैजिक का दांव बेकार चला गया। और दोनों सीटों पर उसकी जमानत जब्त हो गई।
महागठबंधन होगा कमजोर
नतीजों से साफ है कि महागठबंधन के लिए आगे की राह आसान नहीं है। क्योंकि चुनाव से पहले ही उसमें दरार पड़ गई थी। और कांग्रेस ने अलग चुनाव लड़ने का फैसला किया था। जिसके बाद से दोनों दलों के बीच तल्खी इतनी बढ़ गई कि लालू प्रसाद यादव ने भी तीखा हमला कर दिया। ऐसे में लगता है कि अब नतीजों के बाद कांग्रेस का हाल देखते हुए, महागठबंधन में उसका बने रहना मुश्किल होगा। इसके अलावा महागठबंधन में कम्युनिस्ट पार्टियां भी शामिल हैं। ऐसे में उसके भविष्य पर भी सवाल खड़े होगे। इसके साथ ही इन चुनावों ने एक बार फिर जद (यू) के सीटों की संख्या 43 कर दी है। साथ ही बीच-बीच में भाजपा के बहाने हमला करने वाले विकासशील इंसान पार्टी के मुकेश सहनी और हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा के जीतन राम मांझी को भी नीतीश के सहारे रहना होगा। जिसका पूरा फायदा बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को मिलने वाला है।