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शिंदे उद्धव की जड़ पर कर रहे हैं हमला, ठाणे-मुंबई की बगावत ठाकरे परिवार पर पड़ेगी भारी

Updated Jul 08, 2022 | 18:33 IST

Eknath Shinde and Uddhav Thackeray: एकनाथ शिंदे इस समय उद्धव ठाकरे की जड़ पर हमला कर रहे हैं। और जिस तरह विधायक,पार्षद उद्धव ठाकरे को थोक के भाव में छोड़कर जा रहे हैं, ऐसे में उनके लिए अपनी पार्टी बचाना बहुत मुश्किल दिख रहा है। 

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शिव सेना में थम नहीं रही है बगावत
मुख्य बातें
  • मुंबई-ठाणे शिव सेना का गढ़ रहा है। परेल से शिव सेना को पहला विधायक मिला था।
  • मुंबई नगर निगम पर शिव सेना का 1985 से कब्जा है।
  • शिव सेना के 16 विधायकों पर 11 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट सुनवाई करेगा।

Eknath Shinde and Uddhav Thackeray: अब यह तस्वीर साफ होती जा रही है कि 105 विधायक होने के बावजूद, भारतीय जनता पार्टी (BJP) ने एकनाथ शिंदे (Eknath Shinde) को मुख्यमंत्री क्यों बनाया ? एकनाथ शिंदे की उद्धव ठाकरे (Uddhav Thackeray) की बगावत केवल विधानसभा तक नहीं रह गई है। बल्कि अब वह उनके गढ़ को भी हिला रही है। शिंदे इस समय उद्धव ठाकरे की जड़ पर हमला कर रहे हैं। और जिस तरह विधायक,पार्षद उद्धव ठाकरे को थोक के भाव में छोड़कर जा रहे हैं, ऐसे में उनके लिए अपनी पार्टी बचाना बहुत मुश्किल दिख रहा है। 

मुंबई में ठाकरे की हिल रही है जड़े

मुंबई महानगर क्षेत्र में मुंबई, नवी मुंबई, ठाणे, उल्लहास नगर, कल्याण-डोबिंवाली सहित 9 प्रमुख नगर निगम हैं। इसमें ठाणे, नवी मुंबई से शिव सेना के ज्यादातर कॉरपोरेटर उद्धव ठाकरे से बगावत कर एक नाथ शिंदे के साथ चले गए हैं। ठाणे के 66 में से 65 , नवीं मुंबई के 32 पार्षद शिंदे के साथ चले गए हैं। इसके अलावा 30 पूर्व पार्षदों के भी शिंदे का हाथ थामने की खबर है। बगावत का सिलसिला यहीं नहीं रूका है। शिदें गुट के वरिष्ठ नेता गुलाब राव पाटिल ने दावा किया है कि शिव सेना के 18 में से 12 सांसद उनके संपर्क में हैं। यानी लोक सभा भी शिंदे गुट के पास पार्टी के दो तिहाई सांसदों के समर्थन का दावा है। इसके पहले 55 में से 40 विधायक पहले ही शिंदे के साथ आ गए हैं।

शिवसेना का पहला विधायक परेल से

बाला साहेब ठाकरे ने शिव सेना का गठन 1966 में हुआ था। और उसको चुनावों में पहली सफलता 1968 में मुंबई से मिली थी। जब मुंबई नगर निगम चुनाव में उसके 42 कॉरपोरेट चुनाव जीतकर आए थे। इसके बाद 1970 में मुंबई के परेल से ही शिव सेना को पहला विधायक मिला था। बाला साहेब ठाकरे के बेहद वामनराव महादिक ने यह सफलता दिलाई थी। उस सफलता के बाद से लगातार मुंबई में शिव सेना का दबदबा बढ़ता गया। उसी का असर है कि 1985 से शिव सेना का मुंबई नगर निगम पर कब्जा है। 

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इसी तरह ठाणे में एकनाथ शिंदे के गुरू आनंद दीघे ने  शिवेसना को मजबूत किया और उनकी हत्या के बाद दीघे का उत्तराधिकार जब एकनाथ शिंदे को मिला तो उसके बाद से लगातार शिव सेना मजबूत होती गई। और ठाणे में यह कहा जाने लगा कि ठाणे में शिव सेना का मतलब एकनाथ शिंदे हैं। शिंदे अब उसी ताकत को दिखा रहे हैं।

उद्धव ठाकरे की दूरी बनी मुसीबत

उद्धव ठाकरे के खिलाफ जब से बगावत हुई है, उस वक्त से बागी विधायक से लेकर पार्षद दूसरे नेता जो बात सबसे ज्यादा दोहरा रहे हैं, वह यही है कि उद्धव ठाकरे तक उनकी पहुंच नहीं है। जबकि एकनाथ शिंदे एक फोन पर बात कर लेते हैं। असल में उद्धव ठाकरे की यही कमजोरी शिंदे की ताकत बन गई है। जब वह ठाकरे के साथ शिव सेना में थे, तो उद्धव ठाकरे से ज्यादा उनका पार्टी के लोगों से संपर्क था। जिसका फायदा अब वह उठा रहे हैं। और भाजपा द्वारा मुख्यमंत्री की कुर्सी देने के बाद यह काम और आसान हो गया है।

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पार्टी छिनने का खतरा

जब से एकनाथ शिंदे बागी हुई हैं, वह यह बात साफ करते रहे हैं कि वह बाला साहेब ठाकरे की विरासत को आगे ले जाएंगे। मुख्यमंत्री बनने के बाद उनके कार्यालय में बाला साहेब ठाकरे की फोटो इस बात का संकेत हैं कि वह असली शिव सेना की कमान संभालना चाहते हैं। हालांकि उद्धव ठाकरे ने आज एक प्रेस कांफ्रेस में कहा कि तीन-धनुष हमारे ही पास रहेगा। उद्धव ठाकरे को सबसे ज्यादा 11जुलाई को सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई पर नजर है, जिसमें शिव सेना के 16 विधायकों की अयोग्यता पर फैसला कोर्ट करेगा। हालांकि इस बीच शिंदे गुट यह दावा कर रहा है कि वहीं असली शिव सेना है। साफ है कि अभी यह लड़ाई लंबी चलने वाली है और इसका सबसे ज्यादा फायदा भाजपा को मिलने की संभावना है।

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