- भाजपा का आरोप है कि हेमंत सोरेन ने खुद ही अपने नाम खदान आवंटन कर ऑफिस ऑफ प्रॉफिट कानून का उल्लंघन किया था।
- भाजपा झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की सदस्यता रद्द करने की मांग कर रही है।
- हेमंत सोरेन पर ऑफिस ऑफ प्रॉफिट का मामला बनता है तो उनकी कुर्सी जा सकती है।
What is office Of Profit: एक और राज्य में मुख्यमंत्री की कुर्सी पर खतरा मंडरा रहा है। मामला झारखंड का है, जहां पर मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन लाभ का पद (Office Of Profit) मामले में फंसते नजर आ रहे हैं। अगर चुनाव आयोग की अनुशंसा उनके खिलाफ गई तो सोरेन को सीएम की कुर्सी गंवानी पड़ सकती है। असल में हेमंत सोरेन के ऊपर सीएम होते हुए पत्थर खदान का पट्टा आवंटन करने का मामला चल रहा है। विपक्षी दल भाजपा का आरोप है कि खुद ही अपने नाम खदान आवंटन करना ऑफिस ऑफ प्रॉफिट का मामला है। जिसे देखते हुए हेमंत सोरेन की सदस्या रद्द कर देनी चाहिए।
इसी आरोप की जांच चुनाव आयोग राज्यपाल की सिफारिश पर कर रहा था। और अब आयोग ने पूरे मामले पर रिपोर्ट राज्यपाल को सौंप दी है। ऐसे में अगर हेमंत सोरेन पर ऑफिस ऑफ प्रॉफिट का मामला बनता है तो उनकी कुर्सी जा सकती है। तो आइए जानते हैं कि क्या होता है ऑफिस ऑफ प्रॉफिट..
क्या होता है ऑफिस ऑफ प्रॉफिट
पीआरएस रिसर्च के अनुसार संविधान के अनुच्छेद 102 (1) A और 191 (1) के अनुसार कोई भी सांसद या विधायक ऐसे किसी पद पर नहीं रह सकता, जहां उसे वेतन, भत्ते, प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से या फिर किसी दूसरी तरह के फायदे मिलते हों। इसी तरह भारतीय जनप्रतिनिधित्व कानून 1951 की धारा 9 (A) भी सांसदों और विधायकों को किसी दूसरे मद से लाभ या अन्य पद लेने पर रोक लगाती है।
इन वजहों से प्रतिनिधि हो सकते हैं अयोग्य
- चुनाव से जुड़े अपराध और भ्रष्टाचार के दोषी करार दिए जाने पर अयोग्य घोषित किए जा सकते हैं।
- किसी भी अपराध में दोषी करार दिए जाने और दो साल की जेल की सजा मिलने पर अयोग्य हो जाएंगे।
- भ्रष्टाचार या राष्ट्रद्रोह के मामले में अयोग्य हो जाएंगे।
- किसी सरकारी कंपनी से प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष लाभ लेने पर अयोग्य घोषित किए जा सकते हैं।
- सामाजिक सौहार्द बिगाड़ने, छुआछूत, दहेज सरीखे सामाजिक अपराध साबित होने पर भी इस्तीफा देना पड़ सकता है।
हेमंत सोरेन क्या कर सकते हैं..
झारखंड की राजनीति पर नजर रखने वाले एक सूत्र का कहना है कि हेमंत सोरेन अगर दोषी पाए जाते हैं, तो भी सरकार को कोई खतरा नही है। इसकी वजह यह है कि सरकार के पास बहुमत है। और उसके पास कांग्रेस का समर्थन भी है। इस समय 81 सदस्यीय राज्य विधानसभा में झारखंड मुक्ति मोर्चे के पास 30, भाजपा के पास 25, कांग्रेस के पास 16 और आजसू के पास दो सीटें हैं। ऐसे में झारखंड मुक्ति मोर्चे के पास मजबूत बहुमत हैं।
ऐसे में कोई फैसला खिलाफ आने पर पहले सुप्रीम कोर्ट जा सकती है। इसके अलावा अगर उन्हें लंबे समय के लिए अयोग्य घोषित नहीं किया जा सकता है, तो वह इस्तीफा देकर छह महीने में दोबारा चुनाव लड़कर आ सकते हैं। इसके साथ ही अगर ऐसी स्थिति आती है कि उन्हें लंबे समय के लिए अयोग्य घोषित किया जाता है तो वह अपनी पत्नी कल्पना सोरेने को भी कमान सौंप सकते हैं।
किन लोगों को ऑफिस ऑफ प्रॉफिट में गंवानी पड़ी कुर्सी
- चुनाव आयोग ने साल 2018 आम आदमी पार्टीपार्टी के 20 विधायकों को लाभ के पद के मामले में अयोग्य घोषित करार दिया था।
- साल 2006 में यूपीए-1 में सोनिया गांधी के खिलाफ भी लाभ के पद का मामला सामने आया था। सोनिया गांधी रायबरेली से सांसद थीं। और वह यूपीए सरकार के समय गठित राष्ट्रीय सलाहकार परिषद की चेयरमैन भी थीं, जिसे 'लाभ का पद' करार दिया गया था। इसकी वजह से सोनिया गांधी को लोकसभा सदस्यता से इस्तीफा देना पड़ा। जिसके बाद उन्होंने रायबरेली से दोबारा चुनाव लड़ था।
- इसी तरह जया बच्चन राज्यसभा सांसद थीं। और उसी समय वह उत्तर प्रदेश फिल्म विकास निगम की चेयरमैन भी थीं, जिसे लाभ का पद करार दिया गया और उसके बाद चुनाव आयोग्य ने जया बच्चन को अयोग्य ठहराया था। जया बच्चन ने इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट गईं लेकिन उन्हें राहत नहीं मिली। इसके बाद जया बच्चन की संसद सदस्यता रद्द हो गई थी।