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यूपी चुनाव: पूर्वांचल को साधने का BJP प्लान, निषाद पार्टी-अपना दल लगाएंगे नैया पार !

Updated Sep 24, 2021 | 14:30 IST

UP Assembly Election 2022: पूर्वांचल छोटे दलों का प्रयोगशाला बन चुका है। यहां पर अपना दल, सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी,निषाद पार्टी, पीस पार्टी जैसे दल उभरे हैं।

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तस्वीर साभार:&nbspANI
पूर्वांचल भाजपा का मजबूत गढ़ है
मुख्य बातें
  • निषाद समुदाय के तहत निषाद, केवट, बिंद, मल्लाह, कश्यप, मांझी, गोंड सहित करीब 22 उप जातियां  हैं।
  • पूर्वांचल के भदोही, जौनपुर, गोरखपुर, वाराणसी, बलिया, देवरिया से बस्ती तक 70 विधान सभा सीटों पर निषाद समुदाय असर रखता है।
  • पूर्वांचल में करीब 150 सीटें हैं और भाजपा ने पिछली बार इस इलाके से 100 से ज्यादा सीटें जीतीं थी।

नई दिल्ली:  भाजपा ने उत्तर प्रदेश में होने वाले 2022 के चुनावों को देखते हुए निषाद पार्टी से गठबंधन का ऐलान कर दिया है। इसका बकायदा ऐलान उत्तर प्रदेश के प्रभारी और केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने निषाद पार्टी के मुखिया संजय निषाद की मौजूदगी में किया। उन्होंने कहा कि भाजपा विधान सभा चुनाव, निषाद पार्टी और अपना दल के साथ मिलकर लड़ेगी। प्रधान ने यह भी कहा कि भाजपा ने 2022 की तैयारी शुरू कर दी है। साफ है कि निषाद पार्टी को अपने साथ जोड़कर भाजपा पूर्वांचल में अपनी पकड़ मजबूत करना चाहती है। पूर्वांचल में करीब 150 सीटें हैं और भाजपा ने पिछली बार इस इलाके से 100 से ज्यादा सीटें जीतीं थी। ऐसे में उस पर किसान आंदोलन के बीच पूर्वांचल से ज्यादा से ज्यादा सीटें जीतने  का दबाव भी है। क्योंकि गोरखपुर से जहां मुख्यमंत्री आदित्यनाथ आते हैं, वहीं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी बनारस से सांसद है। 

निषाद समुदाय का 70 विधान सभा सीटों पर प्रभाव

निषाद समुदाय का पूर्वांचल में अच्छा खासा वोट बैंक हैं। इस समुदाय के तहत निषाद, केवट, बिंद, मल्लाह, कश्यप, मांझी, गोंड सहित करीब 22 उप जातियां  हैं। ऐसे में भाजपा निषादों के नेता संजय निषाद को अपने  पाले में लाकर इस वोट बैंक को मजबूत कर रही है।निषाद पार्टी के मुखिया इस समय संजय निषाद हैं। और उन्होंने 2016 में बसपा का दामन छोड़ निषाद पार्टी बनाई थी। साल 2017 के विधान सभा चुनाव में निषाद पार्टी ने पीस पार्टी ऑफ इंडिया, अपना दल और जन अधिकार पार्टी जैसे दलों के साथ गठबंधन किया था। लेकिन पार्टी को केवल एक सीट पर जीत मिल पाई थी। इसके बावजूद उनका एक बड़ा वोट बैंक हैं।  जो  गंगा, यमुना और गंडक के किनारे वाले इलाकों में खासा राजनीतिक ताकत रखता है। निषाद समुदाय मुख्य तौर पर पूर्वांचल के भदोही, जौनपुर, गोरखपुर, वाराणसी, बलिया, देवरिया से बस्ती तक 70 विधान सभा सीटों पर अपना  असर रखती है। इसी ताकत के बल पर संजय निषाद ने गठबंधन के पहले भाजपा को साफ कर दिया था कि वह पार्टी का भाजपा में विलय नहीं करेंगे।

गोरखपुर में दिया था भाजपा को झटका

 2018 के लोक सभा उप चुनाव में निषाद वोट तोड़कर संजय निषाद ने गोरखपुर में भाजपा को बड़ा झटका दिया था। असल में गोरखपुर से संजय निषाद के बेटे प्रवीण निषाद, समाजवादी पार्टी और बसपा के समर्थन से चुनाव लड़े थे। और इसका परिणाम यह हुआ था कि भाजपा की प्रतिष्ठा वाली गोरखपुर सीट पर प्रवीण कुमार निषाद  समाजवादी उम्मीदवार के रुप चुनाव जीत गए थे। हालांकि बाद में 2019 में प्रवीण कुमार निषाद भाजपा के टिकट पर संत कबीर नगर सीट से लड़े और चुने गए। 

छोटे दलों का प्रयोगशाला है पूर्वांचल

पूर्वांचल में विधान सभा की 150 से ज्यादा सीटें हैं। अगर 2017 के विधान सभा चुनाव के नतीजों को देखा जाय तो BJPने 100 से ज्यादा सीटों पर कब्जा किया था। वहीं समाजवादी पार्टी को 18, बसपा को 12, अपना दल को 8, सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी  को 4, कांग्रेस को 4 और निषाद पार्टी को 1 सीट पर जीत मिली थी।  इन आंकड़ों से साफ है कि चाहे अनुप्रिया पटेल का अपना दल हो, ओम प्रकार राजभर की सुहेलदेवल भारतीय समाज पार्टी या फिर संजय निषाद की निषाद पार्टी, ये सभी छोटे दल पूर्वांचल में पनपे हैं। इसी क्षेत्र में इतने दल उभरने की वजह और उनकी ताकत पर बाबा साहब भीमराव अंबेडकर विश्वविद्यालय में राजनीति विज्ञान विभाग के प्रमुख डॉ शशिकांत पांडे कहते हैं " उत्तर प्रदेश में अभी भी जाति आधारित चुनाव हकीकत है। ऐसे में इन दलों को उभरने का मौका मिला है। प्रदेश में में ज्यादातर सीटों पर चतुष्कोणीय मुकाबला होता है। और इन परिस्थितियों में 5000-10000 वोट बहुत मायने रखते हैं। छोटे दलों की यही ताकत है। ये बहुत आसानी से जातियों में अच्छी पकड़ की वजह से वोट जुटा लेते हैं।"

पश्चिम की भरपाई पूर्वांचल करेगा ?

भले ही निषाद पार्टी के साथ गठबंधन का ऐलान करते वक्त धर्मेंद्र प्रधान ने यह कहा कि किसान की नाराजगी चर्चा का विषय हो सकता है लेकिन सरकार ने कृषि क्षेत्र में काम किया है। और सरकार किसानों का आय डबल करने की दिशा में काम कर रही है। लेकिन पार्टी को यह अहसास है कि पश्चिमी यूपी में भाजपा के लिए किसान आंदोलन से बड़ी चुनौती खड़ी हो गई है। ऐसे में पूर्वांचल उसके लिए बड़ी उम्मीद है। पार्टी के एक नेता कहते हैं कि नुकसान का हमें अहसास है इसलिए लगातार काम किए जा रहे हैं। 

लेकिन भाजपा की समस्या यह है कि वह पहले ही पूर्वांचल में 100 से ज्यादा सीटें जीत चुकी है। ऐसे में 150 सीटों में वह कितनी अतिरिक्त सीटें जीत पाएंगी। यह करना उसके लिए आसान नहीं होगा। पश्चिमी यूपी में भाजपा ने 2017 के चुनाव में 80 से ज्यादा सीटें जीती थीं। 

अपना दल कितना आएगा काम

ओबीसी वर्ग में यादवों के बाद प्रदेश में सबसे ज्यादा कुर्मी की आबादी है। एक अनुमान के अनुसार इनकी संख्या 20 फीसदी से ज्यादा है। अनुप्रिया पटेल के नेतृत्व वाले अपना दल का वाराणसी, मिर्जापुर,प्रतापगढ़, रॉबर्ट्सगंज क्षेत्र में अच्छा प्रभाव है। इन इलाकों में कुर्मी वोट मजबूत दावेदारी रखनते हैं। इसका फायदा भाजपा को पिछले चुनावों में भी मिला था। साफ है कि भाजपा छोटे दलों की प्रयोगशाला में अपने सभी मार्चे मजबूत करना चाहती है। जिससे कि उसका 350 प्लस का टारगेट पूरा हो सके। हालांकि यह राह कितनी आसान होगी यह तो वक्त बताएगा।


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