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नौशेरा का शेर: भारत का वह ब्रिगेडियर जिसे पाकिस्तान ने दिया था अपनी आर्मी का चीफ बनाने का ऑफर

Brigadier Usman: the Lion of Naushera, Whom Pakistan had offered to make the chief of its army
Updated Jul 15, 2021 | 06:30 IST

ब्रिगेडियर उस्मान ने एक समय पाकिस्तान की नाक में ऐसा दम कर दिया था किपाकिस्तान ने उन पर पचास हजार रुपये का इनाम रखा था। इस जाबांज का जन्म आज की के दिन यूपी के मऊ में हुआ था।

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Brigadier Usman: the Lion of Naushera, Whom Pakistan had offered to make the chief of its armyBrigadier Usman: the Lion of Naushera, Whom Pakistan had offered to make the chief of its army
भारत के इस ब्रिगेडियर को पाक ने दिया था मुखिया बनाने का ऑफर
मुख्य बातें
  • ब्रिगेडियर उस्मान को मिला था भारत-पाक जंग में मिला 'नौशेरा का शेर' का खिताब
  • 1948 में पाकिस्तान ने ब्रिगेडियर उस्मान पर रखा था 50,000 रुपए का ईनाम
  • ब्रिगेडियर उस्मान का जन्म 15 जुलाई 1912 को यूपी के मऊ में हुआ था

नई दिल्ली: बात उस समय की है जब देश की आजादी को महज कुछ ही महीने हुए थे कि पाकिस्तान ने कबायली घुसपैठियों के जरिए जम्मू कश्मीर में घुसपैठ शुरू कर दी। करीब 5 हजार घुसपैठियों ने घाटी के नौशेरा सेक्टर में आड़ लेकर भारतीय जवानों पर फायरिंग कर दी। अचानक हुई इस फायरिंग के लिए सेना भी तैयार नहीं थी जिस वजह से उसे शुरूआत में नुकसान उठाना पड़ा। लेकिन ब्रिगेडियर उस्मान नाम के एक भारतीय ऑफिसर के नेतृत्व में सेना ने कबायलियों को इस कदर धूल चटाई की करीब एक हजार कबायली घुसपैठिये मारे गए जबकि इतनी ही बड़ी संख्या में घायल भी हो गए। हालांकि भारत के 22 जवान भी शहीद हो गए। ब्रिगेडियर उस्मान के नेतृत्व में फौज ने पाकिस्तान को ऐसा सबक सिखाया कि वह उसे कभी भूल नहीं पाया। इसी वजह से उन्हें ‘नौशेरा का शेर’ कहा जाता है।

कौन थे ब्रिगेडियर उस्मान
ब्रिगेडियर उस्मान का जन्म 15 जुलाई 1912 को उत्तर प्रदेश के मऊ जिले के बीबीपुर गांव में हुआ था। उनके पिता मोहम्मद फारूख बनारस शहर के कोतवाल थे। अपने बेटे को सिविल सेना में भेजने की चाहत रखने वाले फारूख को उस समय मायूसी हाथ लगी जब बेटे उस्मान ने कहा कि वह सेना में जाएगा। चूंकि आजादी से पहले का समय था तो उन्होंने रॉयल मिलिट्री अकादमी सैंडहर्स्ट के लिए अप्लाई किया और सलेक्शन भी हो गया। उस्मान उन 10 लोगों में एक थे जिनका चयन इसके लिए हुआ था जिनमें सैम मानेकशॉ और मोहम्मद मूसा भी एक थे जो आगे चलकर क्रमश: भारत और पाकिस्तान के आर्मी चीफ बने।

पहली नियुक्ति बलूच रेजीमेंट में हुई 
1935 में ब्रिगेडियर उस्मान की नियुक्ति बलूच रेजीमेंट में हुई और इसके अगले साल ही वह लेफ्टिनेंट बन गए। 1941 में उनका प्रमोशन हुआ तो वह कैप्टन बन गए। बाद में जब दूसरा विश्व युद्ध हुआ तो अंग्रेज सेना ने उन्हें बर्मा में भेज दिया और फिर उन्हें ब्रिगेडियर बना दिया गया।1947 में जब देश आजाद हुआ था ब्रिगेडियर उस्मान के हाथों में बलूच रेजीमेंट की कमान थी जिसमें अधिकतर सैनिक मुस्लिम थे। हर कोई यह सोच रहा था कि ब्रिगेडियर उस्मान भी पाकिस्तान जाएंगे लेकिन उन्हें अपनी मिट्टी से इस कदर प्यार था कि उन्होंने पाकिस्तान जाने का ऑफर ठुकरा दिया। उन्हें पाकिस्तान ने अपने फैसले पर से विचार करने को कहा लेकिन वह नहीं माने।
 

पाकिस्तान ने दिया था ऑफर
कहा जाता है कि जब के पाकिस्तान के प्रधानमंत्री मोहम्मद अली जिन्ना ने उन्हें पाकिस्तान का सेना अध्यक्ष तक बनने का ऑफर दिया था लेकिन उस्मान नहीं माने। बाद में पाकिस्तान ब्रिगेडियर उस्मान से इस कदर परेशान हो गया कि उन पर पचास हजार रुपये का इनाम घोषित कर दिया।  कहा जाता है कि अगर ब्रिगेडियर उस्मान समय से पहले शहीद नहीं होते वह भारत के पहले मुस्लिम थल सेना प्रमुख होते।

मरणोपरांत महावीर चक्र

पाकिस्तान ने जम्मू-कश्मीर में एक बार फिर नौशेरा और झांगड़ पर फिर से कब्जा करने की कोशिश की लेकिन ब्रिगेडियर उस्मान की बदौलत पाकिस्तान के मंसूबे ध्वस्त हो गए। बाद में  ब्रिगेडियर उस्मान शहीद हो गए। उनकी बहादुरी का अंदाजा इसी बात  से लगाया जा सकता है कि उनके अंतिम संस्कार में तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू, राष्ट्रपति डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद सहित कई कैबिनेट मंत्री शामिल हुए। बाद में ब्रिगेडियर मोहम्मद उस्मान को मरणोपरांत महावीर चक्र दिया गया।

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