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Delhi: दंगे में मकान जलकर खाक, अब ना कमाई का जरिया ना ठिकाना, सड़कों पर बीत रहा दिन पड़ोसी के घर रात

Updated Feb 28, 2020 | 14:34 IST

गोकलपुरी का एक हिंदू परिवार है जिसके सिर से उस समय छत उठ गई और वह दर-दर की ठोकरें खाने को मजबूर हो गया जब दंगाइयों ने उनके मकान को आग लगाकर खाक कर दिया।

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तस्वीर साभार:&nbspAP
दिल्ली में दंगा

नई दिल्ली : उत्तरपूर्वी दिल्ली के दंगाग्रस्त इलाकों में हिंसा में किसी की जान गई, किसी का कोई अपना हमेशा के लिए चला गया, किसी का रोजगार छिना तो कोई बेघर हो गया। यहां खौफजदा लोगों की अपनी-अपनी आपबीती है और उन्हीं में से गोकलपुरी का एक हिंदू परिवार है जिसके सिर से उस समय छत उठ गई और वह दर-दर की ठोकरें खाने को मजबूर हो गया जब उनकी आवासीय इमारत में भूतल पर बनी कुछ मुसलमानों की दुकानों में दंगाइयों ने आग लगा दी।

छह सदस्यों के इस परिवार को अब अपने दिन सड़कों पर घूमते हुए और रातें एक पड़ोसी के घर बितानी पड़ रही है। मंगलवार के दिन को याद करके उनके रोंगटे खड़े हो जाते हैं जब दो मंजिला इमारत के भूतल पर मुसलमानों की तीन दुकानों को फूंक दिया गया। ये दुकानदार इस इमारत में नहीं रहते थे।

दंगाइयों ने जला दी दुकानें
परिवार के एक सदस्य दिहाड़ी मजदूर 20 वर्षीय करण ने बताया कि सोमवार और मंगलवार को गोकलपुरी के भागीरथी विहार की सड़कों और गलियों में भीड़ एकत्रित हो गई। उसने बताया कि भीड़ ने मंगलवार शाम को भारी पथराव शुरू कर दिया। उसने कहा, ‘मैं अपनी 13 साल की बहन के साथ किराये पर लिए मकान की पहली मंजिल पर था। शोर के बारे में पता लगाने के लिए मैं बाहर निकला। स्थानीय लोगों ने भीड़ को रोकने की कोशिश की लेकिन उन्होंने मुसलमान किरायेदारों की तीन दुकानें जला दी।’

नीचे की दुकानों में लगी आग उपर तक पहुंची
ये दुकानें एक कबाड़ी की, एक टीवी मैकेनिक की और एक दुकान कैंचियों में धार लगाने वाले एक शख्स की थीं। आग की लपटें दुकानों से फैल कर पहली मंजिल तक पहुंच गई जहां करण अपने परिवार के साथ रहता था। वह अपनी बहन को बचाने सीढ़ियों की तरफ भागा। करण ने कहा, ‘मेरे माता-पिता उस वक्त घर पर नहीं थे, बाद में वे लौटे और हमने जरूरी सामान इकट्ठा किया तथा अपनी जान बचाकर भागे। आग भूतल से पहली मंजिल पर हमारे घर तक फैल गई।’

नहीं रहा ठिकाना ना रहा कमाई का जरिया
फेरी लगाने वाले उसके बड़े भाई आशीष ने बताया कि पूरे परिवार ने पड़ोस में शरण ली और अब उनके लिए अपनी जरूरतें पूरी करना मुश्किल हो रहा है। आशीष ने कहा, ‘हम गरीब लोग हैं। हममें से कोई भी कमाने नहीं जा पा रहा है। हम स्थिति के सामान्य होने का इंतजार कर रहे हैं। यह मकान अब रहने लायक नहीं रह गया है। हमें कहीं ओर जाना पड़ेगा।’

सड़कों पर बिता रहे दिन पड़ोंसियों के घर रात
उसने बताया कि परिवार अपने कमरों में नहीं जा पा रहा क्योंकि आग लगने के कारण भीतरी हिस्सा बहुत गर्म है। उसने कहा, ‘हम दिन का ज्यादातर वक्त सड़क पर बिता रहे हैं और रात में एक पड़ोसी के घर में सो रहे हैं।’ परिवार के एक पड़ोसी किशन ने बताया कि मदद के लिए पुलिस को कई बार फोन किया गया लेकिन कोई मदद नहीं पहुंची।

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