- ज्ञानवापी केस में जिला जज के फैसले पर मुस्लिम पक्ष को है ऐतराज
- मुस्लिम पक्ष का हाईकोर्ट में फैसले के खिलाफ अर्जी दाखिल करने का फैसला
- हिंदू पक्ष की तरफ से लगाई गई कैविएट
वाराणसी की ज्ञानवापी मस्जिद में पूजा के अधिकार को लेकर आए जिला जज के फैसले के बाद हिंदू पक्ष ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय में कैवियट दाखिल कर दी है। कैवियेट में मांग की गई है कि अगर जिला जज के फैसले के खिलाफ मुस्लिम पक्ष इलाहाबाद हाईकोर्ट में कोई रिवीजन याचिका दाखिल की जाती है तो हिंदू पक्ष को भी अपना पक्ष रखने का मौका दिया जाए।
हिंदू पक्ष के वकील का बयान
हिंदू पक्ष के वकील विष्णु शंकर जैन ने टाइम्स नाउ नवभारत को बताया कि, 'गौरी श्रृंगार मंदिर में पूजा का अधिकार मांगने वाली चार हिंदू महिलाओं की तरफ से कैविएट दाखिल की गई है। इलाहाबाद हाईकोर्ट से हमने मांग की है अगर मुस्लिम पक्ष की तरफ से ज्ञानवापी को लेकर ऑर्डर 7, रूल 11 के फैसले के खिलाफ कोई रिवजीन या एप्लिकेशन फाइल होती है बिना हिंदू पक्ष को सुने हुए कोई आदेश न दिया जाए और याचिका की कॉपी भी दी जाए।'
आपको बता दें कि 12 सितंबर को वाराणसी के जिला जज अजय कृष्ण विश्वेष ने मुस्लिम पक्ष की उस याचिका को खारिज कर दिया था जिसमें ज्ञानवापी मस्जिद में गौरी श्रृंगार की पूजा की मांग करने वाली महिलाओं को न सुनने की मांग की थी। यानी कि कोर्ट ने हिंदू पक्ष की याचिका को ऑर्डर 7, रूल 11 के तहत सुनवाई के लायक माना था।
क्या है कैविएट?
आम भाषा में समझें तो कैविएट एक तरह की याचिका ही है, जिसमें कोई भी पक्षकार किसी मामले में पार्टी बनाए जाने की संभावना के आधार पर न्यायालय के समक्ष एक कैविएट दाखिल करके यह कह सकता है कि अगर उससे जुड़ा हुआ मामला कोर्ट में आए तो उसे सुने बगैर मामले में किसी प्रकार का कोई भी आदेश नहीं दिया जाए। सिविल प्रोसीजर कोड की धारा 148 A में कैविएट दाखिल करने के अधिकार के बारे में लिखा हुआ है।
किसी भी देश के कानून में नैसर्गिक न्याय का सिद्धांत होता है जिसके तहत सभी पक्षकारों को बराबर सुनवाई का अधिकार मिला है। यानी किसी भी केस में सभी पक्षकारों से बराबर सबूत लिए जाएं और उनकी दलीलों को सुनने के बाद ही कोर्ट कोई फैसला सुनाए।