नई दिल्ली : भारत की बढ़ती हुई आबादी पर अमेरिकी थिंक टैंक Pew Research Centre ने एक रिपोर्ट जारी की है। इसमें बताया गया है कि वर्ष 1947 में आजादी के बाद से वर्ष 2020 तक भारत में मुसलमानों की जनसंख्या 7 गुना के आसपास बढ़ी है और इसके वर्ष 2050 तक 10 गुना बढ़ने का अनुमान है, जबकि हिंदुओं की जनसंख्या आजादी के बाद से अब तक 3 गुना बढ़ी है और 2050 तक 4 गुना ही बढ़ने का अनुमान है।
वर्ष 1951 में भारत में मुसलमानों की जनसंख्या साढ़े 3 करोड़ थी, जो वर्ष 2020 में बढ़ कर 21 करोड़ से ज्यादा हो गयी और वर्ष 2050 तक भारत में मुसलमान 31 करोड़ तक हो जाएंगे। रिपोर्ट में बताया गया कि हिंदुओं की मुसलमानों के मुकाबले बच्चे पैदा करने की दर राष्ट्रीय दर से भी कम है। रिपोर्ट के मुताबिक, पूरे भारत की इस समय प्रति नागरिक बच्चे पैदा करने की दर 2.2 है, जबकि हिंदुओ की बच्चे पैदा करने की दर 2.1 ही है। भारत में मुसलमानों की इस समय बच्चे पैदा करने की दर 2.6 है, जो भारत में सभी धर्मों में सबसे ज्यादा है।
क्या कहती है रिपोर्ट?
प्यू रिसर्च सेंटर ने अपनी रिपोर्ट में बताया कि आजादी के बाद भारत में जनसंख्या में हिंदुओं का शेयर जो 1951 में 84.1% था, वो वर्ष 2020 में घट कर 79% ही रह गया है और वर्ष 2050 में यह और घट कर 76.4% ही रह जाएगा, जबकि भारत में मुसलमानों की आबादी का देश की जनसंख्या में जो शेयर 1951 में 9.8% था, वो 2020 में बढ़ कर 15% हो गया और वर्ष 2050 में और बढ़ कर 18.35% हो जाएगा।
प्यू रिसर्च सेंटर के प्रोजेक्शन के मुताबिक, अगर भारत में सभी धर्मों की बच्चे पैदा करने की दर में ज्यादा बदलाव नहीं हुआ तो वर्ष 2020 में भारत की कुल आबादी 140 करोड़ थी, जो वर्ष 2050 तक लगभग 170 करोड़ हो जाएगी।
प्यू रिसर्च सेंटर की रिपोर्ट में एक बात और गौर करने वाली है कि वर्ष 2001 से 2011 तक दस सालों में भारत के 24 राज्यों में हिंदुओं का उस राज्य की कुल जनसंख्या में शेयर घटा है, जबकि 10 सालों में मुसलमानों का देश के 26 राज्यों की जनसंख्या में शेयर बढ़ा है। मणिपुर में हिंदुओं का शेयर जहां सबसे ज्यादा 4.6% कम हुआ है तो असम में 3.4% और बंगाल में 1.9% जबकि मुसलमानों का शेयर सबसे ज्यादा असम में 3.3% , उत्तराखंड में 2%, केरल में 1.9% और बंगाल में 1.8% इन्हीं 10 सालों में बढ़ा है।
क्या कहती हैं महिला अधिकार कार्यकर्ता?
भारत में मुस्लिमों का जनसंख्या बढ़ाने में इस कदर योगदान पर भारत की महिला अधिकार कार्यकर्ताओं ने मुस्लिम समाज में मौजूद मौलवियों को आड़े हाथ लिया। महिला कार्यकर्ताओं के मुताबिक, भारत के मौलवियों ने मुस्लिम महिलाओं को बच्चे पैदा करने की मशीन बना रखा है, जिसके सहारे वो अपने एजेंडे को पूरा करते हैं। भारत के मुल्ला मौलवी आए दिन मुसलमानों से ज्यादा बच्चे पैदा करने के लिए दबाव बनाते हैं, फतवे जारी करते हैं, वो फतवे मुसलमानों की भलाई के लिए नहीं, बल्कि उनके अपने स्वार्थ के लिए होते हैं।
कई महिलाओं ने शिकायत की है कि मौलवी उनसे धर्म के नाम पर बच्चे पैदा करने को कहते हैं। मुस्लिम महिलाओं को बच्चे पैदा करने की मशीन बनाने के रिपोर्ट पर पढ़ी लिखी मुस्लिम महिलाओं की भारत के मुसलमानों को सलाह है कि वो फैमिली प्लानिंग पर जोर दें और अल्लाह के इस्लाम को मानें न कि मुल्ला के इस्लाम को, क्योंकि मुल्ला के इस्लाम को मानने से और ज्यादा बच्चे पैदा करने से हम बच्चों को सर उठा कर जीने के अधिकार को भी छीन लेते हैं। जब आमदनी कम होगी और बच्चे ज्यादा होंगे तो लाजिम है कि अपने बच्चे को बेहतर जिंदगी से महरूम रखेंगे, जिस पर उसका हक है।
जनसंख्या विस्फोट पर क्या कहते हैं विशेषज्ञ?
भारत में मुस्लिमों के इस रफ्तार से आबादी बढ़ाने पर विशेषज्ञों का कहना है कि भारत की ज्यादातर समस्याओं का मूल कारण भारत में होने वाला जनसंख्या विस्फोट है। फिर चाहे वो गरीबी हो या भुखमरी। भारत में अब जरूरत है जनसंख्या नियंत्रण कानून लाने की, वरना यह जनसंख्या विफोट भारत को ले डूबेगा।
विश्व के अगर अन्य देशों में बच्चे पैदा करने की दरों की बात करें तो अमेरिका में बच्चे पैदा करने की प्रति नागरिक दर 1.7 है तो ब्रिटेन की 1.6। मुस्लिम देश संयुक्त अरब अमीरात की प्रति नागरिक बच्चे पैदा करने की दर 1.4 फीसदी है, कतर की 1.8 प्रतिशत। कट्टर मुस्लिम देश सऊदी अरब और सबसे ज्यादा मुसलमान जनसख्या वाले देश इंडोनेशिया की भी बच्चे पैदा करने की दर 2.3 है यानी भारतीय मुसलमानों से कम। ऐसे में अब समय की मांग है कि भारत में जनसख्या कानून लागू हो, ताकि भारत और भारतीयों को जनसंख्या विस्फोट से बचाया जा सके।
(वरुण भसीन की रिपोर्ट)
टाइम्स नाउ नवभारत