- महात्मा गांधी ने ग्राम स्वराज पर अधिक बल दिया
- राष्ट्रपिता ने कहा था कि जबतक भारत के गांव मजबूत नहीं होंगे देश विकास नहीं करेगा
- देश के आर्थिक ढांचे को मजबूत करने के लिए बुनियादी शिक्षा का होना बहुत आवश्यक है
महात्मा गांधी को देश ऐसे ही बापू नहीं कहता, उनके पास परिवार रूपि इस देश के लिए आजादी से लेकर आर्थिक स्वतंत्रता देने तक का माद्दा था। एक तरफ देश को आजादी दिलायी तो दूसरी तरफ देश के चुनिंदा उद्योगपतियों से देश को आर्थिक रूप से मजबूत करने के लिए कहा। सुई से लेकर जहाज बनाने तक का भार महात्मा गांधी ने देश के पूंजीपतियों के कंधे पर रखा। लोगों ने बापू की बात को आदेश मानकर काम करना शुरू किया और देखते ही देखते भारत कई क्षेत्र में आत्मनिर्भर बन गया। वर्तमान भारत में महात्मा गांधी के भारत की छवि साफ दिखती है। आर्थिंक तंगी से गुजर रहे देश को क्या सच में बापू के वो पांच मूलमंत्र उबार सकते हैं।
गांव को मजबूत बनाना
महात्मा गांधी ने कहा था कि अगर गांव नष्ट हो गए तो हिन्दुस्तान का अस्तित्व ही मिट जाएगा। महात्मा गांधी हमेशा से गांवों को सक्षम बनाने के हक में थे। राष्ट्रपिता हमेशा से चाहते थे कि गाओं की माली हालत को सुधारा जाए। गांव के युवाओं को गांव में ही रोजगार के अवसर दिए जाएं। कृषि को इतना मजबूत कर दिया जाए कि देश की आर्थिक स्थिति को मजबूती दे सकें।
बुनियादी शिक्षा
देश के आर्थिक ढांचे को मजबूत करने के लिए बुनियादी शिक्षा का होना बहुत आवश्यक है। ग्राम स्वराज के सपने में ये भी शामिल था। शहरों में तो सभी शिक्षा अर्जित कर लेते हैं, लेकिन गांव में बुनियादी शिक्षा का अभाव होता है। जबतक ये सुदृढ़ नहीं होगा, तब तक देश की आर्थिक स्थिति में सुधार की गुंजाइश नहीं है।
आर्थिक सत्ता का विकेंद्रीकरण
किसी भी चीज का केंद्रीकरण देश को किसी एक पर आश्रित बना देता है। देश का आर्थिक विकास तभी संभव है, जब देश के गांव खेड़े का भी उसमें योगदान हो। किसी एक राज्य, शहर के विकसित होने से देश विकास की राह पर नहीं चलेगा। ठीक उसी तरह से किसी एक क्षेत्र में विकास करके देश आर्थिक रूप से मजबूत नहीं हो सकता। महात्मा गांधी ने देश को आर्थिक रूप से मजबूत बनाने के लिए आर्थिक सत्ता के विकेंद्रीकरण पर जोर दिया।
वित्तीय अनुशासन
राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने वित्तीय अनुशासन पर जोर दिया। जिस क्षेत्र में अनुशासन की कमी होती है, उसके बिगड़ने में देरी नहीं लगती। इसी तरह से आज की सरकार को भी ध्यान देना होगा कि कैसे वो वित्तीय अनुशासन का पालन कर सकती है। बेवजह के सरकार के खर्च सरकारी कोष को रिक्त करने के साथ ही देश को भी खोखला करते जाते हैं।
ग्रामीण और कुटीर उद्योग को बढ़ावा
सरकार चाहे जो हो अगर वो विकास को सिर्फ शहरों तक ही सिमित रखेगी, तो जल्द ही देश विकास की डगर से भटक जाएगा। जबतक ग्रामीण और कुटीर उद्योग को बढ़ावा नहीं दिया जाएगा, तब तक देश को आर्थिक संकट से निकालना आसान नहीं है। देश में सिर्फ डॉक्टर, इंजिनियर या इस तरह की नौकरियां ही नहीं होतीं।
इसके अलावा सरकार को गांव की तरफ ध्यान देना चाहिए और कुटीर उद्योग को बढ़ावा देना चाहिए, ताकि आर्थिक संकट में कम से कम गांव के लोग बेरोजगार न हों और साथ ही वो देश की आर्थिक स्थिति में सहयोग दे सकें। उनका अतिरिक्त भार सरकार पर न पड़। भले ही महात्मा गांधी को गए अरसा बीत गया, लेकिन उनकी कही बातें आज भी मूलमंत्र बनकर देशहित में काम कर सकती हैं।