नई दिल्ली : आज जबकि पूरी दुनिया कोराना वायरस की महामारी से जूझ रही है, हर जगह डॉक्टर्स और स्वास्थ्यकर्मियों की भूमिका महत्वपूर्ण हो गई है, जो तमाम खतरों के बावजूद मरीजों की देखभाल में किसी 'योद्धा' की तरह जुटे हुए हैं। निश्चित रूप से यह उनके लिए मुश्किल वक्त है, जो कई-कई दिनों तक अपने घरवालों से नहीं मिल पाते। इस बीमारी का अब तक कोई उपचार नहीं मिल पाने ने उनकी मुश्किलें और बढ़ा दी हैं।
15-18 घंटे काम करते हैं डॉक्टर्स
दिल्ली में अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (AIIMS), सर गंगा राम अस्पताल और लोक नायक जय प्रकाश नारायण अस्पताल में कोविड-19 वार्ड में तैनात डॉक्टर्स व स्वास्थ्यकर्मियों ने बताया कि यह वक्त उनके लिए कितना मुश्किल हो गया है, जब उपचार के दौरान खुद भी संक्रमण की चपेट में आने की आशंका के बीच उन्हें दिन में 15 से 18 घंटे तक काम करना होता है और वे बाद में भी फोन पर उनसे जुड़े रहते हैं।
'पता नहीं होता कब खत्म होगा काम'
एम्स में कोरोना के मरीजों का उपचार करने वाले डॉक्टर राकेश गर्ग ने बताया कि संक्रमण के खतरे के कारण वह नियमित तौर पर घर नहीं जा पाते, क्योंकि घर में उनके बुजुर्ग माता-पिता और छोटे बच्चे भी हैं, जिन्हें संक्रमण का खतरा अधिक होता है। उन्होंने बताया, 'मेरा दिन सुबह 6 बजे से शुरू हो जाता है, पर मुझे खुद पता नहीं होता कि मेरा काम कब खत्म होगा।'
'7 घंटे से अधिक पीपीई किट पहनना मुश्किल'
डॉक्टर्स की सुरक्षा के लिए पर्सनल प्रोटेक्टिव इक्विपमेंट (PPE) महत्वपूर्ण होता है, लेकिन इसे पहने रहना भी कम मुश्किल नहीं होता। एलएनजेपी और मौलाना आजाद मेडिकल कॉलेज में स्पेशल टास्क फोर्स के नोडल अधिकारी डॉ. सुरेश कहते हैं, 'हालांकि पीपीई किट हमारी सुरक्षा के लिए बेहद महत्वपूर्ण है, लेकिन इसे पहने रखना बेहद मुश्किल होता है। कोई भी इसे 7 घंटे से ज्यादा नहीं पहन सकता।'
संशय से घिर होते हैं डॉक्टर्स
स्वास्थ्यकर्मी किस दबाव के बीच काम करते हैं, इसका जिक्र करते हुए सर गंगाराम अस्पताल में कार्यरत डॉ. केशव कहते हैं, 'मरीजों का इलाज करते हुए हम कई तरह के संशय से भी घिरे होते हैं। मैं अपना स्टेथोस्कोप तक घर लेकर नहीं जाता। घर जाने पर सबसे पहले खुद को सैनिटाइज करते हैं और खुद भी करीब दो सप्ताह तक क्वारंटीन रखते हैं। हम लगातार अपने डर पर काबू पाते हुए संकट की इस घड़ी में काम कर रहे हैं।'
दिलो-दिमाग पर हावी रहता है डर
वहीं, एक सरकारी हॉस्पिटल के कोविड वार्ड कार्यकरत नर्स का कहना है कि उनका बीते तीन सप्ताह से घर जाना नहीं हो पाया है क्योंकि घर में छोटे बच्चे हैं, जिन्हें संक्रमण का खतरा अधिक होता है। एक अनजाना डर दिलो-दिमाग पर इस कदर हावी होता है कि नींद में डरावने सपने आते हैं और उनकी चीखें निकल जाती हैं, पर जब वे एक बार PPE किट को पहन लेते हैं तो फिर उन्हें काम के लिए मुस्तैद होना ही पड़ता है।