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क्या ज्ञानवापी मुद्दे को आधार बना PFI भड़का रहा है, इनसाइड स्टोरी

Updated May 27, 2022 | 20:43 IST

ज्ञानवापी के मुद्दे पर क्या पीएफआई भड़काने का काम कर रहा है। क्या बिना किसी आधार और तथ्यों को समझे बिना मुस्लिम समाज को गुमराह करने की कोशिश कर रहा है।

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क्या ज्ञानवापी के मुद्दे को आधार बना PFI भड़का रहा है ?
मुख्य बातें
  • ज्ञानवापी मामले में 30 मई को सुनवाई
  • 30 मई को दोनों पक्षों को सौंपी जाएगी सर्वे और वीडियोग्राफी की रिपोर्ट
  • मुस्लिम पक्ष ने कहा कि सांप्रदायिक सद्भाव को चोट पहुंचने का डर

ज्ञानवापी, मथुरा पर PFI का भड़काऊ बयान  दिया है। पीएफआई का कहना है कि मुस्लिम स्थलों के खिलाफ साजिश का विरोध करें। भी याचिकाएं 1991 के वर्शिप एक्ट के खिलाफ हैं। कोर्ट ने सबूतों के आधार को नहीं देखा है। 'BJP का रवैया कानून के राज के लिए खतरा है।  वजू खाने को सील करना निराशाजनक है।'सांप्रदायिक ताकतें मस्जिदों को निशाना बना रहीं' 'पूजा स्थल का स्वरूप बदलने की मांग रद्द हो। 

मुस्लिम पूजा स्थलों के खिलाफ जारी चालों का करें प्रतिरोध : पॉपुलर फ्रंट

  1. ज्ञानवापी मस्जिद और मथुरा शाही ईदगाह मस्जिद के खिलाफ संघ परिवार के संगठनों की बद-इरादे वाली हालिया याचिकाएं पूजा स्थल अधिनियम, 1991 के सरासर खिलाफ हैं और अदालतों को इन्हें मंजूर नहीं करना चाहिए था। 
  2. स्वयं सर्वोच्च न्यायालय का ज्ञानवापी मस्जिद के वजूखाने के इस्तेमाल पर प्रतिबंध को बाकी रखना अत्यंत निराशाजनक है। अदालतों ने इस प्रकार के दावों को तथ्यों और सबूतों के आधार पर परखने की आवश्यकता भी महसूस नहीं की, जिससे यह प्रभाव पड़ता है कि देश में कोई भी कहीं भी किसी भी पूजा स्थल के बारे में ऐसे दावे कर सकता है। जिसके परिणाम स्वरूप सांप्रदायिक तत्व अब देश के कई हिस्सों में मस्जिदों को निशाना बना रहे हैं। जिसका ताजा उदाहरण कर्नाटक के मेंगलौर में जामा मस्जिद पर दावा है। यह कभी न खत्म होने वाली सांप्रदायिक दुश्मनी और अविश्वास का कारण बनेगा। 
  3. हम अदालत से अपील करते हैं कि वह पूजा स्थल कानून 1991 के साथ न्याय करे और देश के किसी भी समुदाय की किसी पूजा स्थल के दर्जे में बदलाव चाहने वाली सांप्रदायिकता पर आधारित याचिकाओं के सिलसिले पर रोक लगाए। पॉपुलर फ्रंट की जनता से अपील है कि वह मुसलमानों के पूजा स्थलों पर कब्जे की हिंदुत्व चालों का आगे बढ़कर प्रतिरोध करें।

बीजेपी का गैर - अदालती तरीका कानून के राज के लिए खतरा
बीजेपी शासित राज्यों में गैर-अदालती तरीके का इतना इस्तेमाल देश में कानून के राज के लिए खतरा है। एनकाउंटर, संपत्तियों पर बुलडोजर चलाना और हिरासत में हत्या जो योगी के उत्तर प्रदेश में आम बात बन चुकी है, अब बीजेपी शासित अन्य राज्य भी इन तरीकों को अपना रहे हैं। असम पुलिस ने हाल ही में गौ-तस्करी के आरोप में दो मुस्लिम युवकों की गोली मारकर हत्या कर दी। रामनवमी रैली की आड़ में हिंदुत्व हिंसा के बाद बीजेपी की राज्य सरकारों ने विशेष रूप से मुसलमानों को निशाना बनाया।

मध्य प्रदेश, असम, दिल्ली और गुजरात में मुसलमानों की संपत्तियों पर बुलडोजर चलाया गया। यह कानूनी प्रक्रिया के प्रति भाजपा के अंदर बढ़ती अवहेलना का सबूत है। जो आखिर में अराजकता का कारण होगा। अगर कोई अपराध होता भी है तो पुलिस और जिला प्रशासन के पास नागरिकों को सजा देने का कोई अधिकार नहीं है। कोई अपराधी है या नहीं और उसे क्या सजा देनी है यह फैसला करना अदालतों की जिम्मेदारी है। कानून के समक्ष बराबरी का अधिकार और कानूनी प्रक्रिया सभी नागरिकों का मौलिक अधिकार है। यह दुर्भाग्य की बात है कि अदालतें क्रूर गैर-अदालती कार्यवाहियों को रोकने के लिए हस्तक्षेप नहीं कर रही हैं। इसलिए वक्त की जरूरत है कि सभी समझदार नागरिक इस अन्याय के खिलाफ आवाज उठाएं

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