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यूपी चुनावों में अब चंद्रगुप्त मौर्य की एंट्री, जानें 2300 साल पुराने सम्राट कैसे आएंगे काम

Updated Nov 15, 2021 | 20:49 IST

UP Election 2022: यूपी चुनाव में इतिहास पर खासा जोर है। कभी मुहम्मद अली जिन्ना की बात होती है तो कभी चंद्रगुप्त मौर्य की बात होती है। राजनीतिक दलों को लगता है ऐतिहासिक पात्रों के जरिए वह एक बड़े वोट बैंक को साध सकते हैं।

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यूपी चुनावों में ऐतिहासिक पात्रों पर दांव
मुख्य बातें
  • यूपी में ओबीसी एक बड़ा वोट बैंक है। जिसमें गैर यादव मतदाताओं में भाजपा ने बड़ी सेंध लगाई है।
  • भाजपा को गैर यादव ओबीसी वोट बैंक के जरिए 2014, 2017 और 2019 में बड़ा फायदा मिला है।
  • चंद्रगुप्त मौर्य के जरिए भाजपा ने एक बार फिर अपने वोट बैंक को मजबूत करने की कोशिश की है।

नई दिल्ली: वैसे तो सबकी नजर 2022 के उत्तर प्रदेश चुनावों पर है। लेकिन जैसे-जैसे चुनाव नजदीक आ रहे हैं, चुनावी लड़ाई भविष्य की जगह इतिहास की ओर रुख करते जा रही है। शुरूआत 75 साल पहले भारत-पाक के विभाजन के जिम्मेदार मुहम्मद अली जिन्ना से हुई थी। लेकिन अब यह मौर्य सम्राट चंद्रगुप्त मौर्य तक पहुंच गई है। मौर्य साम्राज्य के संस्थापक चंद्रगुप्त मौर्य का शासन काल ईसा पूर्व 322 से 298 ईसा पूर्व तक माना जाता है। उनके शासनकाल में तो नहीं लेकिन उनके जीवनकाल में सिकंदर ने भारत पर आक्रमण किया था। तो अब सवाल उठता है कि यूपी के चुनावों में चंद्रगुप्त मौर्य और सिकंदर का क्या काम और क्यों उस पर चर्चा हो रही है ?

इस तरह हुई एंट्री

असल में 14 नवंबर को उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने लखनऊ में सामाजिक प्रतिनिध सम्मेलन में कहा 'कितना धोखा हुआ है देश के साथ कि जो चंद्रगुप्त मौर्य से हारा था, उस सिकंदर को महान बता दिया गया। फिर भी इतिहासकार इस पर मौन साधे हुए हैं' । उनके इस बयान पर यह चर्चा भी है कि आखिर चंद्रगुप्त के जरिए भाजपा क्या निशाना साध रही है। तो इसे समझने के लिए मौर्य वंश का इतिहास समझना  होगा।

मौर्य वंश का इतिहास

मौर्य वंश की स्थापना चंद्रगुप्त मौर्य ने 322 ईसा पूर्व में की थी। और उनका शासन करीब 24 साल चला था। इस दौरान मौर्य वंश की सीमा मौजूदा अफगानिस्तान के इलाके से शुरू होती थी। और इसी रास्ते से सिकंदर ने भारत पर आक्रमण किया था। सिकंदर ने जब भारत पर आक्रमण किया था तो तक्षशिला के राजा आंभीक ने उसकी आधीनता स्वीकार कर ली थी। लेकिन पोरस (पंजाबर और झेलम के इलाके, जिसमें आज का पाकिस्तान भी हिस्सा शामिल है) ने उसकी स्वाधीनता स्वीकार नहीं की और युद्ध हुआ। जिसमें पोरस हारा, लेकिन उनके शौर्य और थकी हुई सेना के कारण सिकंदर ने भारत में आगे बढ़ने का फैसला बदल दिया और वापस लौट गया। और रास्ते में उसकी 323 ईसा पूर्व मौत हो गई। 

सिकंदर की मौत के बाद अफगानिस्तान वाले इलाके पर उसके सेनापति सेल्यूकस का राज था। चंद्रगुप्त मौर्य ने राजा बनने के बाद, सेल्यूकस को हरा दिया था और महान मौर्य साम्राज्य की ताकत का दुनिया को अहसास कराया।  

मोरिय जाति के थे मौर्य !

इतिहासकारों का एक मत है कि चंद्रगुप्त मौर्य, मोरिय जाति के थे। जिसके के आधार पर ही मौर्य वंश का नाम रखा गया। इस मोरिय जाति का  उद्भव कुशीनगर और उसके आस-पास के इलाकों में माना जाता है। इसके अलावा मौर्यों को मुराओ के नाम से भी जाना जाता है, और यह समुदाय पारम्परिक रूप से सब्जियां उगाने का काम करता रहा है। इस तरह के अनेक मत है। मौजूदा कुशवाहा समाज को भी चंद्रगुप्त मौर्य का वंशज माना जाता है।

भाजपा की ओबीसी राजनीति

उत्तर प्रदेश की राजनीति में ओबीसी वोटर एक बड़ा वोट बैंक है। जिसकी करीब 50 फीसदी हिस्सेदारी है। उसमें से गैर यादव ओबीसी जातियों में भाजपा ने बड़ी सेंध लगाई। बाबा साहब भीमराव अंबेडकर विश्वविद्यालय में राजनीति विज्ञान विभाग के प्रमुख डॉ शशिकांत पांडे ने टाइम्स नाउ नवभारत डिजिटल से बताया "देखिए भाजपा ने ओबीसी वर्ग में बहुत अच्छी तरह से सेंध लगाई है। पार्टी ने ओबीसी जातियों की महत्वाकांक्षा और मजबूती को समझा, जिसका उन्हें 2014, 2017 और 2019 के चु्नावों में दिखा है।' 

 इसी रणनीति के तहत वह कुर्मी और कुशवाहा वोटों को साधना चाहती हैं। पार्टी ने कुर्मी समुदाय से ही स्वतंत्र देव सिंह को प्रदेश अध्यक्ष बनाया तो केशव प्रसाद मौर्य को उप मुख्यमंत्री बनाया । अगर मौर्य जाति की राज्य में स्थिति देखी जाय तो ईटावा, एटा, फिरोजाबाद, एटा, हरदोई,  मैनपुरी,  फर्रुखाबाद, कन्नौज, झांसी, ललितपुर जैसे जिलों में अहम वोट है। इसी तरह कुर्मी समाज की सोनभद्र मिर्जापुर, प्रतापगढ़, कौशांबी, इलाहाबाद, श्रावस्ती, बलरामपुर, सीतापुर, बहराइच, सिद्धार्थनगर और बस्ती की प्रमुख आबादी है। साफ है कि भाजपा चुनावों से पहले सभी वर्गों को साधकर 300 प्लस के लक्ष्य को हासिल करना चाहती है। ऐसे में अगर 2300 साल पुराने सम्राट भी काम आए तो क्या परेशानी है।

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