- बिहार में जातिगत जनगणना इस साल शुरू हो सकती है।
- मोदी सरकार ने फिलहाल जातिगत जनगणना नहीं कराने का फैसला किया है।
- मंडल कमीशन की रिपोर्ट (1979 में पेश की गई थी) के अनुसार देश में 52 फीसदी ओबीसी जातियां थी।
Castes Census in Bihar: विधान सभा चुनाव के बाद भाजपा के साये में आ चुके नीतीश कुमार अब नए रंग में हैं। पिछले दो साल से कई मौकों पर बड़े भाई होने का अहसास कराने वाली भाजपा, अब कुछ बैक फुट पर नजर आ रही है। मामला जातिगत जनगणना का है, जिसको लेकर नीतीश कुमार ने बड़ा दांव चल दिया है। नीतीश सरकार ने सर्वदलीय बैठक के बाद ऐलान कर दिया है कि वह राज्य में जातिगत जनगणना कराएगी। इस फैसले के बाद भाजपा के सामने अलग ही चुनौती खड़ी हो गई है। क्योंकि जातिगत जनगणना ऐसा मुद्दा है, जिस मामले पर वह केंद्र में तो उसके खिलाफ है लेकिन बिहार में नीतीश सरकार का हिस्सा होने की वजह से वह उसके समर्थन में खड़ी है। साफ है कि भाजपा कहीं हां कहीं नहीं के भंवर में फंस गई है। और इस बार नीतीश कुमार का दांव ऐसा है कि भाजपा को उनके आगे छोटा भाई बन कर ही रहना होगा।
नवंबर में हो सकती है जातिगत जनगणना ?
बुधवार को सर्वदलीय बैठक के बाद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा कि राज्य में जाति आधारित गणना की जाएगी, सर्वदलीय बैठक के दौरान जो चर्चा हुई है इसी के आधार पर बहुत जल्द कैबिनेट का निर्णय होगा। उन्होंने यह भी कहा कि लोग चाहे किसी भी जाति या धर्म के हों, इसके तहत पूरा आकलन किया जाएगा । वहीं जातिगत जनगणना पर भाजपा के विरोध के सवाल पर उन्होंने कहा कि ऐसी कोई बात नहीं थी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से जब मिलने गए थे तो भाजपा भी साथ में गई थी । उन्होंने यह भी कहा कि विरोध शब्द ठीक नहीं है। राष्ट्रीय स्तर पर जातीय जनगणना नहीं होगी। ये बात कही गई है, लेकिन राज्य तो कर सकते है। बैठक के बाद राजद नेता तेजस्वी यादव ने मांग करते हुए कहा है कि जातिगत जनगणना नवंबर में शुरू कर दी जाय। क्योंकि उस समय छठ पर्व की वजह से बिहार से बाहर गए लोग भी लौट आते हैं।
क्या है जातिगत जनगणना
असल में देश में जनगणना की शुरूआत साल 1860 से शुरू होने के बाद 1931 तक जातिगत जनगणना की जाती थी। लेकिन आजादी के बाद से शुरू हुई जनगणना में केवल अनुसूचित जाति और अनुसूचित जन जाति को अलग से शामिल किया जा रहा है। उसमें ओबीसी जातियों की अलग से जनगणना नहीं होती है। इसके अलावा पिछड़ों के अधिकार नहीं छिनना चाहिए। यानी अगड़ी जाति के लोग पिछड़े के दायरे मे में नहीं आ जाएं। लेकिन अब यह मांग उठने लगी है कि देश में ओबीसी की भी गणना की जाय। जिससे कि ओबीसी की सही स्थिति का अंदाजा लग सके। हालांकि केंद्र सरकार ने इस साल होने वाली जनगणना को लेकर यह स्पष्ट कर दिया है कि जातिगत जनगणना को शामिल नहीं किया जाएगा।
भाजपा की क्या है उधेड़बुन
इसके अलावा बिहार में भाजपा इस बात का भी मुद्दा उठा रही है कि राज्य में रोहिंग्या और बांग्लादेश के बहुत मुसलमान राज्य में मौजूद हैं। जातिगत जनगणना के नाम पर अगर वह गलती से शामिल कर लिए जाते हैं, तो राज्य में नागरिकता का भी एक अलग मुद्दा खड़ा हो सकता है। जिससे राज्य का वोट समीकरण बिगड़ सकता है। जो उसके हित में कतई नहीं होगा। लेकिन अगर वह जातिगत जनगणना के विरोध में खड़ी होती है तो वह राज्य में अलग-थलग पड़ सकती है। ऐसे में पिछड़ी जातियां उसके खिलाफ हो सकती है।
जातिगत जनगणना में क्या है पेंच
जातिगत जनगणना जब होगी तो वह सभी धर्मों में पिछड़ी जातियों के आधार पर की जाएगी। अब इसमें एक ऐसा पेंच है, जो किसी भी सरकार के लिए परेशानी का सबब बन सकता है। अगर जातिगत जनगणना होती है तो अगर ओबीसी की संख्या में बढ़ोतरी या कमी हो गई। उसमें अगर मौजूदा संख्या में कोई बड़ा बदलाव होता है तो यह एक बड़ा राजनीतिक मुद्दा बन सकता है। और आरक्षण की नई मांग खड़ी हो सकती है।
बिहार में होगी जातीय जनगणना, नीतीश कुमार बोले- सर्वसम्मति से फैसला
मंडल कमीशन की रिपोर्ट (1979 में पेश की गई थी) के अनुसार देश में 52 फीसदी ओबीसी जातियां थी। और 1990 में विश्वनाथ प्रताप सिंह द्वारा एक सिफारिश मांगने फैसले ने पूरे भारत, खासकर उत्तर भारत की राजनीति को ही बदल कर रख दिया। इस तरह का डर ओबीसी जातिगत जनगणना से भी दिखता है