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- दिल्ली हाईकोर्ट ने 23 हफ्ते की गर्भवती अविवाहित महिला को नहीं दी गर्भपात की अनुमति
- याचिकाकर्ता को शिशु के जन्म तक कहीं सुरक्षित रखा जाए- कोर्ट
- हम बच्चे के पालन-पोषण के लिए मजबूर नहीं कर रहे हैं- कोर्ट
नई दिल्ली: दिल्ली उच्च न्यायालय ने शुक्रवार को कहा कि वह 23 हफ्ते की गर्भवती एक अविवाहित महिला को गर्भपात कराने की अनुमति नहीं देगा, क्योंकि यह वास्तव में भ्रूण हत्या के समान है। उच्च न्यायालय ने यह भी कहा कि कानून अविवाहित महिलाओं को गर्भ के चिकित्सकीय समापन के लिए समय देता है और विधायिका ने ‘आपसी सहमति के संबंध को अर्थपूर्ण ढंग से उस श्रेणी के मामलों से बाहर रखा है’, जिनमें 20वें हफ्ते के बाद और 24वें सप्ताह तक गर्भपात कराने की अनुमति है।
गोद दिया जा सकता है बच्चा- कोर्ट
मुख्य न्यायाधीश सतीश चंद्र शर्मा और न्यायमूर्ति सुब्रह्मण्यम प्रसाद की पीठ ने गर्भपात की अनुमति मांगने वाली अविवाहित महिला की याचिका पर सुनवाई करते हुए सुझाव दिया कि याचिकाकर्ता को शिशु के जन्म तक ‘कहीं सुरक्षित’ रखा जाए और बाद में इस बच्चे को गोद दिया जा सकता है। पीठ ने कहा, 'हम सुनिश्चित करेंगे कि महिला को कहीं सुरक्षित रखा जाए और वह बच्चे को जन्म देने के बाद उसे छोड़कर जा सकती है। गोद लेने के इच्छुक लोगों की लंबी कतार है।'
वकील ने दिए तर्क
अदालत ने कहा कि 36 सप्ताह की गर्भावस्था में से लगभग 24 हफ्ते पूरे हो चुके हैं। उसने कहा, 'हम आपको गर्भस्थ शिशु की हत्या करने की अनुमति नहीं देंगे। हमें खेद है। यह वास्तव में भ्रूण हत्या के समान होगा।'याचिकाकर्ता की ओर से पेश वकील ने कहा कि महिला अविवाहित होने के कारण गहरी मानसिक पीड़ा से गुजर रही है और वह बच्चे का पालन-पोषण करने की स्थिति में नहीं है। वकील ने तर्क दिया कि गर्भपात कानून के तहत अविवाहित महिलाओं के मामले में 20 सप्ताह के बाद गर्भपात पर प्रतिबंध, तलाकशुदा और कुछ अन्य श्रेणी की महिलाओं के लिये 24 सप्ताह तक उपलब्ध राहत के मद्देनजर भेदभावपूर्ण है।
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शिशु का रखा जाएगा पूरा खयाल
वकील ने कहा कि कानून अविवाहित महिलाओं को 20 सप्ताह तक गर्भपात कराने की अनुमति देता है, लेकिन याचिकाकर्ता, जो सहमति से संबंध में थी, उसने साथी द्वारा ‘धोखा दिए’ जाने के कारण मौजूदा चरण में उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया है। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि गर्भ का चिकित्सकीय समापन कानून का मकसद ‘सुरक्षित गर्भपात’ सुनिश्चित करना है।वकील ने उच्च न्यायालय के सुझाव को भी ठुकरा दिया और कहा कि याचिकाकर्ता शिशु को जन्म नहीं देना चाहती है।याचिकाकर्ता को दिए सुझाव में अदालत ने कहा था कि वह उसे बच्चे के पालन-पोषण के लिए मजबूर नहीं कर रही है और शिशु के जन्म तक उसका पूरा ख्याल रखा जाएगा।
सुनवाई के दौरान अदालत ने कहा कि वह गर्भ का चिकित्सकीय समापन कानून के तहत चिकित्सकीय राय लेने के लिए याचिकाकर्ता के मामले को एम्स के पास भेजेगी। हालांकि, केंद्र सरकार के वकील ने कहा कि कुछ खास परिस्थितियों में इस तरह की राय मांगी जा सकती है और याचिकाकर्ता का मामला इनके अधीन नहीं था।
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