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Women's Day: लोग क्या कहेंगे परवाह नहीं की, लड़की होकर भी महिलाओं के अंडरगॉरमेंट्स बेचने निकल पड़ी

Updated Mar 08, 2020 | 01:03 IST

International Women's Day: एक समय वह भी था जब कारोबार क्षेत्र को महिलाओं के लिए 'नो एंट्री' समझा जाता था और जब कोई महिला अपना कारोबार या उद्यम शुरू करती थी तो उसका हौसला बढ़ाने की जगह उसे हतोत्साहित किया जाता।

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तस्वीर साभार:&nbspInstagram
अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस 2020।

नई दिल्ली : भारत में कारोबार की कहानी सदियों पुरानी है। कारोबारी स्थितियों के चलते यह देश दुनिया के लिए पसंदीदा जगहों में से एक रहा है। विगत दशकों में भारतीय अर्थव्यवस्था तेजी के साथ आगे बढ़ी है और आज वह दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है। भारत को कामयाबी के इस ऊंचाई तक पहुंचाने में पुरुष उद्यमियों के साथ-साथ महिला उद्यमियों का भी हाथ रहा है। कारोबार जगत को पुरुषों का दबदबे वाला क्षेत्र माना जाता है लेकिन महिला उद्यमियों ने अपनी लगन, साहस और मेहनत के दम पर अपने कारोबार को जो ऊंचाई दी है वह आज सभी के लिए एक नजीर है। 

एक समय वह भी था जब कारोबार क्षेत्र को महिलाओं के लिए 'नो एंट्री' समझा जाता था और जब कोई महिला अपना कारोबार या उद्यम शुरू करती थी तो उसका हौसला बढ़ाने की जगह उसे हतोत्साहित किया जाता था और उसकी राह में अड़चनें खड़ी की जाती थीं लेकिन महिला उद्यमियों ने अपनी कामयाबी से आज यह साबित कर दिया है कि वे किसी मायने में पुरुषों से कम नहीं हैं। अवसर और सहयोग मिलने पर वे भी सफलता के कीर्तमान कायम कर सकती हैं और उन्होंने यह कर भी दिखाया है। 

आज भारत के आर्थिक विकास की कहानी में उनकी भी एक अहम भूमिका है। भारतीय अर्थव्यवस्था को आगे बढ़ाने में उनके योगदान की अनदेखी नहीं की जा सकती। इन महिलाओं ने अपने कारोबार को सफल बनाकर दूसरों के लिए एक मिसाल पेश की है। आज महिला दिवस है। इस अवसर हम कारोबार जगत की कुछ ऐसी महिलाओं के बारे में आपको बताएंगे जिन्होंने चुनौतियों एवं अवरोधों के बावजूद वे अपनी राह से विचलित नहीं हुईं और व्यापार एवं उद्यम के क्षेत्र में एक चमकते सितारें के रूप में उभरीं- 

तकनीक से बनाई भाषा सीखने की राह आसान (प्रांशु पाटनी को-फाउंडर-कल्चर एलाई, हेलो इंग्लिश)
भाषा सीखन में तकनीक कितनी कारगर साबित हो सकती है इसे प्रांशु पाटनी ने कर दिखाया। लोगों इंग्लिश सहित विदेशी भाषा आसानी से सिखाने के लिए प्रांशु ने अपने पति के साथ मिलकर साल 2014 में हेलो इंग्लिश एप की शुरुआत की। प्रांशु ने यह अनुभव किया कि अंग्रेजी भाषा बोलाना आज भी लोगों के लिए एक चुनौती है। प्रांशु के पति जो कि शाकाहारी हैं, कामकाज सिलसिले में एक बार चीन गए थे, वहां स्थानीय लोगों से बातचीत करने के लिए उन्हें मंडारिन भाषा आना जरूरी थी। इस घटना के बाद प्रांशु ने भाषा की दिक्कत दूर करने की सोची। इसके लिए उन्होंने अपनी नौकरी छोड़ दी और एक ऐसा एप बनाने में जुट गईं जो भाषा के बंधन को आसान कर दे। 

विदेशी भाषा सीखने में मदद करने वाले एप का निर्माण करने के लिए प्रांशु और उनकी टीम ने काफी रिसर्च किया और पेशेवर लोगों की मदद ली। रिसर्च के दौरान प्रांशु ने पाया कि प्रत्येक साल करीब एक अरब लोग किसी न किसी विदेशी भाषा को सीखने की कोशिश करते हैं और इनमें से 60 फीसद संख्या अंग्रेजी सीखने की कोशिश करने वाले लोगों की है। इसे देखते हुए उन्होंने एक फ्री एप बनाया ताकि भारतीय लोग प्रभावी तरीके से अंग्रेजी सीख सकें। प्रांशु की टीम ने एप बनाने के लिए ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के लोगों की सेवाएं लीं और एप तैयार हुआ। इस एप पर अंग्रेजी सीखने के लिए 475 इंटरेक्टिव तरीके एवं गेम्स मौजूद हैं। देखते ही देखते यह एप लोगों में यह एप काफी लोकप्रिय हो गया। इस एप पर 22 भाषाओं में बॉयलिंगुअल डिक्शनरी भी मौजूद है।

आलोचनाओं से हार नहीं मानी (वंदना लुथरा, संस्थापक वीएलसीसी)
सौंदर्य एवं वेलनेस सेवा के क्षेत्र में वंदना लुथरा एक नामचीन नाम है। अपने सौंदर्य की देखभाल कैसे करें इसे लथुरा ने लोगों को समझाया। आज व्यक्तित्व के निर्माण में सौंदर्य उपचार की अनदेखी नहीं की जा सकता। लथुरा ने इस बात को बहुत पहले ही भांप लिया था। वह समझ गई थीं कि आने वाले समय में सौंदर्य उपचार व्यक्तित्व का एक अहम पहलू होने जा रहा है। आज वीएलसीसी की सेवाएं देश-दुनिया में उपलब्ध हैं। वीएलसीसी को एक सफल उद्यम बनाने में लथुरा ने कड़ी मेहनत की। 1989 में वह कारोबार के क्षेत्र में उतरीं। वह बताती हैं कि उस समय महिलाएं के लिए व्यापार का क्षेत्र आसान नहीं था। लोग तरह-तरह के सवाल करते थे। यह पुरुषों के दबदबे वाला क्षेत्र थे। पुरुष तमाम तरह की आलोचना और व्यवधान खड़े करते थे। लुथरा का कहना है कि वह जानती थीं कि जिस कारोबार में वह उतर रही हैं उसकी सोच अनोखी और अलग तरह की है। आज वीएलसीसी के उत्पाद एवं सेवाएं 11 देशों में उपलब्ध हैं और उनके साथ 4000 पेशेवर काम करते हैं। लुथरा के योगदान को देखते हुए भारत सरकार ने 2013 में उन्हें पद्मश्री सम्मान से नवाजा।

महिलाओं को दिया फैशन के विकल्प (सुची मुखर्जी  संस्थापक, सीईओ लाइमरोड)
सुची मुखर्जी की सफलता की कहानी भी काफी रोचक एवं दिलचस्प है। सुची को भारत का पहला फीमेल फैशन प्लेटफार्म उपलब्ध कराने का श्रेय जाता है। उनकी सोच थी कि भारतीय महिलाओं को लाइफस्टाइल से सम्बन्धित उत्पादों को एक प्लेटफॉर्म पर खरीदने का मौका मिले। इसके लिए उन्होंने प्रोफेशनल्स के साथ मिलकर लाइमरोड की शुरुआत 2012 में की। सुची की टीम में आईआईटी और एनआईएफटी के पेशेवर शामिल हैं। शुरू में सुची की टीम को फंडिंग जैसी समस्या से जूझना पड़ा लेकिन जैसे ही लोगों को उनकी सोच पसंद आईं उनकी परेशानी दूर होती गई। कम ही समय में सुची ने अपने उद्यमिता कौशल से सभी को चौंका दिया और लाइमरोड को एक सफल कारोबारी वेंचर के रूप में स्थापित कर दिया। लाइमरोड से लड़कियां और महिलाएं अपने पसंद की ज्वैरली, कपड़े और लाइफ स्टाइल से जुड़ी वस्तुएं खरीद सकती हैं।

लोग क्या कहेंगे परवाह नहीं की (रिचा कर सह-संस्थापक जिवामे) 
महज 30 लाख रुपए से अपने कारोबार की शुरुआत करने वाली रिचा कर आज जाना-पहचाना नाम हैं। उनकी कंपनी जिवामे महिलाओं के लिए ऑनलाइन अंडरगारमेंट उपलब्ध कराती है। भारत जैसे देश में एक लड़की के लिए अंडरगार्मेंट की खुलकर बात करना कितना मुश्किल है यह किसी को बताने की जरूरत नहीं है लेकिन रिचा को लगा कि इसमें कुछ नया किया जा सकता है। रिचा ने पाया कि अंडरगारमेंट की खरीदारी को लेकर महिलाओं में आज भी एक संकोच और झुंझलाहट है। उन्होंने इस संकोच को दूर करने के लिए इन वस्त्रों की ऑनलाइन बिक्री की सोची और वह इसमें सफल भी हुईं। उन्होंने पुरुषवादी सोच की परवाह नहीं की। 

आज रिचा के ऑनलाइन स्टोर में 5 हजार से ज्यादा लॉन्जरी स्टाइल और 50 ब्रांड उपलब्ध हैं। यहां से महिलाएं अपने पसंद के अंडरगारमेंट्स की खरीदारी कर सकती हैं। रिचा का कहना है कि जब वह अपने कारोबार शुरू करने के बारे में सोच रही थीं तो उन्हें अपने परिवार वालों को भरोसे में लेने के लिए काफी मेहनत करनी पड़ी। उनके इस कारोबार के बारे में जो कोई भी सुनता था वह तरह-तरह की बातें करता था लेकिन उन्होंने अपनी सोच के साथ कोई समझौता नहीं किया और वह आगे बढ़ीं। महिलाओं को रिचा की ऑनलइन पहल और सोच पसंद आई। आज रिचा एक सफल महिला उद्ममी मानी जाती हैं।

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