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Delhi Violence: नफरत फैलाने वालों को संदेश, देश का खून देश के नाम संदेश से सीआरपीएफ ने की अनोखी पहल

Updated Feb 27, 2020 | 23:03 IST

दिल्ली हिंसा में अब तक 38 लोगों की मौत हो चुकी है। अस्पतालों में खून की कमी न हो इसके लिए केंद्रीय सुरक्षाबलों से जुड़े कर्मियों ने खून डोनेट किये।

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दिल्ली हिंसा में अब तक 38 की मौत
मुख्य बातें
  • केंद्रीय सुरक्षाबलों के जवानों ने ब्लड डोनेट किया, जीटीबी में सबसे ज्यादा घायल भर्ती
  • दिल्ली हिंसा में अब तक 38 लोगों की मौत, अलग अलग अस्पतालों में निधन
  • दिल्ली हिंसा की जांच के लिए एसआईटी की दो टीमें गठित

नई दिल्ली। बवंडर ऐसे ही उठता है और अपने पीछे सिर्फ और सिर्फ तबाही छोड़ जाता है। जाफराबाद, मौजपुर, ब्रह्मपुरी, कर्दमपुरी, करावल नगर, चांद बाग की सड़के खुद से सवाल कर रही हैं आखिर किसकी नजर लग गई। जो हाथ एक दूसरे की मदद के लिए उठते थे वो एक दूसरे की गर्दन तक पहुंच गए और नतीजा सबके सामने है। दिल्ली हिंसा में अब तक अलग अलग अस्पतालों में 38 लोगों की मौत हो चुकी है। अस्पतालों के वार्डों में चीख पुकार है। पोस्टमार्टम हाउस के सामने अपनों की शरीर से चीड़ फाड़ होते हुए देख रहे हैं। एक तरह की चुप्पी है कि किसके नफरत का शिकार वो बन गए तो दूसरी तरफ इंसानियत की तस्वीरें भी सामने आई हैं। 

'देश का खून, देश के नाम'
सीआरपीएफ का कहना है कि गुरु तेग बहादुर अस्पताल में खून की कमी न रहे इसके लिए ब्लड डोनेट किए जाने का फैसला लिया गया। दिल्ली हिंसा में ज्यादातर घायल लोगों को जीटीबी अस्पताल में भर्ती कराया गया है। आपको बता दें कि हिंसा में मरने वालों की संख्या गुरुवार को बढ़कर 38 हो गई और 200 से अधिक लोग घायल हैं। मृतकों के ये आंकड़े तीन अलग अलग अस्पतालों के हैं। सबसे ज्यादा मौत जीटीबी अस्पताल में हुई है। दिल्ली हिंसा मामले में अब तक 18 एफआईआर दर्ज की गई हैं जबकि 106 लोगों को अरेस्ट किया गया है। घटना की जांच के लिए एसआईटी भी गठित कर दी गई है।


नफरत को मुंहतोड़ जवाब

केंद्रीय सुरक्षा बलों के करीब 1000 कर्मियों ने एम्स की तरफ आयोजित कैम्प में ब्लड डोनेशन कार्यक्रम में शामिल हुए। इसके अंतर्गत सीआरपीएफ, बीएसएफ, सीआईएसएफ और आईटीबीपी के कर्मियों ने खून दिया। ब्लड देने वाले सुरक्षाकर्मियों ने कहा कि हमारा मकसद यही है कि नफरत के माहौल में कमी आए और पहले की तरह ही सभी लोग मिलजुल कर रहें। हिंसा किसी भी समस्या का समाधान नहीं है। समाज में नफरत फैलाने वालों की संख्या बहुत कम होती है। लेकिन जब जिम्मेदार लोग आंखें बंद कर लेते हैं तो हालात नियंत्रण से बाहर चले जाते हैं। 

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