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कनिका कपूर जैसे लोगों के लिए सीख देते हैं ये मजदूर, गांव पहुंचकर पेड़ की टहनियों में कर रहे हैं क्वारंटाइन

Updated Mar 28, 2020 | 18:58 IST

पश्चिम बंगाल में दूसरे राज्यों से अपने घर लौट रहे लोगों ने खुद को घर से अलग रखने के लिए पेड़ों में अपना आशियाना बना लिया है।

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तस्वीर साभार:&nbspANI
कोरोना का खौफ, मजदूरों ने बरगद की टहनियों पर बनाया आशियाना
मुख्य बातें
  • देश में कोरोना के बढ़ते मामलों के बीच प्रवासी श्रमिक अपने राज्यों में कर रहे हैं वापसी
  • पश्चिम बंगाल के पुरुलिया के बलरामपुर में बाहर से लौटे ग्रामीणों ने पेड़ों में बनाया आशियाना
  • लोगों ने पेड़ की टहनियों में अपना आशियाना बनाया, 14 दिन तक रहेंगे यहां

कोलकाता: देशभर में दस्तक दे चुके हैं कोरोना वायरस की सबसे ज्यादा मार दिहाड़ी मजदूरों, श्रमिकों और अन्य रोज कमाने वाले तबके पर पड़ी है। ये सभी लोग अब महानगरों से धीरे-धीरे अपने गांवों की तरफ पलायन कर रहे हैं। संक्रमण को फैलने से रोकने के लिए केंद्र सरकार द्वारा देश में 21 दिनों का लॉकडाउन किया गया है ऐसे में ये लोग पैदल ही अपने गांवों की तरफ जा रहे हैं। कुछ लोग जो गांव जा रहे हैं उन्होंने खुद को आइसोलेशन में भी रख लिया है और ऐसा ही मामला पश्चिम बंगाल से आया है।

पेड़ में बनाया घर

राज्य के पुरुलिया में बलरामपुर क्षेत्र के वांगीडी गाँव के कुछ  ग्रामीण हाल ही में चेन्नई से लौटे हैं। ऐसे में इनहें डर है कि कई इनमें से कोई एक भी कोरोना संक्रमित निकला तो पूरे समाज के लिए दिक्कत हो जाएगी। ऐसे में इन ग्रामीणों ने घर में अलग कमरा नहीं होने के चलते पेड़ को ही आशियाना बना लिया है। खुद को घर से 14 दिन अलग करने के लिए इन्होंने बरगद के पेड़ की टहनियों पर अपना घर बना लिया है। गांव के लोग इस तरह के अस्थायी कैंप हाथियों के हमले से बचने के लिए बनाते हैं।

दूसरों के लिए पेश कर रहे हैं मिसाल

 इन लोगों ने गांव लौटने के साथ ही मेडिकल चैक अप भी कराया था और डाक्टर ने इन्हें 14 दिन तक क्वारंटाइन में रहने की सलाह दी थी जिसका ये पूरा पाल कर रहे हैं। इन ग्रामीणों की पहल वाकई में सराहनीय तो है ही साथ में कनिका कपूर से जैसे उन लोगों के लिए एक उदाहरण भी है जो कोरोना पॉजिटिव होने के बावजूद भी पार्टियों में शिरकत करते रहे। इन लोगों ने चारपाई के साथ जो आशियाना बनाया है उसमें चारों तरफ से मच्छरदानी लगाई है और फिर उसे पेड़ की टहनियों से बांध दिया है। 

किसी को नहीं आने देते हैं करीब

 इन सभी को इनके परिवारों द्वारा समय-समय पर भोजन दिया जाता है लेकिन ये किसी को अपने करीब नहीं आने देते हैं। यहां तक कि ये लोग परिवार के सदस्यों को अपने बर्तन भी नहीं धोते हैं। सभी लोग लगातार साबुन से हाथ धोते हैं। गांववाले बताते हैं कि इस तरह के कैंप वो अक्सर जानवरों से खुद को बचाने के लिए करते हैं।

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