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गलवान की खूनी झड़प के बाद LAC पर मंडराने लगे थे युद्ध के बादल, एक गलती चीन को भारी पड़ सकती थी

Updated Jun 15, 2021 | 06:48 IST

Galwan Valley Clash : गलवान घाटी में 15 जून 2020 को भारत और चीन के चैनिकों के बीच खूनी झड़प हुई जिसमें भारत के एक कर्नल सहित 20 जवान शहीद हुए। इस झड़प में चीनी सैनिकों को भारी नुकसान पहुंचा।

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तस्वीर साभार:&nbspPTI
गलवान में खूनी झड़प के बाद चीन को सबक सिखाने के लिए तैयार था भारत। -प्रतीकात्मक तस्वीर
मुख्य बातें
  • गलवान घाटी में 15 जून की हिंसा के बाद भारत और चीन के रिश्तों में आई तल्खी
  • गलवान घाटी की हिंसा में भारत के 20 जवान शहीद हुए थे, चीन को भी हुआ नुकसान
  • एलएसी पर तनाव काफी बढ़ गया था, चीन की एक गलती से युद्ध की शुरुआत हो सकती थी

नई दिल्ली : गलवान घाटी की हिंसक घटना के आज एक साल पूरे हो गए। 15 जून 2020 को भारत-चीन के सैनिकों के बीच हुई इस हिंसक घटना ने दोनों देशों को युद्ध के कगार पर लाकर खड़ा कर दिया था। माहौल इतना तनावपूर्ण हो गया था कि किसी भी तरफ से छोटी सी उकसावे की कार्रवाई एलएसी पर बड़े टकराव या युद्ध की शुरुआत कर सकती थी। चीन के हर चाल एवं दांव का माकूल जवाब देने के लिए भारत ने अपनी पूरी तैयार की कर ली थी। लद्दाख के पूर्वी इलाकों, पैंगोंग त्सो झील सहित तनाव वाले कई क्षेत्रों में दोनों देशों की सेनाएं महीनों तक एक-दूसरे के आमने-सामने रहीं। 

एलएसी पर तेजी के साथ मुस्तैद हुआ भारत
एलएसी पर चीन के अतिक्रमण के बाद भारत ने जिस तेजी के साथ अपनी सेना एवं साजो सामान अग्रिम मोर्चों पर पहुंचाया और वायु सेना की तैनाती की। उससे चीन हैरत में पड़ गया। उसे उम्मीद नहीं थी कि नई दिल्ली से उसे इस तरह से कड़ी प्रतिक्रिया देखने को मिलेगी। बहरहाल, शीर्ष कमांडर स्तर पर महीनों तक चली कई दौर की बातचीत के बाद दोनों देश तनाव वाले इलाकों से अपनी फौज और टैंक पीछे करने पर सहमत हुए। 

ठीक नहीं चीन के इरादे 
आज की स्थिति यह है कि सैन्य कमांडरों के बीच जो सहमति बनी है वह धरातल पर अभी भी पूरी तरह से लागू नहीं हो पाई है। चीन गोगरा एवं हॉट स्प्रिंग इलाके से अपनी फौज पीछे हटाने से आना-कानी कर रहा है। हालांकि, इन इलाकों को खाली करने के लिए भारत उस पर लगातार दबाव बनाए हुए है। एलएसी पर फिलहाल स्थिति शांतिपूर्ण बनी हुई है लेकिन चीन सीमा पर जिस तरह की हरकतें कर रहा है उससे उसकी मंशा पर सवाल उठते हैं। एलएसी एवं भारतीय इलाकों पर उसके इरादे नेक नहीं हैं। 

तिब्बत में है चीन भारी फौज 
एलएसी के समीप एवं तिब्बत में अपने भीतरी इलाके में बड़ी संख्या में उसकी फौज, हथियार एवं सैन्य उपकरण मौजूद हैं। हाल ही में चीन और पाकिस्तान की वायु सेना ने एक साथ युद्धाभ्यास किया है। जाहिर है एलएसी पर उसकी शरारतपूर्ण एवं उकसाव की कार्रवाई दोनों देशों के बीच एक बार फिर तनाव को जन्म दे सकती है।   

एलएसी पर भारत के विकास कार्यों से घबराया चीन 
चीन बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव, सीपेक में अरबों डॉलर का निवेश किया है। भारत पिछले कुछ वर्षों में लद्दाख और एलएसी पर अपनी पहुंच एवं पकड़ मजबूत की है और इन इलाकों में अपने विकास एवं आधारभूत संरचनाओं को मजबूत किया है। चीन को लगता है कि भारत की इस सक्रियता से आने वाले समय में उसके इरादों एवं मंसूबों को चुनौती मिल सकती है या खतरा उत्पन्न हो सकता है। गलवान घाटी का सामरिक महत्व है। यह लद्दाख के पश्चिम और अक्साई चिन के पूर्वी इलाके में स्थित है। गलवान घाटी के पश्चिमी सिरे पर श्योक नदी और डरबुक-श्योक-दौलत बेग ओल्डी रोड स्थित हैं। घाटी का पूर्वी हिस्सा चीन के शिनजियांग प्रांत से बहुत दूर नहीं है।     

मुगालते में रहा चीन
चीन को लगा कि कोरोना संकट एवं उसके प्रकोप से निपटने में लगी दुनिया भारत और चीन के बीच इस सीमा विवाद पर ध्यान नहीं देगी जैसे कि 1962 में हुआ था। 1962 के भारत-चीन युद्ध के समय क्यूबा न्यूक्लियर मिसाइल संकट चल रहा था। क्यूबा को लेकर अमेरिका और रूस आमने-सामने थे और उनके बीच परमाणु हमले की नौबत तक आ गई थी लेकिन 2020 में चीन की यह सोच गलत साबित हुई। गतिरोध की शुरुआत होते ही अमेरिका सहित दुनिया के तमाम ताकतवर देशों ने भारत के रुख का समर्थन किया। भारत को मिले वैश्विक समर्थन ने चीन को बैकफुट पर लाने का काम किया।    

भारत की सैन्य एवं आक्रामक तैयारी देख चीन के होश उड़े 
वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर भारत इस आक्रामकता से पेश आएगा, बीजिंग ने इसकी कल्पना नहीं की थी। भारत ने शुरू से ही अपना स्टैंड बिल्कुल साफ कर दिया था कि वह किसी भी सूरत में पीछे नहीं हटेगा और अपनी संप्रभुता की रक्षा के लिए उसके सभी विकल्प खुले हैं। अरुणाचल से लकेर लद्दाख तक भारत ने जिस तेजी के साथ अपनी फौज और सैन्य साजो-समान पहुंचाया, उससे चीनी खेमे में बेचैनी बढ़ गई। एलएसी के समीप सभी वायु सेना ठिकानों पर लड़ाकू विमानों की तैयारी, तैनाती एवं अभ्यासों से चीन को संदेश मिल गया कि इस बार भारत की वायु सेना 1962 वाली गलती नहीं दोहराएगी। इस बार वह कड़ा प्रहार करेगी।  

दोनों देशों के सैनिकों के बीच बड़ा अंतर
भारत के प्रत्येक बटालियन में एक 'घातक प्लाटून' होती है। इस प्लाटून के जवानों को बिना हथियारों के दुश्मन की जान लेने की प्रशिक्षण मिला होता है।  कर्नल संतोष बाबू के नेतृत्व में जवानों की जो टुकड़ी गई थी वह इसी 'घातक प्लाटून' के जवान थे। इस प्लाटून के जवानों ने चीनी सैनिकों की जो दुर्दशा की उससे उनके हाथ-पांव फूल गए। दरअसल, चीनी सेना के जवानों पूरे मन से लड़ने की इच्छाशक्ति की कमी पाई जाती है। वह लड़ाई करना नहीं चाहती। इसका एक बहुत बड़ा कारण चीन की 'वन चाइल्ड पॉलिसी' रही है। 

भारतीय सैनिकों के लिए घर जैसे हैं लेह, लद्दाख के इलाके
चीन के सैनिक मरना नहीं चाहते। जबकि भारतीय सेना के जांबाज शहादत पाने के लिए बेचैन रहते हैं। भारतीय जवानों का जो सम्मान देश में मिलता है वैसा चीन के सैनिकों को नसीब नहीं होता। दूसरा, भारतीय सेना के प्रशिक्षण का स्तर बहुत ऊंचा और पेशेवर है, इसकी बराबरी करना चीन के लिए आसान नहीं है। भारतीय सेना दशकों से ऊंची पहाड़ियों पर पाकिस्तान एवं आंतकवादियों से जूझती आई है। भारतीय सेना को अच्छी तरह पता है कि ऐसी परिस्थितियों से कैसे निपटना है। कारगिल युद्ध के बाद भारतीय वायु सेना के पास जो अनुभव एवं तैयारी है वैसा अनुभव दुनिया के किसी देश के पास नहीं है। लेह, लद्दाख एवं बर्फीले इलाके भारतीय सेना के लिए अपने घर जैसे हैं।

चीन पर भारी पड़ेगी वायु सेना 
चीन अपने जे-20 (चेंगदू) लड़ाकू विमानों को लेकर लंबी-चौड़ी बातें और दावे करता है लेकिन इस विमान की असलियत कुछ और है। चीन इसे पांचवी पीढ़ी का विमान बताता है लेकिन रक्षा विशेषज्ञ मानते हैं कि यह विमान चौथी पीढ़ी से थोड़ा उन्नत है। यह भारत के सुखोई-30 और राफेल जैसा ही है। युद्ध की सूरत में चीन के लड़ाकू विमानों को तिब्बत के वायु ठिकानों से उड़ान भरनी होगी। हजारों फिट की ऊंचाई से उड़ान भरने वाले लड़ाकू विमानों की ताकत कमजोर हो जाती है। वह अपनी पूर्ण मारक क्षमता से उड़ान नहीं भर सकते। 

तिब्बत से उड़ान पर चीनी लड़ाकू विमानों की क्षमता कम हो जाएगी
तिब्बत के वायु ठिकानों से उड़ान भरने वाले फाइटर प्लेन को अपने पे-लोड एवं ईंधन की क्षमता में 40 से 50 प्रतिशत की कमी करनी होगी। जबकि भारत के सुखोई, राफेल और मिग-29 जम्मू, बरेली, तेजपुर और अन्य एयरबेस से अपनी पूर्ण मारक एवं अभियानगत क्षमता-दक्षता के साथ उड़ान भरेंगे। यही नहीं, युद्ध की शुरुआत होने पर भारत अपनी नौसेना के जरिए चीन के लिए बड़ी मुसीबत खड़ी कर सकता है। भारतीय नौसेना मलक्का समुद्री मार्ग से चीन में होने वाली तेल एवं अन्य जरूरी सामग्रियों की सप्लाई रोक सकती है। इससे चीन की अर्थव्यवस्था के लिए बड़ा संकट उत्पन्न हो जाएगा।  

लद्दाख से अरुणाचल प्रदेश तक चीन के साथ भारत की 3,488 किलोमीटर की सीमा लगता है। इसमें पश्चिमी सेक्टर की सीमा 1,597 किलोमीटर, मध्य सेक्टर में 545 किलोमीटर और पूर्वी सेक्टर में 1,346 किलोमीटर की सीमा रेखा है। लद्दाख में 836 किलोमीटर की एलएसी है। 

इस तरह से एलएसी पर बढ़ा तनाव

पांच मई
इस दिन पैंगोंग त्सो झील के पास भारत और चीन के सैनिकों के बीच झड़प हुई। यह झील एलएसी के साथ-साथ लद्दाख से होते हुए तिब्बती क्षेत्र से जुड़ती है।

10 मई
सिक्किम के मुगुठांग वैली में भारत और चीन के सैनिकों के बीच छड़प। यहां संघर्ष में कुल 11 सैनिक घायल हुए जिनमें चीन के सात और भारत के चार जवान जख्मी हुए।

21 मई
चीन के सैनिक लद्दाख के गलवान घाटी इलाके में दाखिल हुए। चीनी सैनिकों ने यहां भारत द्वारा बनाए जा रहे सड़क का विरोध किया। 

24 मई
चीन की सेना हॉट स्प्रिंग, पेट्रोलिंग प्वाइंट 14 और गलवान घाटी के पेट्रोलिंग प्वाइंट 15 तक आ गई। 

15 जून
गलवान घाटी में कर्नल संतोष बाबू की अगुवाई में चीनी सैनिकों के साथ खूनी झड़प हुआ। इस हिंसक संघर्ष में भारत के कर्नल बाबू सहित 20 जवान शहीद हुए। चीन की तरफ बड़ी संख्या में सैनिक हताहत हुए। खास बात यह है कि यहां एक भी गोली नहीं चली।  

कब-कब हुई झड़प

नाथु ला में संघर्ष (1967)
यहां 11 सितंबर 1967 को दोनों देशों के सैनिकों के बीच संघर्ष हुआ। चीनी सैनिकों ने नाथु ला में स्थित भारतीय पोस्ट पर कथित रूप से हमला किया। नाथु ला पूर्वी सिक्किम में एक दर्रा है।

अक्टूबर 1975
अरुणाचल प्रदेश में तवांग जिले के तुलुंग ला में भारत और चीन के सैनिकों में झड़प हुआ। इस झड़प में भारत के चार जवान शहीद हुए। बाद में इसे एक घटना बताया गया। कहा गया है कि धुंध के चलते सैनिक अपना रास्ता भटक गए। 

अप्रैल 2013
एलएसी के पास दौलत बेग ओल्डी में चीन की सेना ने अपने कैंप लगा लिए थे। इस पर भारत ने कड़ा विरोध जताया। बाद में भारत ने भी यहां चीनी कैंप के सामने अपनी टुकड़ी तैनात कर दी। बातचीत के बाद दोनों देश मई की शुरुआत में यहां से अपने सैनिक हटाने के लिए तैयार हुए। 

सितंबर 2014
डेमचोक के एक सीमावर्ती गांव में नहर के निर्माण पर चीन ने विरोध जताया। उसने यहां अपने सैनिक भेज दिए जिसके बाद गतिरोध पैदा हो गया। तीन सप्ताह के बाद दोनों देश अपने सैनिक पीछे हटाने के लिए तैयार हुए जिसके बाद तनाव दूर हुआ।

जून 2017
भूटान-सिक्किम बॉर्डर पर स्थित डोकलाम में भारत और चीन के बीच 72 दिनों तक गतिरोध चला। यहां चीन की ओर से बनाई जा रही सड़क का भारत ने विरोध किया। यहां भी दोनों देशों की सेना आमने-सामने आ गई थी। गतिरोध एवं तनाव काफी बढ़ गया था लेकिन शीर्ष स्तर पर बातचीत के बाद चीन पीछे हटने के लिए तैयार हुआ।  

 

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