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क्या पसमांदा मुसलमान के लिए BJP बदलेगी ट्रेंड,मोदी दौर में दिखेगा सबसे बड़ा चेंज !

Updated Jul 11, 2022 | 20:41 IST

BJP Pasmanda Muslim: भाजपा नेताओं के अनुसार राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में , प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने साफ तौर पर कहा है कि पार्टी को गैर हिंदू धर्म के पिछड़े तबके में पैठ बनानी चाहिए।

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तस्वीर साभार:&nbspTwitter
भाजपा की पसमांदा मुस्लिम पर नजर
मुख्य बातें
  • पसमांदा मुसलमानों तक पहुंच के लिए पार्टी मोटे तौर पर दो पहलुओं पर फोकस करेगी।
  • भाजपा के पास इस समय लोकसभा में 303 और राज्यसभा में 91 सांसद हैं। इसी तरह देश के 18 राज्यों में उसकी सरकार है।
  • पसमांदा मुसलमानों की मुस्लिम समुदाय में करीब 70-80 फीसदी तक आबादी है।

BJP Pasmanda Muslim: क्या भाजपा 2024 के लोक सभा चुनाव में बदले अंदाज में नजर आएगी ? और इसके लिए वह सबसे अहम दांव उस आबादी पर लगाने जा रही है, जिसे आम तौर पर भाजपा का वोटर नहीं माना जाता है। साथ ही भाजपा सरकार में भी उसका प्रतिनिधित्व पिछले 8 साल में न के बराबर ही रहा है। और अब न तो कैबिनेट में , न लोक सभा में और न ही राज्य सभा में मुस्लिम आबादी का भाजपा प्रतिनिधित्व करती है। लेकिन भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की हैदराबाद में हुई बैठक के बाद जिस तरह पसमांदा मुसलमानों को अपने पाले में लाने की बात पार्टी कर रही है। उससे लगता है कि पार्टी 2024 के दंगल में नए अंदाज में नजर आएगी।

क्या है प्लानिंग

पार्टी के नेताओं के अनुसार राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में , प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने साफ तौर पर कहा है कि पार्टी को गैर हिंदू धर्म के पिछड़े तबके में पैठ बनानी चाहिए। इसका सीधा अर्थ है कि पार्टी अब मुस्लिमों में पिछड़े वर्ग का प्रतिनिधित्व करने वाले पसमांदा मुसलमानों को अपना बड़ा वोटर बेस बनाना चाहती है। और इसके लिए पार्टी ने ब्लूप्रिंट भी तैयार कर लिया है। । भाजपा के अल्पसंख्यक मोर्चा के प्रमुख जमाल सिद्दीकी ने न्यूज एजेंसी से पीटीआई से कहा है कि पसमांदा मुसलमानों तक पहुंच के लिए पार्टी मोटे तौर पर दो पहलुओं पर फोकस करेगी। इसके तहत यह सुनिश्चित किया जाएगा कि उन्हें मोदी सरकार की कल्याणकारी योजनाओं का लाभ मिले। और जिलों में पार्टी की इकाई में पसमांदा मुस्लिमों को प्रतिनिधित्व मिले, खासतौर पर जहां पर पसमांदा मुसलमान बहुमत में हो।

नेशनल हीरो पर नजर

भाजपा अल्पसंख्या मोर्चे के ट्वीट से एक बात और समझ में आती है, कि पार्टी  दूसरी जातियों के नायकों को जिस तरह बढ़ावा देती है। उसी तरह अब वह पसमांदा समुदाय के भी नायकों का प्रचार करेगी। भाजपा अल्पसंख्यक मोर्चे ने एक जुलाई को परमवीर चक्र विजेता वीर अब्दुल हमीद के जन्म दिन पर बधाई संदेश जारी किया। इसी तरह अन्य नायकों को लेकर संदेश जारी कर रही है। ऐसे में आने वाले समय में पार्टी इसी तरह पसमांदा समुदाय के दूसरे नेशनल हीरो के बारे में बड़े स्तर प्रचार कर सकती है। 

क्या भाजपा में मुस्लिम सांसदों और विधायकों का बढ़ेगा प्रतिनिधित्व

भाजपा के पास इस समय लोकसभा में 303 और  राज्यसभा में 91 सांसद हैं। इसी तरह देश के 18 राज्यों में उसकी सरकार है। लेकिन एक भी मुस्लिम सांसद और विधायक (MLA) का पार्टी में प्रतिनिधित्व नही है। लेकिन जिस तरह, भाजपा पसमांदा मुसलमानों के बीच अपनी  पैठ बढ़ाना चाहती है और पार्टी में अपना प्रतिनिधित्व बढ़ाना चाहती है। उससे साफ है कि उसे चुनावों में पसमांदा मुसलमानों को जगह देनी होगी और उन्हें उम्मीदवार के रूप में चुनाव उतारना होगा। 

पसमांदा का सीधा अर्थ पीछे हो जाना होता है। यानी इस वर्ग में ज्यादातर पिछड़े वर्ग के मुस्लिम हैं। भाजपा ने जैसे अपनी कल्याणकारी योजनाओं के जरिए हिंदू समुदाय के ओबीसी कैटेगरी में अपना वोट बैंक बनाया है, उसी तरह वह पसमांदा मुस्लिम में अपनी पैठ बनाना चाहती है। पसमांदा मुसलमानों की मुस्लिम समुदाय में 70-80 फीसदी तक मानी जाती है। इसमें जुलाहा,तेली,दर्जी, धोबी, लोहार आदि समुदाय के लोग आते हैं। पसमांदा मुसलमानों की अहम आबादी उत्तर प्रदेश और बिहार में हैं। और इन दोनों राज्यों से 120 लोक सभा सीटें आती हैं। और 2019 के लोक सभा चुनाव में पार्टी ने केवल बिहार से शाहनवाज हुसैन को मुस्लिम उम्मीदवार के रूप में  चुनाव में उतारा था और वह भी चुनाव हार गए थे।

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2014 और 2019 में यह थी स्थिति

अगर भाजपा में पिछले 2 लोक सभा चुनावों में उम्मीदवारों की स्थिति देखी जाय  तो पार्टी ने 2014 के चुनाव में 7 मुस्लिम उम्मीदवार मैदान में उतारे थे। लेकिन उसमें से एक भी उम्मीदवार चुनाव नहीं जीत पाया था। इसके बाद 2019 में पार्टी ने 6 मुस्लिम उम्मीदवार मैदान में उतारे लेकिन, एक बार फिर कोई उम्मीदवार नहीं जीत पाया था। अब  भाजपा पसमांदा मुसलमानों को अपना बड़ा वोट बैंक बनाना चाहती है तो वह 8-9 करोड़ आबादी (कुल मुस्लिम आबादी का में पसमांदा मुसलमानों की आबादी) को नजर अंदाज नहीं कर पाएगी और उसका असर टिकट वितरण के समीकरण में दिख सकता है। हालांकि अभी तक ज्यादा मुस्लिम उम्मीदवारों को टिकट नहीं देने की वजह पार्टी के नेता, इस बात को दोहराते हैं कि वह धर्म-जाति के आधार पर उम्मीदवारों को टिकट नहीं देती है। वह केवल जीतने की संभावना के आधार पर टिकट देती है।
 

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