नई दिल्ली : जम्मू में वायुसेना के ठिकाने पर हुए हमले और इलाके में कई अन्य ड्रोन देखे जाने के बाद देश में हर किसी का ध्यान सुरक्षा चुनौतियों की ओर गया है। यह मसला अंतरराष्ट्रीय सुर्खियों में भी है। आतंकी इरादों के लिए ड्रोन के इस्तेमाल का मुद्दा भारत ने संयुक्त राष्ट्र महासभा में भी उठाया और कहा कि यह गंभीर खतरे के रूप में उभरा है। ड्रोन को लेकर इन सुरक्षा चुनौतियों के बीच लोगों के जेहन में यह सवाल आ रहा है कि आखिर इसका खतरा कितना बड़ा है और दुश्मन के इरादों को कैसे आसमान में ही नष्ट किया जा सकता है।
रिटायर्ड एयर वाइस मार्शल मनमोहन बहादुर ने 'टाइम्स ऑफ इंडिया' में एक लेख के जरिये इसे समझाया है। उन्होंने यह भी बताया कि ड्रोन को ट्रैक करना मुश्किल क्यों होता है और आसमान में मंडराते खतरे को किस तरह तबाह किया जा सकता है। अपने आर्टिकल में उन्होंने सबसे पहले यह बताया है कि आखिर ड्रोन इतने खतरनाक क्यों होते हैं?
ड्रोन इतने खतरनाक क्यों होते हैं?
ड्रोन खतरनाक क्यों होते हैं, इसकी पांच वजहें उन्होंने बताई हैं।
- एयर वाइस मार्शल (सेवा.) मनमोहन बहादुर के अनुसार, सबसे पहले तो यह समझ लेने की जरूरत है कि ड्रोन बहुत किफायती होते हैं और कोई भी इन्हें ऑनलाइन खरीद सकता है। कोई शख्स किस उद्देश्य से ड्रोन खरीद रहा है, वर्चुअल तरीके से इसका पता लगा पाना इस समय बेहद मुश्किल है।
- दूसरे, ड्रोन के अनियंत्रित प्रसार के कारण इसे खरीदने और इसका इस्तेमाल करने वाले शख्स की पहचान छिपी रहती है।
- तीसरी महत्वपूर्ण बात ये है कि ड्रोन को चलाने के लिए बहुत तकनीकी जानकारी की आवश्यकता नहीं है। जीपीएस का इस्तेमाल करते हुए इसे कहीं भी आसानी से भेजा जा सकता है। इससे अगर पिज्जा और दवाओं की डिलीवरी हो सकती है तो बम भी ले जाए जा सकते हैं।
- चौथी बात, आतंकियों के द्वारा ड्रोन के इस्तेमाल का लोगों और सुरक्षाबलों पर भी मनोवैज्ञानिक असर होता है।
- पांचवीं महत्वपूर्ण बात ये है कि आतंकी ड्रोन केवल सुरक्षा व सैन्य संस्थानों में ही नहीं, बल्कि पूरे देश में कहीं भी तैनात किए जा सकते हैं। इनसे निपटने में उच्च स्तरीय वेपन सिस्टम या फौज की तैनाती बहुत कारगर नहीं है।
ड्रोन को पकड़ने में क्या हैं मुश्किलें?
सबसे बड़ा सवाल यह है कि ड्रोन को पकड़ने में आखिर क्या मुश्किलें हैं। इसकी दो प्रमुख वजह उन्होंने बताई है।
- पहली बात तो यह कि ड्रोन बैटरी से संचालित होते हैं और इसलिए ये ज्यादा शोर नहीं करते। इसे मैनुअली ऑपरेट व कंट्रोल किया जा सकता है या फिर नीचे उड़ने के लिए इसमें प्रोग्रामिंग की जा सकती है।
- दूसरी अहम बात यह है कि छाटे आकार की वजह से ये सामान्य सिविल और मिलिट्री रडार्स की पकड़ में नहीं आते।
कैसे पता लगाएं ड्रोन का?
तो अब सवाल उठता है कि आखिर ड्रोन का पता कैसे लगाएं। इस बारे में एयर वाइस मार्शल (सेवा.) मनमोहन बहादुर ने अपने लेख में बताया है कि विशेष स्पेशल मिलीमीट्रिक वेव रडार्स, अकाउस्टिक, इलेक्ट्रो-ऑप्टिक और इन्फ्रारेड सेंसर्स के कॉम्बिनेशन का इस्तेमाल ड्रोन का पता लगाने में किया जा सकता है।
ड्रोन को कैसे खत्म करें?
आसमान में मंडराने वाले ड्रोन रूपी खतरों को नष्ट करने के लिए बंदूकों या खास तरह के जाल का इस्तेमाल किया जाता है। इसके अतिरिक्त इलेक्ट्रॉनिक तरीके और हाई पावर लेजर के जरिये भी ड्रोन नष्ट किए जा सकते हैं।
ड्रोन को नष्ट करना मुश्किल क्यों?
ड्रोन को नष्ट करने में आखिर क्या मुश्किलें आती हैं, इस साल के जवाब में एयर वाइस मार्शल (सेवा.) मनमोहन बहादुर ने बताया है कि जब ड्रोन रात के समय उड़ान भरते हैं या झुंड में आते हैं तो तत्काल जवाबी कार्रवाई मुश्किल हो सकती है। जैसा कि जम्मू में देखा गया है।
तो सरकार को क्या करना चाहिए?
ड्रोन को पकड़ने और उसे नष्ट करने में पेश आने वाली इन तमाम मुश्किलों के बीच एयर वाइस मार्शल (सेवा.) मनमोहन बहादुर ने बताया है कि सरकार को आखिर क्या करने चाहिए? उन्होंने इसके लिए पांच एक्शन सुझाए हैं:
- सबसे पहली बात, चूंकि हर अहम जगह की निगरानी संभव नहीं, इसलिए उन स्थानों को लेकर प्राथमिकता के आधार पर लिस्ट बनाने की जरूरत है, जिनकी सुरक्षा बेहद महत्पवूर्ण है। दुर्भाग्य से इसमें शख्सियतों को भी शामिल करना होगा, क्योंकि विदेशों में ड्रोन सहित मानवरहित सिस्टम्स के जरिये हत्या की कोशिशें हो चुकी हैं।
- दूसरी अहम बात, चूंकि देश में इस वक्त एंटी-ड्रोन सिस्टम का रिसर्च एंड डिवेलपमेंट और उत्पादन शुरुआती चरण में है, इसलिए कुछ खास जगहों के लिए इन्हें विदेशों से आयात किया जा सकता है।
- तीसरी महत्वपूर्ण बात, डीआरडीओ ने जो एंटी-ड्रोन सिस्टम बनाए हैं, वे राष्ट्रीय दिवसों पर VIPs की सुरक्षा सुनिश्चित करते हैं। अब समय आ गया है कि DRDO जैसे अग्रणी संस्थान को 'जम्मू' चुनौती को ध्यान में रखते हुए ऐसे सिस्टम्स के लिए R&D तेज करना चाहिए।
- चौथी बात, DRDO के रिकॉर्ड को देखते हुए इसमें प्राइवेट इंडस्ट्री को भी शामिल किया जाना चाहिए। किसी एक ही कंपनी से पूरे सिस्टम के उत्पादन की उम्मीद अगर की जाती है, इसमें बस देरी होगी।
- पांचवीं और सबसे अहम बात यह है कि ड्रोन की खरीद पर निगरानी के लिए सिस्टम बनाने की जरूरत है। इस तरह की नीति बनाने की जरूरत है कि इसमें लीगल प्लेयर्स ही आएं और टेक्नोलॉजी को गलत हाथों में जाने से बचाया जा सके।