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Jaswant Singh: सेना अधिकारी से लेकर संसद सदस्य तक, अटल सरकार में संभाले अहम मंत्रालय, जानें जसवंत सिंह के बारे

Updated Sep 27, 2020 | 09:56 IST

Jaswant Singh: पूर्व केंद्रीय मंत्री जसवंत सिंह का निधन हो गया है। वो 82 साल के थे। अटलजी की सरकार में उन्होंने कई महत्वपूर्ण विभागों की जिम्मेदारियां निभाई।

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तस्वीर साभार:&nbspIANS
पूर्व केंद्रीय मंत्री जसवंत सिंह का निधन
मुख्य बातें
  • देश के वरिष्ठ नेता और अटल सरकार में मंत्री रहे जसवंत सिंह का निधन
  • वाजपेयी सरकार में कई प्रमुख दायित्व संभाले। राज्य सभा में विपक्ष के नेता भी रहे
  • 82 वर्ष के जसवंत सिंह 2014 से ही कोमा में थे

Jaswant singh: पूर्व केंद्रीय मंत्री जसवंत सिंह का 82 साल की उम्र में निधन हो गया है। वे लंबे समय से कोमा में थे। 7 अगस्त 2014 को वो बाथरूम में गिर गए थे, तब उनको गंभीर चोटें आई थीं, उसी के बाद से वो कोमा में थे। दिल्ली में सेना के अनुसंधान और रेफरल अस्पताल में उनका इलाज चल रहा था, यहीं उन्होंने अंतिम सांस ली। सिंह का जन्म 3 जनवरी 1938 को राजस्थान के बाड़मेर जिले के गांव जसोल में एक राजपूत परिवार में हुआ था।

उनके पिता ठाकुर सरदार सिंह राठौड़ थे और माता कुंवर बाईसा थीं। जसवंत ने शीतल कंवर से शादी की। उनके दो बेटे हैं। उनके बड़े बेटे मानवेंद्र सिंह बाड़मेर से पूर्व सांसद हैं। उनके एक पोता और एक पोती भी हैं: हर्षिनी कुमारी राठौड़ और हमीर सिंह राठौड़। वह 1960 के दशक में भारतीय सेना में अधिकारी थे।

बड़े-बड़े मंत्रालय संभाले

वह भारतीय जनता पार्टी (BJP) के संस्थापक सदस्य भी रहे। वह 5 बार राज्यसभा (1980, 1986, 1998, 1999, 2004) सांसद और चार बार (1990, 1991, 1996, 2009) लोकसभा सांसद रहे। वाजपेयी सरकार (1998-2004) के दौरान वे वित्त, विदेश और रक्षा मंत्री रहे। उन्होंने योजना आयोग (1998-99) के उपाध्यक्ष के रूप में भी कार्य किया। वे 2004 से 2009 तक राज्यसभा में विपक्ष के नेता रहे।

वह 2012 में NDA की तरफ से उपराष्ट्रपति पद के लिए उम्मीदवार थे। 6 अगस्त 2012 को तमिलनाडु की मुख्यमंत्री जयललिता ने NDA के उपराष्ट्रपति पद के उम्मीदवार जसवंत सिंह के समर्थन में AIADMK का समर्थन करते हुए कहा कि एक सच्चे लोकतंत्र में विपक्ष का होना आवश्यक है। वह हामिद अंसारी से हार गए, जो यूपीए के उपराष्ट्रपति पद के उम्मीदवार थे। 

2014 में पार्टी उम्मीदवार के खिलाफ लड़ा चुनाव

2014 लोकसभा चुनाव में पार्टी ने उन्हें किसी भी निर्वाचन क्षेत्र से मैदान में नहीं उतारने का फैसला किया। उन्होंने राजस्थान में बाड़मेर के अपने मूल निर्वाचन क्षेत्र से निर्दलीय के रूप में चुनाव लड़ने का फैसला किया। इसका मतलब यह था कि वह अपनी पार्टी द्वारा चुने गए उम्मीदवार के खिलाफ उतरेंगे। उनके पीछे हटने से इनकार करने के बाद 29 मार्च 2014 को उन्हें भाजपा से निष्कासित कर दिया। वे चुनाव हार गए।

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