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कुतुब मीनार मामले में 9 जून को फैसला, साकेत कोर्ट में दिलचस्प सुनवाई

Updated May 24, 2022 | 13:56 IST

कुतुब मीनार के मुद्दे पर दिल्ली के साकेत जिला न्यायालय में सुनवाई चल रही है। एएसआई ने हलफनामे में साफ किया है इमारत संरक्षित है और पूजा की इजाजत नहीं दी जा सकती है। इन सबके बीच हिंदू पक्षकारों का कहना है कि वो कोई निर्माण नहीं चाहते सिर्फ पूजा की इजाजत चाहते।

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साकेत कोर्ट में कुतुब मीनार मामले में सुनवाई

कुतुब मीनार मामले में दिल्ली के साकेत कोर्ट ने अपने फैसले को सुरक्षित रख लिया। है। इसमें सभी पक्षों को लिखित में जवाब दाखिल करने के लिए 1 हफ्ते का समय दिया गया है। अदालत में फैसले के लिए 9 जून की तारीख मुकर्रर की है। अदालत के सामने एएसआई, मुस्लिम पक्ष और हिंदू पक्ष की तरफ से दलीलें पेश की गईं। एएसआई ने कहा कि कुतुब मीनार पूजा स्थल नहीं है जैसा कि हिंदू पक्ष के वकील हरिशंकर जैन का कहना है। AMASR अधिनियम कहता है कि भूमि का चरित्र क्या है। पीओडब्ल्यू एक्ट कहता है कि चरित्र जमे हुए है। एएसआई 2 अधिनियमों के बीच अंतर करता है
जज का कहना है कि सबसे महत्वपूर्ण सवाल यह तय करना है कि इस भूमि का चरित्र क्या है। जबकि जैन कहते हैं कि यह एक मंदिर है, एएसआई का कहना है कि यह नहीं है, न्यायाधीश नोट करते हैं।एएसआई का कहना है कि अदालत को उसके सामने जो भी दस्तावेज उपलब्ध हैं, उनके साथ जाना चाहिए। 800 वर्षों के लिए, जैसा कि माना जाता है, कुछ भी नहीं था। ये बातें अब कही जा रही हैं। इस पर कोर्ट ने कहा कि स्थिति तथ्य बनाम तथ्य में से एक लगती है।

क्या पूजा करने के अधिकार से इनकार है
अदालत ने पूछा कि क्या पूजा करने के अधिकार से कोई इनकार है।हिंदू पक्ष के वकील हरिशंकर जैन ने कहा कि  देवता कभी नहीं खोते हैं, और यदि देवता जीवित रहते हैं, तो पूजा का अधिकार बच जाता है। जैन ने सवाल का जवाब देते हुए कहा कि कि अनुच्छेद 13 के तहत संवैधानिक अधिकार से वंचित है। अनुच्छेद 25 के तहत पूजा के अधिकार को संवैधानिक अधिकार के रूप में संदर्भित करता है। न्यायालय ने यह निर्धारित नहीं किया है कि मेरे पास अधिकार है या नहीं। कोर्ट कह सकता है कि मुझे पूजा करने का कोई अधिकार नहीं है। लेकिन न्यायिक प्रक्रिया का पालन कम से कम यह निर्धारित करने के लिए किया जाना चाहिए कि मेरे पास अधिकार है या नहीं।


हिंदू पक्ष की दलील

एडीजे निखिल चोपड़ा के सामने सुनवाई में अधिवक्ता हरि शंकर जैन का कहना है कि इस बात के पर्याप्त सबूत हैं कि कई हिंदू और जैन मंदिरों को तोड़कर परिसर बनाया गया था। जज ने पूछा कि वह कौन सी याचिका थी जो पहले मांगी गई थी। ह एक अपील है जब मूल मुकदमा अदालत में खारिज कर दिया गया था। जैन ने अदालत को मूल मुकदमे के बारे में सूचित किया जिसमें आरोप लगाया गया था कि वर्तमान परिसर हिंदू मंदिरों को ध्वस्त करने पर बनाया गया था। जैन ने दोहराया कि यह दिखाने के लिए सबूत हैं कि मस्जिद, कुव्वत-उल-इस्लाम अवशेषों से बनाई गई थी।

साकेत कोर्ट में कार्यवाही के खास अंश
  1. हिंदू पक्ष ने राम मंदिर का हवाला दिया
  2. कुतुब मीनार में 1600 साल पुराना लौह स्तंभ
  3. अगर मूर्ति तोड़ भी दिया जाए तो वो मंदिर ही रहता है। 
  4. मॉन्यूमेंट एक्ट का दिया गया हवाला
  5. जज ने पूछा कि 800 साल से मूर्तियां बिना पूजा के कैसे हैं। 
  6. जैन ने उस आदेश का हवाला दिया जिसमें प्रारंभिक वाद को पूरी तरह से गलत बताते हुए खारिज कर दिया था। कहते हैं कि यह अनुमान और अनुमान पर आधारित है कि कुछ समस्या हो सकती है, कुछ अघोषित खतरा..यह बेतुका और पूरी तरह से अनावश्यक है। जज ने तो हद ही पार कर दी।
  7. कोर्ट का कहना है कि पूजा स्थल अधिनियम की धारा 3 यथास्थिति बनाए रखने के लिए कहती है। लेरिन जैन ने यह तर्क दिया कि धारा लागू नहीं है
  8. जैन प्राचीन स्मारक और पुरातात्विक स्थलों की धारा 16 का उल्लेख करते हैं और अधिनियम (एएमएएसआर) बने रहते हैं  जिसमें कहा गया है कि कानून कहता है कि एक केंद्रीय रूप से संरक्षित स्मारक जो पूजा स्थल है, उसका उपयोग उसके चरित्र के अलावा किसी अन्य उद्देश्य के लिए नहीं किया जा सकता है।इसलिए सवाल चरित्र के निर्धारण पर बना रहता है । एक देवता हमेशा एक देवता होता है। इसकी गरिमा हमेशा के लिए है।जैन का कहना है कि कोई भी इस बात पर विवाद नहीं कर सकता है कि स्मारक अधिनियम द्वारा शासित हर स्मारक को पूजा स्थल अधिनियम के आवेदन से छूट दी गई है।जब अधिनियम पूजा स्थल अधिनियम के आवेदन को छूट देता है, तो इस आधार पर मुकदमा कैसे खारिज कर दिया गया है।


निर्माण नहीं चाहते सिर्फ पूजा का अधिकार
शुरू से ही मामले में इस बात के स्पष्ट सबूत हैं कि कुल 27 मंदिर थे और कुतुबुद्दीन ऐबक ने इसे मुस्लिम ताकत के प्रदर्शन के रूप में ध्वस्त कर दिया। यह एक मान्य पक्ष है कि मुसलमानों द्वारा वहां कोई नमाज अदा नहीं की गई और वहां कोई धार्मिक गतिविधि नहीं हुई। फिर हिंदुओं को वहां देवताओं की पूजा करने देने में क्या कठिनाई है। पुनर्निर्माण नहीं चाहते हैं। हिंदुओं के लिए वहां पूजा करने के लिए बस क्षेत्र की बहाली। किसी विध्वंस की मांग नहीं

जैन ने कहा कि प्रार्थना सीमित है और वहां पूजा की जा सकती है। ऐसे कई मामले हैं जहां स्मारक एएसआई के अधीन है, लेकिन प्रार्थना की अनुमति है।जज का कहना है कि हां एएसआई के तहत कई स्मारक हैं, जहां पूजा-अर्चना की जाती है। कई मंदिर भी सुरक्षा में हैं। न्यायाधीश कहते हैं कि लेकिन सवाल यह है कि आप चाहते हैं कि एक स्मारक को ऐसी जगह में बदल दिया जाए जहां प्रार्थना की जा सके और वो भी बहाली के माध्यम से। 

कोर्ट का कहना है कि भले ही हम सहमत हों कि विध्वंस हुआ था,। 800 वर्षों के लिए कोई धार्मिक गतिविधि के प्रवेश के साथ सहमत नहीं हैं, और कई मंदिर हैं जो संरक्षित हैं दक्षिण जहां पूजा की जाती है। फिर भी, आप कैसे प्रस्ताव करते हैं कि 800 साल पहले हुई किसी चीज की बहाली हो? जैन कहते हैं कि एक बार देवता की संपत्ति, यह हमेशा एक देवता की संपत्ति होती है। यह कभी नहीं खोया है।विध्वंस के बाद भी मंदिर अपनी दिव्यता, पवित्रता नहीं खोता है।मैं एक उपासक हूं, मैं एक उपासक बनकर आया हूं।जैन ने अयोध्या के फैसले का हवाला देते हुए कहा कि देवता एक बार देवता होने के बाद अपने चरित्र, पवित्रता और देवत्व को नहीं खोते हैं।

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