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Expert View:अफगानिस्तान में हिंदू-सिख परिवारों का क्या होगा ? भारत के लिए ये 5 बड़ी चुनौतियां

Updated Aug 16, 2021 | 16:37 IST

अफगानिस्तान पर तालिबान का कब्जा होने से सबसे बड़ी चिंता वहां पर मौजूद हिंदू और सिख हैं। ऐसे में उनकी सुरक्षा सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक है। इसके अलावा आतंकावादी गतिविधियों का भी जोखिम बढ़ गया है।

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तस्वीर साभार:&nbspBCCL
अफगानिस्तान पर तालिबान ने पूरी तरह से कब्जा कर लिया है
मुख्य बातें
  • भारतीय नागरिकों के साथ-साथ अफगानिस्तान में पीढ़ियों से रहने वाले हिंदू और सिख की सुरक्षा बड़ी चुनौती बन गई है।
  • पाकिस्तान के सहयोग से चीन अफगानिस्तान में अपनी जड़े मजबूती से जमा सकता है।
  • भारत और ईरान के संबंधों को खराब करने में, पाकिस्तान तालिबान का इस्तेमाल कर सकता है।

नई दिल्ली: तालिबान की सत्ता में वापसी से पूरी दुनिया में चिंताए बढ़ने के साथ भारत के लिए भी कई सारी चुनौतियां खड़ी हो गई हैं। सबसे बड़ा खतरा आतंकवादी गतिविधियां बढ़ने का है। इसके अलावा अफगानिस्तान में रह रहे भारतीयों की वतन वापसी और वर्षों से रहने वाले हिंदुओं की सुरक्षा भी चिंता विषय है। साथ ही क्षेत्र में चीन और पाकिस्तान का दखल भी बढ़ने वाला है। ऐसे में भारत की चुनौतियों पर पूर्व विदेश सचिव मुचकुंद दुबे ने टाइम्स नाउ नवभारत डिजिटल से एक्सक्लूसिव बात की है, पेश है प्रमुख अंश:


हिंदू और सिखों की सुरक्षा का सवाल

अफगानिस्तान में रहने वाले भारतीय राजनयिक और नागरिकों को सबसे पहले सुरक्षित लाना हमारी प्राथमिकता होनी चाहिए। इस दिशा में भारत सरकार काम कर रही है। एयर एंडिया के हवाई जहाजों ने उन्हें लाना शुरू कर दिया है। इसके तहत एक जहाज 129 लोगों को लेकर भारत आ चुका है। इनके अलावा अफगानिस्तान में एक बड़ी आबादी हिंदुओं और सिखों की है जो कई पीढ़ियों से वहां रह रही है। मजार-ए-शरीफ में तो ऐसे कई हिंदू परिवार हैं जो सैंकड़ों साल से वहां बसे हुए हैं। उनके लिए तालिबान की सत्ता में वापसी एक दुखद अनुभव लेकर आ सकती है। क्योंकि वहां पर उनकी पैतृक संपत्ति है, उस देश से जुड़ी यादें हैं। उनके कारोबार और जीविका के दूसरे साधन हैं। उनके लिए अफगानिस्तान छोड़ना बेहद दुखद होगा। साथ ही उनकी सुरक्षा भी भारत सरकार के लिए एक चुनौती होगी। क्योंकि तालिबान तो बिना सोचे-समझे लोगों की हत्याएं करते हैं।

आतंकवादी हमले का खतरा बढ़ा

सुरक्षा के लिहाज से निश्चित तौर पर यह हमारे लिए गंभीर समस्या खड़ा करता है। क्योंकि आतंकवादियों और तालिबान में कोई खास अंतर नहीं है। अब एक देश की सत्ता उनके हाथ में हैं और पाकिस्तान से उनके संबंध जग जाहिर हैं। ऐसे में वह हमारे बहुत नजदीक आ गए हैं। इसलिए हमारे ऊपर आतंकवाद का खतरा बहुत बढ़ गया है। ऐसे में उस पर लगाना बेहद जरूर है। इस काम में दक्षेस संगठन अहम भूमिका निभा सकते हैं। लेकिन उसके लिए भारत को सक्रिय होना पड़ेगा।

3 अरब डॉलर के निवेश का क्या होगा

भारत ने अफगानिस्तान में करीब 3 अरब डॉलर का निवेश कर रखा है। जिसके तहत बड़े पैमाने पर सड़कें बनाई गईं हैं। शिक्षा, स्वास्थ्य, बड़े इंफ्रास्ट्रक्चर में प्रमुख रुप से निवेश कर रखा है। अगर तालिबान के पहले संस्करण को देखा जाया तो वह पूरी तरह से भारत विरोधी और पाकिस्तान समर्थक थे। उनकी कट्टरता का आलम यह था कि भारत की निशानियों को भी नुकसान पहुंचा रहे थे। हालांकि इस बार वह अपने आपको बदला हुआ कह रहे हैं। हम कह सकते हैं कि यह तालिबान 2.0 है। उनके प्रवक्ता दावा कर रहे हैं कि भारत के लोग यहां निवेश कर सकते हैं। हालांकि आगे उनका क्या रूख रहेगा यह अभी कह पाना मुश्किल है। क्योंकि वह पुराने रुख पर रहे तो समस्याएं खड़ी हो सकती हैं। असल में तार्किक रूप से सोचा जाय तो वह चाहे जो भी दावा करें पाकिस्तान की वजह से उनका वजूद है। और पाकिस्तान के पीछे चीन खड़ा है। ऐसे में भारत से रिश्ते बेहतर होना आसान नहीं होगा।

ईरान संबंधों पर भी पड़ सकता है असर

तालिबान के सत्ता में आने का असर भारत-ईरान समीकरण भी पड़ेगा। क्योंकि तालिबान जब पहली बार अफगानिस्तान में आए थे तो उसे उत्तरी अफगानिस्तान में सत्ता नहीं मिल पाई थी। क्योंकि वहां स्थानीय नेता अब्दुल्ला-अब्दुल्ला ने काफी कड़ी टक्कर दी थी। और वह हिस्सा तालिबान से स्वतंत्र रहा था। उत्तरी अफगानिस्तान के इलाके की सीमा ईरान से जुड़ी हुई है। उस वक्त ईरान ने पीछे से अब्दुल्ला-अब्दुल्ला की काफी मदद की थी। उस वक्त भारत-ईरान-अब्दुल्ला मिलकर काम कर रहे थे। लेकिन अब वैसे संबंध नहीं रहे हैं। ऐसे में भारत द्वारा बनाए गए चाबहार बंदरगाह को लेकर मुश्किलें खड़ी हो सकती है। क्योंकि उस बंदरगाह का जितना बड़ा उपभोक्ता पुराना अफगानिस्तान  हो सकता था, वह तालिबान वाले अफगानिस्तान में संभव नही है।

चीन को फायदा

अफगानिस्तान में प्रचुर मात्रा में खनिज पाए जाते हैं। इसके अलावा कई आर्थिक फायदे वहां पर मौजूद हैं। चूंकि नई सरकार का पाकिस्तान के प्रति झुकाव रहेगा, तो उसका सीधा फायदा चीन को मिलने वाला है।चीन ने खनन क्षेत्र में बड़ी मात्रा में निवेश करना शुरू भी कर दिया है। उसका पूरा फायदा उसे ही मिलने वाला है। 

भविष्य की बात

देखिए एक बात तो हमें समझनी चाहिए कि तालिबान चाहे जो भी दावे करे लेकिन वह पाकिस्तान के प्रभाव से नहीं निकल सकता है। यह हमें अच्छी तरह पता है कि पाकिस्तान कभी भी भारत के हितों को तरजीह नहीं देगा। ऐसे में अब देखना यह है कि भारत तालिबान के साथ कैसे रिश्ते रखता है। दोनों देश क्या करते हैं, यह भविष्य में ही पता चलेगा।

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