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क्या तालिबान से बातचीत कर रहा भारत? महबूबा मुफ्ती के बयान के मायने समझें

Updated Jun 23, 2021 | 12:39 IST

जम्मू कश्मीर (Jammu Kashmir) की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती (Mehbooba Mufti) ने कहा है कि भारत अगर तालिबान (Taliban) के साथ बातचीत कर सकता है तो उसे पाकिस्तान के साथ भी बातचीत करनी चाहिए।

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तस्वीर साभार:&nbspPTI
महबूबा मुफ्ती ने पाकिस्तान के साथ बातचीत करने पर जोर दिया है।
मुख्य बातें
  • अफगानिस्तान से अमेरिका और विदेशी सेना की वापसी होनी शुरू हो गई है
  • मौका पाकर तालिबान लड़ाकों ने देश के कई जिलों पर अपना नियंत्रण कर लिया है
  • अफगानिस्तान में आने वाले समय में तालिबान एक प्रमुख किरदार साबित होगा

नई दिल्ली : जम्मू-कश्मीर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ओर से बुलाई गई बैठक से पहले राज्य की पूर्व मुख्यमंत्री एवं पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) की मुखिया महबूबा मुफ्ती ने मंगलवार को मीडिया के सामने कई बातें कहीं। उन्होंने कहा कि भारत सरकार यदि तालिबान से बातचीत कर सकती है तो उसे पाकिस्तान से भी बातचीत करनी चाहिए। महबूबा का यह बयान तालिबान पर भारत सरकार के अब तक के आधिकारिक रुख के विपरीत है। अफगान शांति प्रक्रिया में भारत अप्रत्यक्ष रूप से जुड़ा जरूर रहा है लेकिन उसने सीधे तौर पर अभी तालिबान के साथ बात नहीं की है। 

कतर के राजनयिक के बयान से उठी चर्चा  
फिर सवाल उठता है कि महबूबा ने आखिर किस आधार पर तालिबान के साथ बातचीत का बयान दिया। दरअसल, इसका आधार मीडिया रिपोर्टें हैं जिनमें दावा किया गया है कि अफगानिस्तान से अमेरिका सहित नाटो देशों की सेनाएं की वापसी की प्रक्रिया शुरू होने के बाद भारत ने पड़ोसी देश में अपना दखल बढ़ाते हुए तालिबान नेताओं से बातचीत शुरू की है। हालांकि, मीडिया रिपोर्टों के इन दावों का न तो भारत सरकार की ओर से खंडन किया गया है और न ही इसका समर्थन। रिपोर्टों के मुताबिक अफगान शांति प्रक्रिया में शामिल रहे कतर के एक वरिष्ठ राजनयिक ने सोमवार को कहा कि भारत के अधिकारी तालिबान के साथ वार्ता कर रहे हैं। 

'भारत ने खोला बातचीत का रास्ता' 
आंतकवाद पर कतर के विदेश मंत्री के विशेश दूत मतलक बिन माजिद अल-कहतानी ने एक वेबिनार में कहा कि उनका मानना है कि भारतीय पक्ष इन दिनों तालिबान के साथ बातचीत कर रहा है क्योंकि भारत को लगता है कि अफगानिस्तान में भविष्य में बनने वाली किसी भी सरकार में तालिबान 'प्रमुख किरदार होंगे'। इसके पहले रिपोर्टों में कहा गया कि अफगानिस्तान से अमेरिकी एवं नाटो के सैनिकों की वापसी शुरू होने के बाद मुल्लाह अब्दुल घनी बरादर सहित अफगान तालिबान गुटों एवं उसके कमांडरों से बातचीत के लिए भारत ने बातचीत का रास्ता खोला है। यह भारत के अब तक के रुख के विपरीत है क्योंकि नई दिल्ली तालिबान से बातचीत नहीं करती आई है।  

अफगानिस्तान से वापस हो रही विदेशी सेना
अफगानिस्तान से अमेरिकी सेना की वापसी एक मई से शुरू हो गई है। अमेरिकी एवं नाटो सेना की वापसी शुरू होने के बाद तालिबान ने देश में अपनी स्थिति एक बार फिर मजबूत करने लगा है। तालिबान के लड़ाकों ने कई जिलों को अपने नियंत्रण में ले लिया है। इस दौरान उन्होंने सुरक्षाबलों के खिलाफ हमले तेज भी किए हैं। अफगानिस्तान नाजुक दौर से गुजर रहा है। ऐसे में अस्थिर एवं अशांत अफगानिस्तान भारत के हित में नहीं होगा। पाकिस्तान तालिबान के जरिए वहां भारतीयों हितों को नुकसान पहुंचा सकता है। 

अफगानिस्तान के पुनर्निमाण में सहयोगी देश है भारत
अफगानिस्तान के पुनर्निमाण एवं विकास में भारत उसका सबसे बड़ा क्षेत्रीय सहयोगी है। हाल के वर्षों में रूस, चीन और ईरान ने तालिबान के साथ अपने संपर्क स्थापित किए हैं। अफगानिस्तान में तालिबान के महत्व एवं उसकी भूमिका को नजरंदाज नहीं किया जा सकता। इस समूह के पाकिस्तानी सेना के साथ संपर्क हैं। हालांकि, यह भी बताया जाता है कि अफगानिस्तान में कुछ ऐसे तालिबान संगठन भी हैं जिन पर पाकिस्तानी सेना का प्रभाव बहुत कम है। ऐसे तालिबान कमांडरों के साथ बातचीत कर भारत अपने हितों को सुरक्षित एवं अपनी स्थिति मजबूत करने की रणनीति पर काम कर रहा होगा। 

अफगानिस्तान पर बढ़ रहा तालिबान का दबदबा
अफगानिस्तान से नाटो सैनिकों की वापसी के बीच तालिबान का दबदबा जिस तेजी के साथ वहां बढ़ रहा है, उस पर संयुक्त राष्ट्र ने चेतावनी जारी की है। 
संयुक्त राष्ट्र की विशेष दूत, डेबोरा ल्योंस ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) को बताया है कि तालिबान लड़ाकों ने मई से अब तक 370 में से करीब 50 जिलों पर अपना नियंत्रण कर लिया है। दरअसल, ऐसा इसलिए भी हो रहा है क्योंकि अफगान सुरक्षाबल लड़ाकों को चुनौती नहीं दे रहे हैं। इन जिलों में तालिबान विरोधी नॉर्दर्न अलायंस के लड़ाके भी उनका मुकाबला नहीं कर रहे हैं। इससे तालिबान लगातार अपनी बढ़त बना रहा है। 

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