- अफगानिस्तान में तालिबान और अफगान सुरक्षाबलों के बीच जारी है संघर्ष
- अफगानिस्तान का भविष्य क्या होगा, इस बारे में अभी कुछ नहीं कहा जा सकता
- हिंसा के बीच तालिबान और अफगान सरकार के बीच वार्ता भी चल रही है
नई दिल्ली : अफगानिस्तान से अमेरिकी और नाटो बलों की वापसी शुरू होने के बाद देश में तालिबान का वर्चस्व एवं नियंत्रण बढ़ता जा रहा है। रिपोर्टों की मानें तो तालिबान ने 180 से ज्यादा जिलों पर अपना नियंत्रण कर लिया है। कई प्रांतों में तालिबान लड़ाकों एवं अफगान सुरक्षाबलों के बीच संघर्ष जारी है। इन सबके बीच खबर यह भी है कि पाकिस्तान के करीब 10 हजार लड़ाके अफगानिस्तान में दाखिल हो चुके हैं और इन्हें भारतीय संपत्तियों को नुकसान पहुंचाने का निर्देश दिया गया है। हिंसा के बीच अफगानिस्तान सरकार और तालिबान के बीत बातचीत भी चल रही है।
सुरक्षा के चलते भारत ने अपने अधिकारियों को वापस बुलाया
जाहिर है कि भारतीय संपत्तियों एवं भारतीय हितों को नुकसान पहुंचाने के पीछे पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई और सेना है। बीते 20 वर्षों में भारत और अफगानिस्तान के बीच द्विपक्षीय रिश्ते काफी मजबूत हुए हैं। अफगानिस्तान के निर्माण एवं विकास में भारत बहुत बड़ा मददगार रहा है। तालिबान और अफगानिस्तान सुरक्षाबलों के बीच जारी संघर्ष के चलते वहां दूतावासों में तैनात भारतीय अधिकारियों की सुरक्षा खतरे में न पड़े, इसे ध्यान में रखते हुए भारत ने अपने अधिकारियों को वापस बुलाया है।
अफगानिस्तान को खड़ा करने में भारत ने की है मदद
अफगानिस्तान को अपने पैरों पर खड़ा करने में भारत ने उसे काफी मदद की है। इस देश में बुनियादी संरचनाओं के विकास में भारत की तरफ से करीब तीन अरब डॉलर की परियोजनाएं चलाई गई हैं। भारत ने यहां सड़क, बिजली स्टेशन, बांध, स्कूल और अस्पताल के निर्माण से जुड़ी कई परियोजनाओं को पूरा किया है। यहां तक कि अफगानिस्तान की संसद का निर्माण भारत ने किया है। विकास की कई योजनाओं अभी जारी हैं लेकिन मौजूदा हलाता को देखते हुए अब यह कहना मुश्किल है कि ये परियोजनाएं अब समय से पूरा हो जाएंगी।
400 से ज्यादा परियोजनाएं अधर में लटकीं
साल 2011 में भारत और अफगानिस्तान के बीच स्ट्रेटेजिक पार्टनरशिप एग्रीमेंट हुआ था। इसके करार के तहत भारत वहां की बुनियादी संरचनाओं एवं संस्थाओं के निर्माण में मदद किया। क्षमता निर्माण की दिशा में शिक्षा एवं तकनीकी मदद उपलब्ध कराई। भारत ने अफगानिस्तान के उत्पादों को शुल्क मुक्त किया। इससे दोनों देशों के बीच सलाना कारोबार बढ़कर एक अरब डॉलर तक जा पहुंचा। विदेश नवंबर 2020 में विदेश मंत्री एस जयशंकर ने जेनेवा में बताया कि अफगानिस्तान के सभी 34 प्रांतों में भारत 400 से ज्यादा परियोजनाएं शुरू किया है। अब आगे इन परियोजनाओं के बारे में क्या होगा, इस बारे में अभी कुछ नहीं कहा जा सकता।
तालिबान को दुनिया समझ में आने लगी है
अफगानिस्तान का भविष्य कौन की करवट लेगा इस बारे में अभी निश्चित रूप से नहीं कहा जा सकता। संघर्ष एवं हिंसा के पीच अफगान सरकार और तालिबान के बीच वार्ता चल रही है। हो सकता है कि दोनों के बीच कोई समझौता हो जाए और सत्ता में तालिबान की हिस्सेदारी मिले लेकिन यह अभी भविष्य की गर्त में है। बीते 20 वर्षों में तालिबान के रुख में थोड़ा बदलाव देखने को मिला है। वह मुल्ला उमर के समय का तालिबान नहीं है जो गुफाओं एवं कंदराओं में घूमता है। उसमें दुनिया और कूटनीति की समझ विकसित हुई है। इसलिए वह अमेरिका सहित कई देशों के साथ टेबल पर बातचीत कर रहा है। उसे समझ में आ गया है कि दुनिया केवल इतनी भर नहीं है। दुनिया के लिए अफगानिस्तान कितना अहमियत रखता है यह बात उन्हें समझ में आ गई है।