- बांड पर रोक लगाने का कोई औचित्य नहीं-कोर्ट
- मोदी सरकार ने शुरू की यह योजना
- एक से 10 अप्रैल के बीच बांड जारी करेगा सरकार
नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने चुनावी बांड को लेकर शुक्रवार को अहम फैसला सुनाया। पांच राज्यों में विधानसभा चुनावों से पहले और अप्रैल महीने में जारी होने वाले चुनावी बांड (Electoral Bond) पर रोक लगाने की मांग करने वाली अर्जी खारिज कर दी। प्रधान न्यायाधीश एसए बोबडे की अगुवाई वाली पीठ ने कहा कि चुनावी 'शुचिता' का ख्याल रखने के लिए पहले से ही व्यवस्था मौजूद है। सीजेआई बोबडे, जस्टिस एएस बोपन्ना एवं जस्टिस वी रामासुब्रमण्यम की पीठ ने चुनावी बांड पर रोक लगाने से इंकार करते हुए कहा कि ये बांड 2018 से समय-समय पर जारी होते रहे हैं।
बांड पर रोक लगाने का कोई औचित्य नहीं-कोर्ट
पीठ ने आगे कहा कि बांड समय के थोड़े-थोड़े अंतराल पर जारी होते आए हैं। ये साल 2018, 2019 और 2020 में जारी हुए हैं। पीठ ने कहा, 'हमें चुनावी बांड पर रोक लगाने की मांग का कोई औचित्य नहीं दिखाई देता।' शीर्ष अदालत ने बुधवार को आशंका जताई कि चुनावी बांड के जरिए जुटाई गई राशि का गलत इस्तेमाल हो सकता है। कोर्ट ने सरकार से इस राशि के इस्तेमाल का लेखा-जोखा रखने का निर्देश दिया।
मोदी सरकार ने शुरू की यह योजना
कोर्ट ने अटार्नी जनरल केके वेणुगोपाल से पूछा, 'चुनावी बांड से मिले धन के इस्तेमाल पर सरकार किस तरह से नियंत्रण रखती है।' जनवरी 2018 में नरेंद्र मोदी सरकार ने राजनीतिक दलों को चंदा जुटाने के लिए चुनावी बांड योजना की शुरुआत की। इस योजना की घोषणआ साल 2017 के आम बजट में हुई थी। चुनावी बांड एक ऐसा बांड होता है जिसके ऊपर एक करंसी नोट की तरह उसकी वैल्यू या मूल्य लिखा होता है। चुनावी यानी इलेक्टोरल बांड का इस्तेमाल व्यक्तियों, संस्थाओं और संगठनों द्वारा राजनीतिक दलों को चंदा देने के लिए किया जा सकता है।
एक से 10 अप्रैल के बीच बांड जारी करेगा सरकार
गैर सरकारी संगठन ‘एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स’ ने याचिका दायर कर चुनावी बांड जारी करने पर रोक लगाने की मांग की थी। केंद्र सरकार ने इससे पहले पीठ को बताया था कि एक अप्रैल से 10 अप्रैल के बीच बांड जारी किए जाएंगे। एनजीओ ने अपनी अर्जी में दावा किया था कि इस बात की गंभीर आशंका है कि बंगाल और असम समेत कुछ राज्यों में आगामी विधानसभा चुनावों से पहले चुनावी बॉन्ड की आगे और बिक्री से ‘मुखौटा कम्पनियों के जरिए राजनीतिक दलों का अवैध और गैरकानूनी वित्तपोषण और बढ़ेगा।’