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सीधे गांधी परिवार निशाने पर ! कांग्रेस के सामने 24 साल का सबसे बड़ा संकट, 4 साल में 177 ने छोड़ी पार्टी

Updated Oct 01, 2021 | 13:42 IST

Congress crisis News: ADR की मार्च 2021 की रिपोर्ट के अनुसार 2016 से 2020 के बीच कांग्रेस के 170 विधायकों ने पार्टी छोड़ी है। जबकि इस दौरान 7 सांसदों ने भी पार्टी छोड़ दी।

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तस्वीर साभार:&nbspANI
कांग्रेस में संकट लगातार गहराता जा रहा है
मुख्य बातें
  • नटवर सिंह ने कहा "इन्हें सलाह देने वाला अब कोई नहीं है और ये खुद को तीस मार खां समझते हैं। " 
  • कपिल सिब्बल ने कहा "जिन्हें वह अपना समझते हैं, वह छोड़ कर चले गिए और जिन्हें गैर समझते हैं वह कभी पार्टी छोड़कर नहीं जाएंगे। 
  • कैप्टन अमरिंदर सिंह ने राहुल और प्रियंका गांधी पर निशाना साधते हुए कहा दोनों अनुभवहीन हैं और सलाहकर उन्हें गलत सलाह देकर गुमराह कर रहे हैं।

नई दिल्ली: कांग्रेस शायद अपने सबसे बुरे दौर से गुजर रही है। पार्टी के नेता जो अब तक किसी भी हाल में गांधी परिवार पर निशाना नहीं साधते, वह अब सीधे पार्टी की मौजूदा स्थिति के लिए उन्हें जिम्मेदार ठहरा रहे हैं। गांधी परिवार के लिए ऐसी स्थिति करीब 24 साल बाद आई है। जब 1998-99 में शरद पवार, पी.ए.संगमा और तारिक अनवर ने सोनिया गांधी के विदेशी मूल का मुद्दा उठाया था। और तीनों ने पार्टी छोड़ दी थी। उसके बाद से गांधी परिवार के नेतृत्व पर कभी भी कांग्रेस में आवाज नहीं उठी, लेकिन मौजूदा दौर में कांग्रेस के वेटरन नेताओं के चार बयानों को पढ़िए..

पूर्व विदेश मंत्री और कांग्रेस के दिग्गज नेता रहे नटवर सिंह ने पार्टी के मौजूदा संकट पर सीधे तौर पर गांधी परिवार पर निशाना साधते हुए कहा "इन्हें सलाह देने वाला अब कोई नहीं है और ये खुद को तीस मार खां समझते हैं। चुनावों में इनकी कोई नहीं सुनेगा" 

वरिष्ठ नेता कपिल सिब्बल ने कहा जिन्हें वह अपना समझते हैं, वह लोग को छोड़ कर चले गिए, और जिन्हें गैर समझते हैं वह कभी पार्टी छोड़कर नहीं जाएंगे। 

कैप्टन अमरिंदर सिंह ने मुख्यमंत्री  पद से हटाए  जाने  के बाद कहा 'प्रियंका गांधी वाड्रा और राहुल गांधी उनके बच्‍चे जैसे हैं। लेकिन पंजाब में सत्‍ता परिवर्तन ऐसे नहीं होना चाहिए था, मैं आहत हूं। दोनों भाई-बहन अनुभवहीन हैं और सलाहकर उन्हें गलत सलाह देकर गुमराह कर रहे हैं। 

पी.चिदंबरम ने ट्वीट किया 'जब हम पार्टी के भीतर कोई सार्थक बातचीत नहीं कर पाते हैं तो मैं बहुत ही असहाय महसूस करता हूं।  मैं तब भी भी असहाय महसूस करता हूँ जब एक साथी और सांसद के आवास के बाहर कांग्रेस कार्यकर्ताओं के नारे लगाने वाली तस्वीरें देखता हूं। जो सुरक्षित किनारा इसे दुरूस्त कर सकता है, वह मौन प्रतीत होता है''

लगातार हार से बिगड़े हालात

असल में कांग्रेस पार्टी में यह हमेशा से परंपरा रही है कि उनके नेता हार को लेकर कभी गांधी परिवार पर निशाना नहीं साधते हैं। लेकिन 2014, 2019 के लोकसभा चुनावों में करारी हार और उसके बाद जीतकर भी मध्य प्रदेश में जिस तरह से पार्टी ने सत्ता गंवाई और राजस्थान, छत्तीसगढ़ और पंजाब में बगावत के सुर उभरे हैं, उसे पार्टी के एक तबके को गांधी परिवार पर निशाना साधने का मौका मिल गया है। और रही सही कसर, बिहार-बंगाल और केरल के चुनाव परिणामों ने पूरी कर दी है।

बिहार में कांग्रेस पार्टी महागठबंधन में होने के बावजूद 2020 के विधान सभा चुनावों में केवल 19 सीटें जीत पाई थी। इसकी वजह से  विश्लेषकों का कहना था कि अगर महागठबंधन में कांग्रेस का प्रदर्शन अच्छा रहा होता तो तेजस्वी की सत्ता में वापसी हो जाती। पार्टी का पश्चिम  बंगाल में उससे भी बुरा हाल हुआ, ऐसा पहली बार हुआ कि विधान सभा चुनाओं में एक भी सीट नहीं जीत पाई। इसी तरह केरल में सत्ता विरोधी  लहर के बावजूद पार्टी वाम दलों को नहीं रोक पाई। और उसे फिर से विपक्ष में बैठना पड़ा। कर्नाटक में भी जेडी (एस) के साथ उसका गठबंधन नहीं टिक पाया और भाजपा की सत्ता में वापसी हो गई।

4 साल में 170 विधायक और 7 सांसदों ने छोड़ी पार्टी

एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म की मार्च 2021 की रिपोर्ट के अनुसार पिछले 4 साल (2016 से 2020 में हुए चुनावों के दौरान) में कांग्रेस के 170 विधायकों ने पार्टी छोड़ी है। जबकि इस दौरान 7 सांसदों ने भी पार्टी छोड़ी । रिपोर्ट के अनुसार 5 साल में सभी पार्टियों के कुल 405 विधायकों ने अपनी  पार्टियां छोड़ी है। जिसमें से 42 फीसदी अकेले कांग्रेस पार्टी के हैं। आंकड़े गवाही दे रहे हैं कि उसके नेताओं को पार्टी के भविष्य को लेकर भरोसा नहीं रह गया है। 

सीएसडीएस के प्रोफेसर संजय कु्मार ने टाइम्स नाउ नवभारत डिजिटल से कांग्रेस में बगवात की स्थिति पर कहा था " कांग्रेस में  साफ दिख रहा है कि केंद्रीय नेतृत्व मसलों को हल करने में नाकाम हो रहा है। उसकी कई कोशिशों के बावजूद नेताओं की गुटबाजी खत्म नहीं हो पाती है। एक समय कांग्रेस में भाजपा के तरह शीर्ष नेतृत्व मजबूत होता था। लेकिन अभी वैसी स्थिति नहीं है। पार्टी के नेताओं को शीर्ष नेतृत्व को लेकर कंफ्यूजन है। जिसका असर दिख रहा है। "

असली कांग्रेस कौन, का सवाल सामने

बंगाल विधान सभा चुनावों में भाजपा को हराने  के बाद से भी ममता बनर्जी, खुद को विपक्ष का चेहरा बनाने में लगी  हुई है। इसी कड़ी में उन्होंने  तृणमूल कांग्रेस का राष्ट्रीय स्तर पर विस्तार करने का प्लान भी बनाया है। और इस कवायद में वह सबसे ज्यादा कांग्रेस को ही नुकसान पहुंचा रही हैं। उन्हें जहां मौका मिल रहा है, वह कांग्रेस के नेताओं अपनी पार्टी में शामिल कर रही हैं। ममता, गोवा, असम, त्रिपुरा में कांग्रेस के कई नेताओं को तृणमूल में शामिल कर चुकी हैं। यही नही पार्टी के मुखपत्र  जागो बंगला के 25 सितंबर  के संपादकीय में लिखा है कि बंगाल में अधिकांश लोगों  का मानना है कि कांग्रेस की विरासत का झंडा अब टीएमसी के हाथ में है। और वहीं असली कांग्रेस है। जो कि राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा को चुनौती दे सकती है। जो अभी भी कांग्रेस के साथ हैं, उनका टीएमसी में स्वागत है।  हम कांग्रेस के बिना गठबंधन की बात नहीं कर रहे हैं। लेकिन अगर कांग्रेस बार-बार विफल होती है, और उसका लोकसभा में बीजेपी को फायदा होता है। तो ऐसा दोबारा नहीं होने दिया जा सकता। साफ है आने  वाले दिनों में असली कांग्रेस के मुद्दे  को ममता बनर्जी जरूरी उठाएंगी।

2 साल से अध्यक्ष पद खाली

दो साल के पार्टी को पूर्णकालिक अध्यक्ष नहीं मिल पाया है। असल में 2019 के लोकसभा  चुनावों में जब पार्टी की हार हुई तो राहुल गांधी ने जिम्मेदारी लेते हुए जुलाई में इस्तीफ दे दिया था। उसके बाद वह पद खाली है। इसी बीच सोनिया गांधी, अगस्त 2019 में अंतरिम अध्यक्ष बनी। अध्यक्ष नहीं होने की वजह से जी-23 के नेताओं ने सार्वजनिक तौर पर पत्र लिखकर पार्टी के चुनावों की बात कहीं थी। उसके बाद पार्टी में  दो धड़ बने हुए हैं। इस बीच 3 बार संगठन के चुनावों को टाला गया है। साफ है कि पार्टी  अंदर और बाहर कई जगहों पर चुनौती का सामना कर रही है। और उसके सामने अब तक का सबसे बड़ा संकट है। 

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