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Kargil Vijay Diwas: जानिए क्या था वायु सेना का ऑपरेशन 'सफेद सागर' जिसने पलट दी बाजी

Updated Jul 26, 2020 | 05:00 IST

Operation Safed Sagar: कारगिल के युद्ध में वायु सेना 26 मई से सक्रिय हुई। इसने आते ही युद्ध का पूरा माहौल एवं समीकरण बदल दिया। IAF ने करगिल की चोटियों पर बैठे दुश्मन के बंकरों को चुन-चुन कर निशाना बनाया।

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कारगिल युद्ध में भारतीय वायु सेना ने दुश्मन के हौसले पस्त कर दिए। -फाइल पिक्चर (IAF)

नई दिल्ली : कारिगल की ऊंची चोटियों पर बैठे पाकिस्तानी सेना के रेगुलर जवान आतंकियों के साथ मिलकर भारतीय फौज को निशाना बना रहे थे। अपने से ऊंची जगह पर बैठे दुश्मनों पर वार कर पाना भारतीय सैनिकों के लिए मुश्किल हो रहा था। ऐसे में भारत सरकार ने दुश्मन को तहस-नहस करने के लिए वायु सेना को जिम्मेदारी सौंपी। साथ ही वायु सेना से कहा गया कि वह किसी भी स्थिति में वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलओसी) पार नहीं करेगी। सरकार के इस फैसले का सम्मान करते हुए वायु सेना ने मोर्चा संभाला और अपने हमलों से लंबे दिनों तक खींचने वाले युद्ध को समेट दिया। ऑपरेशन 'सफेद सागर' के जरिए भारतीय वायु सेना ने अपने शौर्य, पराक्रम और जांबाजी की अद्भुत मिसाल पेश की। कारगिल की 16 हजार से 18 हजार फीट की ऊंचाई और दुर्गम पहाड़ियों के बीच इतने बड़े पैमाने पर लड़ाकू विमानों की तैनाती एक बेहद कामयाब अभियान माना जाता है। 

वायु सेना ने युद्ध को समेट दिया
वायु सेना का दखल नहीं हुआ होता तो कारगिल युद्ध और लंबा खींचता। वायु सेना के हेलिकॉप्टर एवं लड़ाकू विमानों ने अपने हमलों से पाकिस्तानी सेना के नापाक हौसलों को पस्त कर दिया और उनके छक्के छुड़ा दिए। ऊंची चोटियों पर बैठे आतंकियों एवं पाक सेना को अपने बंकर छोड़कर भागना पड़ा और जो नहीं भागे वे मारे गए। वायु सेना के इस दखल ने कारगिल युद्ध में सेना को अपना अभियान तेज करने में मदद पहुंचाई और युद्ध का पूरा समीकरण भारत के पक्ष में कर दिया। 

11 मई 1999 को सेना की मदद के लिए आगे आई वायु सेना
कारगिल की ऊंची चोटियों पर बैठे आतंकियों एवं पाकिस्तानी सैनिकों को भगाने में सेना की मदद के लिए वायु सेना 11 मई को आगे आई। सुरक्षा मामलों की समिति (सीसीएस) ने बिना एलओसी पार किए वायु सेना को अपने हेलिकॉप्टरों के इस्तेमाल की इजाजत दी। लेकिन बाद में यह जरूरत महसूस की गई कि लड़ाई में लड़ाकू विमानों को उतारे बिना काम नहीं बनेगा। इसके बाद सरकार ने सेना के इस प्रस्ताव को भी मंजूरी दे दी। इसके बाद वायु सेना ने अपने ऑपरेशन 'सफेद सागर' की शुरुआत की।  

सरकार ने एलओसी पार न करने की रखी शर्त
11 मई 1999 के बाद भारतीय वायु सेना कारगिल में सेना की टुकड़ियों, भारी हथियारों एवं गोला-बारूद पहुंचने के लिए अपना अभियान शुरू कर दिया। कुछ घंटों में सीमित युद्ध के लिए तैयार हो जाने वाली वायु सेना युद्ध में बड़े पैमाने पर अपनी भूमिका निभाने के लिए 15 मई की सुबह से तैयार हो गई। कारिगल की दुर्गम पहाड़ियों एवं दुश्मन के लोकेशंस की जानकारी हासिल करने के बाद वायु सेना प्रमुख ने औपचारिक रूप से अपना अभियान शुरू करने की इजाजत सरकार से मांगी। इस मांग को सरकार ने तुरंत स्वीकार कर लिया लेकिन यह भी कहा गया कि वायु सेना किसी भी सूरत में एलओसी को पार नहीं करेगी।

पाक को हवाई हमलों की उम्मीद नहीं थी
कारगिल के युद्ध में वायु सेना 26 मई से सक्रिय हुई और इसने आते ही युद्ध का पूरा माहौल एवं समीकरण बदलकर रख दिया। वायु सेना कारगिल की चोटियों पर बैठे दुश्मन के बंकरों को चुन-चुन कर निशाना बनाना शुरू किया। दुश्मन की सप्लाई लाइन और उनकी लॉजिस्टिक सपोर्ट पूरी तरह से काट दी। वायु सेना ने अपने अभियान में मिग-21, मिग 23, मिग-27, मिग-29, मिराज-2000 और जगुआर से ऊंची चोटियों पर बम गिराए, जहां पाक सैनिकों ने कब्जा जमा लिया था। इससे आतंकियों एवं पाकिस्तानी जवानों को पीछे से हर तरह की मदद मिलनी बंद हो गई। ऊपर चोटियों पर क्या हो रहा है पाकिस्तानी सेना को भनक तक नहीं लग पाई। पाकिस्तान को इस बात का जरा भी अंदेशा नहीं था कि कारगिल युद्ध में भारत अपनी वायु सेना को उतार देगा। सेना को जिस भी चोटी को दुश्मन से खाली कराना होता था उस पोजीशन पर पहले वायु सेना हमला कर दुश्मन के बंकर को तहस-नहस कर देती थी। इससे नीचे से ऊपर चोटी की तरफ बढ़ने वाली सेना का काम आसान हो जाता था। 

सामरिक रूप से बेहतर पोजीशन में था दुश्मन
वायु सेना के हमलों ने दुश्मन को भारी क्षति पहुंचाई। पाकिस्तान सेना के जवान और आतंकवादी कारगिल की ऊंचाई पर बंकर बनाकर बैठे थे ऐसे में नीचे से पहाड़ी के ऊपरे हिस्से की तरफ बढ़ने वाली भारतीय फौज को निशाना बनाना उनके लिए आसान काम था। इस युद्ध में वायु सेना को यदि नहीं उतारा गया होता तो भारत को ज्यादा नुकसान उठाना पड़ता। इस बात को इससे समझा जा सकता है कि इस युद्ध में बेहतरीन सामरिक स्थिति में होने के बावजूद दुश्मन को ज्यादा नुकसान उठाना पड़ा। इस युद्ध में पाकिस्तानी सेना के जवान सहित करीब 3000 आतंकवादी मारे गए। जबकि भारत की तरफ से करीब 500 जवान शहीद हुए। 

युद्ध के दौरान वायु सेना ने भरीं करीब 5000 उड़ानें
ऑपरेशन 'सफेद सागर' के दौरान वायु सेना ने करीब 50 दिनों में हर तरह की कुल करीब 5000 उड़ानें भरीं। कारगिल की दुर्गम पहाड़ियों के बीच 20 हजार की फिट की ऊंचाई पर युद्ध अभियान चलाना आसान काम नहीं था। इसके लिए विशेष प्रशिक्षण एवं तकनीकी योग्यता की जरूरत होती है लेकिन भारतीय युवा सेना ने दुनिया को दिखा दिया कि वह विपरीत स्थितियों एवं बेहद जटिल अभियान को सफलता पूर्वक अंजाम देने की उसके अंदर काबिलियत है।  

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