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रूस-यूक्रेन युद्ध के बीच भारत की दिखी अलग विदेश नीति,ये 5 फैसले दे रहे हैं गवाही

Updated Apr 14, 2022 | 21:15 IST

India Diplomacy: विदेश मंत्री एस.जयशंकर की इस समय खूब चर्चा हो रही है। मानवाधिकार के मुद्धे और रूस से तेल खरीदने पर जिस तरह उन्होंने बेबाकी से बयान दिया है, वह सुर्खियां बटोर रहा है।

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तस्वीर साभार:&nbspPTI
फाइल फोटो: पीएम मोदी के साथ विदेश मंत्री एस.जयशंकर और एनएसए अजीत दोभाल
मुख्य बातें
  • रूस से तेल खरीद पर विदेश मंत्री एस.जयशंकर ने अमेरिका में दिखाया आइना।
  • भारत में मानवाधाकिर मुद्दों पर उठे सवालों पर विदेश मंत्री ने रखी बेबाक राय।
  • रूस-यूक्रेन युद्ध के दौरान भारत की डिप्लोमेसी का दिखा अलग अंदाज।

India Diplomacy: 2+2 वार्ता के लिए अमेरिका दौरे पर गए भारतीय विदेश मंत्री एस.जयशंकर की इस समय खूब चर्चा हो रही है। उनकी चर्चा की वजह मानवाधिकार के मुद्दे और रूस से भारत के तेल खरीदने पर दिया गया बयान है। इन दोनों मसलों पर जिस तरह जयशंकर ने बेबाकी से बयान दिया, उससे राजनयिक के साथ-साथ आम लोग भी प्रशंसा कर रहे हैं। सोशल मीडिया पर भी उनके बयानों की चर्चा हो रही है।

क्या दिया बयान

सोमवार को एस जयशंकर अपने समकक्ष अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन के साथ वॉशिंगटन में प्रेस वार्ता कर रहे थे। उस दौरान एक  पत्रकार ने रूस से भारत के तेल खरीदने पर सवाल पूछा था, कि भारत क्यों तेल खरीद रहा है ? इसके जवाब में एस जयशंकर ने कहा कि आप भारत के तेल खरीदने से परेशान हैं लेकिन यूरोप एक दोपहर में जितना तेल खरीदता है, उतना भारत एक महीने में भी नहीं खरीदता है। इसलिए अपनी चिंता उधर  कर लें ।

इसके बाद भारत मानवाधिकार के उठे सवालों पर विदेश मंत्री जयशंकर ने कहा कि लोगों को हमारे बारे में विचार रखने का अधिकार है। लॉबी और वोट बैंक इसे आगे बढ़ाते हैं। लेकिन हम भी समान रूप से उनके विचारों और हितों के बारे में विचार रखने के हकदार हैं। इसलिए, जब भी कोई चर्चा होती है, तो मैं कर सकता हूं ,आपको बता दें कि हम बोलने से पीछे नहीं हटेंगे। मैं आपको बताऊंगा कि हम संयुक्त राज्य अमेरिका सहित अन्य लोगों के मानवाधिकारों की स्थिति पर भी अपने विचार रखते हैं। इसलिए, जब हम इस देश में मानवाधिकार के मुद्दों को उठाते हैं, खासकर जब वे हमारे समुदाय से संबंधित होते हैं। 

जयशंकर के बयान से साफ है कि भारत अब दो-टूक बातें कर रहा है।  बदली रणनीति को इन 5 उदाहरणों से समझा जा सकता है, जो उसने रूस-यूक्रेन युद्ध के दौरान दिखाई  है..

1.रूस-यूक्रेन युद्ध के दौरान संयुक्त राष्ट्र संघ में पश्चिमी देशों ने रूस के खिलाफ 10 बार प्रस्ताव रखे। और उनकी हर बार कोशिश रही कि भारत उनके पाले में आ जाय लेकिन भारत ने ऐसा नहीं किया। वह हर बार तटस्थ डिप्लोमेसी पर रहा। जबकि कई बार विशेषज्ञ यह मान रहे थे कि भारत पर पश्चिमी देशों का दबाव उसकी डिप्लोमेसी को बदल सकता है।

2. इस बीच मार्च में अमेरिका में उप राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (डिप्टी एनएसए) दलीप सिंह भारत आए । उन्होंने भारत के तटस्थ रूख पर धमकी भरे शब्दों में कहा कि एलएसी पर जब चीन उल्लंघन करेगा तो रूस काम नहीं आएगा। इसके बावजूद भारत न केवल अपने रूख पर अडिग रहा बल्कि उसी बीच भारत दौरे पर आए रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लावरोफ ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात भी की। अहम बात यह रही कि दलीप सिंह से मोदी नहीं मिले।

3.चीन के विदेश मंत्री वांग यी भी भारत आए थे। वह भी मोदी से नहीं मिल पाए, जबकि ऐसी चर्चा थी कि उन्होंने पीएम मोदी से मिलने की इच्छा जताई थी। लेकिन भारत ने साफ कर दिया था कि पहले एलएसी का मुद्दा सुलझना जरूरी है।

4.ऑस्ट्रेलिया ने भी भारत के रुख को लेकर असहजता दिखाई थी, लेकिन इसके बावजूद भारत-ऑस्ट्रेलिया के बीच हाल ही में ऐतिहासिक व्यापारिक समझौता भी हुआ। जो कि लंबे समय से अटका हुआ था।

रूस से तेल खरीद पर अमेरिका का बदला रूख, बोला-भारत नहीं कर रहा है उल्लंघन

5.इसी तरह रूस से तेल खरीद पर मोदी-बाइडेन की वर्चुअल मीटिंग के बाद अमेरिका के रूख में बड़ा बदलाव आया। दोनों नेताओं की बैठक के बाद व्हाइट हाउस प्रवक्ता जेन साकी (Jen Psaki) ने कहा कि रूस से एनर्जी आयात पर प्रतिबंध नहीं है और भारत अमेरिकी प्रतिबंधों का उल्लंघन नहीं कर रहा है। इसके बाद जयशंकर ने भी अमेरिका में बयान देकर साफ कर दिया, भारत पश्चिमी देशों के दबाव में कोई फैसला नहीं करेगा। ऐसे ही भारत ने रूस का नाम लिए बगैर यूक्रेन के बूचा में हुए नरसंहार के आरोपों पर भी चिंता जताई और निष्पक्ष जांच की मांग कर डाली।

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