- एएमयू में छात्र संघ का नेता होने के दौरान मशकूर पर जिन्ना की तस्वीर को कमरे में लगाने का लगा था आरोप
- कांग्रेस ने दरभंगा की जाले विधान सभा सीट से मशकूर अहमद उस्मानी को टिकट दिया
- राजनीति में अब दागी नेताओं और बवाली चेहरा का ही बोलबाला है
पटना: बिहार चुनाव में धीरे-धीरे सभी पार्टियां अपने पत्ते खोल रही हैं। इसमें से कांग्रेस एक ऐसी पार्टी है, जो पहली बार कई नए चेहरों को अपना उम्मीदवार बना रही है। बिहार में नया बवाल इस वक्त मशकूर अहमद को कांग्रेस द्वारा टिकट दिए जाने को लेकर मचा है। NDA महागठबंधन पर जमकर अपने चुनावी बाण छोड़ रही है। इसका खूब फायदा भी उठा रही है। वैसे भी ये चुनाव है, और वो भी बिहार का। यहां साम-दाम दंड भेद हर तरह से जीता जाता है। आखिर मशकूर अहमद को लेकर इतना बवाल क्यों मच रहा है, आइए, जानते हैं।
कौन है ये मशकूर अहमद?
मशकूर अहमद अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय का छात्र है। एएमयू में जिन्ना की तस्वीर का महिमामंडन करने और उसे अपने कमरे में टांगने को लेकर ये सुर्खियों में आया था। उस समय ये छात्रसंघ का अध्यक्ष था। जिन्ना का महिमामंडन करने पर उस समय भी खूब बवाल मचा था। बीजेपी इसे राष्ट्र के विरुद्ध मान रही है।
कांग्रेस ने कहां से उतारा है जिन्ना के इस 'भक्त' को?
लगता है कांग्रेस इस बार बिहार में किसी भी तरीके से जीत अपनी झोली में डालना चाहती है, इसीलिए वो विवादों में रहे इस छात्र संघ के नेता को अपना उम्मीदवार घोषित की है। दरभंगा की जाले विधान सभा सीट से मशकूर अहमद उस्मानी को टिकट दिया है। कांग्रेस के टिकट देते ही महागठबंधन पर एनडीए सवालों की झड़ी लगानी शुरू कर दी है। एनडीए इसे देश के विरुद्ध बता रही है। जिन्ना का महिमामंडन करने वाले व्यक्ति को चुनाव में उतारकर कांग्रेस के फैसले का कड़ा विरोध कर रही है।
जब उम्मीदवारी पर है बवाल, तो क्या करेंगे चुनाव में कमाल
पिछले लोकसभा चुनाव में बेगुसराय से कन्हैया कुमार को भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी ने भी इसीलिए चुनावी अखाड़े में उतरा था कि वो अपने बयान को लेकर चर्चा में था। JNU में देश विरोधी नारे लगाने में ये सबसे आगे था। उस समय भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी को लगा कि इसे चुनावी अखाड़े में उतारकर भुनाया जा सकता है, लेकिन ऐसा हो न सका। कन्हैया कुमार को बीजेपी के गिरिराज सिंह से मात मिली. अब कांग्रेस वही पासा फेंकी है, उसे भी लग रहा है कि बवाली है तो वोट आएगा, लेकिन जब उम्मीदवारी पर है बवाल, तो चुनाव में क्या कमाल करेंगे, ये लोकसभा चुनाव में कन्हैया की हार से सबक लेना चाहिए।
दागी नेताओं की भरमार
राजनीतिक दलों में अब वो बात नहीं रह गई। चुनाव को लेकर उनकी कोई संवेदना और ईमान नहीं रह गया। अब तो हर पार्टी में दागी नेताओं की भरमार है। इन दलों को लगता है कि साफ-सुथरी राजनीति से कुछ होने वाला नहीं है। चुनावी दंगल में जहां नीतीश जैसे सूमो पहलवान हों, तो वहां इन नए खिलाड़ियों के पैर जमने की उम्मीद थोड़ी कम ही लगती है, वैसे कभी भी किसी को कम नहीं आंकना चाहिए, क्यों कि क्रिकेट और राजनीति में आखिरी पल तक बाजी पलट सकती है। यहां अनुमान लगाना बेकार है।