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करतारपुर गुरुद्वार में मिले भारत-पाकिस्तान बंटवारे में अलग हुए भाई-बहन, जिसने भी ये मिलन देखा अपनी आंखों में आंसू नहीं रोक पाए

Updated Sep 10, 2022 | 22:05 IST

भारत-पाकिस्तान में बंटवारे के दौरान बिछड़े भाई बहन करतारपुर गुरुद्वार में 75 साल बाद मिले। जिसने भी भाई-बहन का मिलन देखा वो अपनी आंखों में आंसू आने से रोक नहीं पाया।

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करतारपुर गुरुद्वार में 75 साल बाद मिले भाई बहन

भारत-पाकिस्तान में बंटवारे के दौरान ना जाने कितने परिवार अलग हो गए लेकिन ऐसे कम ही है जो अलग होने के बाद भी अपने परिवार से मिल पाए, उनमें से एक हैं जलंधर के रहने वाले अमरजीत सिंह। 75 साल बाद व्हीलचेयर में बैठे अमरजीत जब अपनी बहन कुलसुम से मिले तो दोनों की आंखें नम हो गई। करतारपुर गुरुद्वारा दरबार साहिब में जिसने भी भाई-बहन का मिलन देखा वो अपनी आंखों में आंसू आने से रोक नहीं पाया। करतारपुर कॉरिडोर ने एक बार फिर से एक और परिवार को जोड़ दिया, 1947 में बंटवारे के वक्त अमरजीत सिंह अपनी एक बहन के साथ भारत में रह गए जबकि उनके मुस्लिम माता-पिता पाकिस्तान चले गए। 

जलंधर निवासी अमरजीत सिंह को जब पता लगा कि उनकी बहन जिंदा है तो अपनी मुस्लिम बहन से मिलने के लिए अमरजीत वाघा बॉर्डर के रास्ते करतारपुर पहुंचे। वहीं  उनकी बहन 65 वर्षीय कुलसुम अख्तर अपने बेटे शहजाद अहमद और परिवार के सदस्यों के साथ अपने भाई से मिलने के लिए फैसलाबाद में करतारपुर पहुंची थी। कुलसुम अख्तर ने जब अपने बड़े भाई अमरजीत को देखा तो दोनों एक दूसरे को गले लगाकर रोते रहे। 

अमरजीत को याद कर रोती थी मां

कुलसुम ने बताया कि उनके माता-पिता 1947 में भारत के जालंधर में अपने छोटे भाई और एक बहन को छोड़कर पाकिस्तान आ गए थे। कुलसुम पाकिस्तान में पैदा हुई थी और अपनी मां से अपने खोए हुए भाई और एक बहन के बारे में सुनती रहती थी। जब भी मां को अपने लापता बच्चों की याद आती थी तो उनकी मां हर बार रोती थी। कुलसुम ने कहा कि उन्हें कोई उम्मीद नहीं थी कि वह कभी भी अपने भाई और बहन से मिल पाएंगी। 

कैसे मिले पिछड़े भाई-बहन

कुलसुम ने बताया कि कुछ साल पहले उनके पिता के दोस्त सरदार दारा सिंह भारत से पाकिस्तान में आकर उनसे मिलने आए थे. कुलसुम की मां ने सरदार दारा सिंह को अपने बेटे और बेटी के बारे में बताया था, जो भारत में छूट गए थे साथ ही उन्होंने दारा सिंह को जलंधर में अपने गांव का नाम और अपने घर का पता भी बताया था। जिसके बाद दारा सिंह जालंधर के पडावान गांव पहुंचे और उन्होंने पाकिस्तान में रह रहे परिवार को बताया कि उनका बेटा जिंदा है लेकिन बेटी की मौत हो चुकी है और उनके बेटे का नाम अमरजीत सिंह है जिसको 1947 में एक सिख परिवार ने गोद लिया था। भाई की जानकारी मिलते ही अमरजीत और कुलसुम अख्तर ने फोन पर बात की और करतारपुर कॉरिडोर का इस्तेमाल कर दोनों भाई-बहनों की मुलाकात हकीकत बन गई।

भाई से मिलने की खुशी इतनी थी कि कुलसुम ने को उनके पीठ का दर्द भी नहीं रोक सका और वो अपने भाई से मिलने करतारपुर पहुंच गई। अमरजीत सिंह ने कहा कि जब उन्हें पता चला कि उनके असली माता-पिता पाकिस्तान में हैं और मुसलमान हैं, तो यह उनके लिए यह एक झटका था। हालांकि, उन्होंने अपने दिल को दिलासा दिया कि बंटवारे के वक्त उनके अपने परिवार के अलावा कई परिवार एक-दूसरे से अलग हो गए थे। अमरजीत हमेशा से अपनी बहन और भाइयों से मिलना चाहते थे। उन्हें यह जानकर खुशी हुई कि उनके तीन भाई जिंदा है पर एक भाई जो जर्मनी में था उनका निधन हो चुका है।

अमरजीत ने कहा कि वह अपने परिवार के साथ समय बिताने के लिए पाकिस्तान आएंगे साथ ही अपने परिवार को भी भारत ले जाना चाहते हैं ताकि वे अपने सिख परिवार से उन्हें मिला सकें। 75 साल से जुदा हुए भाई-बहन एक-दूसरे के लिए ढेर सारे तोहफे भी साथ लाए थे। कुलसुम के बेटे शहजाद अहमद ने कहा कि वह अपने चाचा के बारे में अपनी दादी और मां से सुनते थे। उन्होंने कहा कि मेरे चाचा का पालन-पोषण एक सिख परिवार में हुआ है इसलिए वह एक सिख हैं और मेरे परिवार और मुझे इससे कोई समस्या नहीं है। शहजाद खुश हैं कि 75 साल बाद उनकी मां को उनका खोया हुआ भाई मिल गया।

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