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Dinesh Trivedi: क्या टीएमसी में अब घुटनतंत्र, कुछ कहता है दिनेश त्रिवेदी का इस्तीफा

Updated Feb 12, 2021 | 16:13 IST

टीएमसी के राज्यसभा सांसद दिनेश त्रिवेदी अब ममता बनर्जी के साथ नहीं हैं। दरअसल उन्होंने अपने इस्तीफे का ऐलान राज्यसभा में किया जो चौंकाने वाला है।

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टीएमसी से दिनेश त्रिवेदी का नाता टूट चुका है
मुख्य बातें
  • राज्यसभा में बहस के दौरान दिनेश त्रिवेदी ने टीएमसी से दिया इस्तीफा
  • दिनेश त्रिवेदी बोले, पार्टी में महसूस कर रहा था घुटन
  • शुभेंदु अधिकारी, राजीब बनर्जी के बाद दिनेश त्रिवेदी ने टीएमसी में भाई भतीजावाद का किया जिक्र

नई दिल्ली। बंगाल में विधानसभा चुनावों के सिए अभी तारीखों का इंतजार है। लेकिन जिस तरह से टीएमसी में भगदड़ मची हुई है वो किस तरह के संकेत दे रही है उसे समझना जरूरी है। शुक्रवार को राज्यसभा में बहस जारी थी। उसी वक्त ममता बनर्जी के खास सिपहसालारों में से एक दिनेश त्रिवेदी ने पार्टी छोड़ने का ऐलान कर दिया। वैसे तो पार्टी बदल करते रहते हैं। लेकिन जिस तरह से दिनेश त्रिवेदी ने इस्तीफे के लिए राज्यसभा को चुना वो हैरान करने वाला था। इस्तीफा देने के बाद उन्होंने क्या कुछ कहा पहले उसे जानना जरूरी है।

'महसूस कर रहा था घुटन'
राज्य सभा में  TMC सांसद के पद से इस्तीफा देने के बाददिनेश त्रिवेदी ने कहा कि  यह मेरी आंतरिक आवाज थी, मैं संसद में मूकदर्शक के रूप में नहीं जा सकता था, जो कि विशेष रूप से बंगाल में चल रहा है। कोई मंच नहीं था जहां मैं अपनी आवाज उठा सकता था। अगर मैं इस्तीफा नहीं देता तो वो बंगाल के साथ अन्याय होता। 

2011 में टीएमसी ने रचा था इतिहास
अगर बंगाल में टीएमसी के उभार को देखें तो जानकार बताते हैं कि 2011 के पहले ममता बनर्जी सीपीएम के खिलाफ माहौल बनाने में कामयाब हो चुकी थीं। जमीनी स्तर पर टीएमसी के साथ गैर वाम धड़ा तेजी से जुड़ी जिसमें कांग्रेस को समर्थन देने वाले लोग भी शामिल थे। अगर बात करें बीजेपी की तो उस वक्त बीजेपी शैशव अवस्था में थी। वाम दलों के खिलाफ ममता बनर्जी जनमत को अपने पक्ष में करने में कामयाब रहीं और उसका फायदा भी उन्हें मिला। 2011 में उन्होंने इतिहास भी रच दिया। वाम दलों के खिलाफ लड़ाई में ममता बनर्जी के साथ कई बड़े कद्दावर चेहरे जुड़े और उनमें दिनेश त्रिवेदी भी थे।

भाई भतीजावाद का सभी बागियों ने लगाया आरोप
जानकार कहते हैं कि दिनेश त्रिवेदी का जमीनी आधार तो नहीं था। लेकिन पार्टी को एक ऐसे चेहरे की जरूरत थी जो राष्ट्रीय स्तर पर पार्टी को आवाज दे सके और उस खांचें में ममता बनर्जी उन्हें फिट पाती थीं। 2011 से 2016 के बीच टीएमसी में किसी को भी पार्टी के नेतृत्व से शिकायत नहीं थी। लेकिन 2016 के बाद जिस तरह से दीदी के भतीजे अभिषेक बनर्जी का कद बढ़ने लगा उसके बाद पार्टी के जमीनी स्तर के नेता अपने आपको उपेक्षित महसूस करने लगे जिसकी तस्दीक शुभेंदु अधिकारी, राजीब बनर्जी जैसे नेताओं के बयान से होती है। शुभेंदु अधिकारी ने कहा था कि उन्हें ममता जी से किसी तरह की परेशानी नहीं थी। लेकिन जिस तरह से अभिषेक बनर्जी का दबदबा बढ़ने लगा उसके बाद महसूस हुआ कि टीएमसी भी प्राइवेट कंपनी बन गई है। 

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