- BJP ने प्रियंका टिबरेवाल को ममता के खिलाफ मैदान में उतारा है। वह बंगाल में भाजपा युवा मोर्चा की वाइस प्रेसिडेंट और पेशे से वकील हैं।
- पश्चिम बंगाल में चुनाव बाद हुई हिंसा को लेकर BJP ममता को घेरेगी। प्रियंका ने इस संबंध में बंगाल सरकार के खिलाफ कानूनी लड़ाई लड़ी है।
- भवानीपुर सीट से ममता 2011 और 2016 में विधान सभा चुनाव जीत चुकी हैं।
नई दिल्ली। वैसे तो यह केवल एक उप चुनाव है, लेकिन जब बात बंगाल, ममता बनर्जी और भाजपा की हो, तो उसमें दिलचस्पी होनी तय है। 30 सितंबर को होने वाले मतदान में ममता बनर्जी से मुकाबले में भाजपा ने एक दम चौंकाने वाला चेहरा उतार दिया है। भाजपा ने वकील प्रियंका टिबरेवाल को ममता के खिलाफ मैदान में उतारा है। प्रियंका बंगाल में भाजपा की युवा मोर्चा की वाइस प्रेसिडेंट और पेशे से वकील हैं। वह बंगाल की राजनीति में एक्टिव रहती है और राज्य में चुनावों के बाद हुई हिंसा को लेकर उन्होंने जो याचिका दायर की थी। और उसी आधार पर कलकत्ता हाई कोर्ट ने हिंसा की जांच के लिए सीबीआई और एसआईटी जांच के आंदेश दिए थे। बंगाल में भाजपा इस फैसले को ममता बनर्जी के खिलाफ अपनी बड़ी जीत मानती है। ऐसे में प्रियंका निश्चित तौर पर इस बात को चुनाव प्रचार में जरूर भुनाने की कोशिश करेंगी।
ये है गेम प्लान
प्रियंका की उम्मीदवारी का ऐलान होते ही भाजपा के आईटी सेल प्रमुख अमित मालवीय का ट्वीट आगे की लड़ाई का इशारा कर देता हैं। उन्होंने ट्वीट कर लिखा है "भाजपा ने प्रियंका को ममता बनर्जी के खिलाफ भवानीपुर से उम्मीदवार घोषित किया है। यह वहीं प्रियंका है जिन्होंने चुनावों के बाद हुई हिंसा में पीड़ितों का का कलकत्ता हाईकोर्ट में प्रतिनिधित्व किया और सीबीआई और एसआईटी जांच का आदेश हासिल किया। भवानीपुर निश्चित तौर पर ममता बनर्जी को हराएगा और पश्चिम बंगाल के तालिबानीकरण पर रोक लगाएगा।"
मई 2021 में पश्चिम बंगाल में मिली हार के बाद से भाजपा लगातार चुनाव में हुई हिंसा का मुद्दा उठाती रही है। पार्टी नेताओं के अनुसार चुनाव के बाद भाजपा के 40 से ज्यादा कार्यकर्ताओं की हत्या हुई है। इसके लेकर पार्टी कोलकाता से लेकर दिल्ली तक विरोध प्रदर्शन करती रही है। इसी हिंसा में भाजपा नेता अभिजीत सरकार की हत्या हुई थी। जिसकी लड़ाई भी प्रियंका लड़ चुकी है। उनकी याचिका पर ही हाईकोर्ट की ओर से बीजेपी नेता अभिजीत सरकार का दोबारा पोस्टमॉर्टम करने का आदेश दिया गया था, जिनकी हिंसा के दौरान हत्या हुई थी। 9 सिंतबर को करीब 4 महीने बाद अभिजीत सरकार का शव उनके घर वालों को सौंपा गया है। जिसका उल्लेख खुद पश्चिम बंगाल भाजपा अध्यक्ष दिलीप घोष ने किया है।
खुद प्रियंका भी एक चैनल को दिए इंटरव्यू में यह कह चुकी है कि मैंने ममता बनर्जी को एक लड़ाई में तो हरा दिया है। असल में वह चुनाव बाद हुई हिंसा को लेकर जिस तरह ममता बनर्जी इंकार करती रही और उसके बाद कोलकाता हाईकोर्ट ने सीबीआई और एसआईटी जांच के आदेश दिए, उसे प्रियंका ममता के खिलाफ अपनी बड़ी जीत मानती है। जाहिर उप चुनाव में हिंसा का मुद्दा तेजी से उठेगा।
भाजपा नहीं देगी वॉकओवर
पश्चिम बंगाल से भाजपा के सांसद अर्जुन सिंह ने टाइम्स नाउ नवभारत से कहा "बंगाल में दो ही पार्टी हैं, एक भाजपा और दूसरी तृणमूल कांग्रेस। कड़ी टक्कर देने के लिए हमनें एक तरफ ऐसे उम्मीदवार को उतारा है जिन्होंने लोगों के रक्षा के लिए लड़ाई लड़ी है। जबकि दूसरी तरफ एक ऐसा उम्मीदवार है, जिसने अत्याचार किया है।" सूत्रों के अनुसार ममता बनर्जी को कड़ी टक्कर देने के लिए विधायकों और सांसदों की भी जिम्मेदारी तय की जा रही है। इसके तहत भवानीपुर विधान सभा के वार्डों के आधार पर विधायकों को जिम्मेदारी दी जाएगी। साथ ही सांसद पूरे चुनाव के लिए रणनीति को अमल में लाने पर नजर रखेगा।
ममता के लिए चुनाव अहम
ममता बनर्जी ने मई में हुए विधान सभा चुनावों में लगातार बाहरी बनाम घरेलू की बात कर भाजपा को घेरा था। इसके अलावा वह अपने को बंगाल की बेटी कह कर भी प्रोजेक्ट करती रही है। ऐसे में अब भाजपा ने प्रियंका को उतारकर साफ कर दिया है, चुनाव प्रचार में बेटी बनाम बेटी का एजेंडा होगा। खैर भवानीपुर सीट ममता बनर्जी की परंपरागत सीट रही है। वह भवानीपुर से 2011 और 2016 में विधाान सभा चुनाव जीत चुकी है। 2021 में उनके पुराने साथी शुभेंदु अधिकारी द्वारा तृणमूल कांग्रेस का साथ छोड़ने पर, ममता ने शुभेंदु को हराने के उद्देश्य नंदीग्राम से चुनाव लड़ा था। लेकिन वह कामयाब नहीं हो पाई और करीब 2000 मतों से चुनाव हा गईं थी। हालांकि उस हार पर वह हमेशा ही धांधली का आरोप लगाती रहती है। वहीं प्रियंका टिबरेवाल ने भी इंताली विधानसभा सीट से चुनाव लड़ा था, लेकिन टीएमसी के उम्मीदवार से करीब 58 हजार वोटों से हार गई थीं। इन चुनावों में भाजपा से ज्यादा ममता का दांव लगा हुआ है। क्योंकि वह तृणमूल कांग्रेस की भारी जीत के बावजूद चुनाव हार गईं थी। और उनका मुख्य मंत्री पद पर बने रहने के लिए चुनाव जीतना बेहद जरूरी है। वैसे तो यह आसान राह दिख रही है लेकिन चुनाव परिणाम का इंतजार 4 अक्टूबर तक इंतजार करना होगा।