नई दिल्ली: कर्नाटक विधानसभा में आज विवादास्पद 'धर्मांतरण विरोधी विधेयक' पारित हो गया है। 'कर्नाटक प्रोटेक्शन ऑफ राइट टू फ्रीडम ऑफ रिलिजन बिल, 2021' मंगलवार को विधानसभा में पेश किया गया था। पहले इस पर बुधवार शाम को विचार किए जाने की उम्मीद थी, लेकिन सदन ने सभी दलों की सहमति से इस पर आज चर्चा करने का फैसला किया।
सिद्धारमैया ने अपनी पार्टी का रुख स्पष्ट कर दिया है कि वे इस विधेयक का विरोध कर रहे हैं । इस विधेयक को ईसाई समुदाय के नेताओं और जनता दल (सेक्युलर) के भारी विरोध का भी सामना करना पड़ा है। मंगलवार को बिल पेश किए जाने के तुरंत बाद, कांग्रेस ने विरोध प्रदर्शन किया और इसे सख्त और संविधान विरोधी कहा।
हालांकि, कर्नाटक के कानून मंत्री ने सिद्धारमैया पर निशाना साधा और कहा कि यह 2013 में सिद्धारमैया के शासन के दौरान था जब कानून विभाग ने धर्मांतरण विरोधी पर इस बिल को तैयार किया था और इसे आगे बढ़ाया गया है। बिल तब विधानसभा में नहीं पहुंचा था। सिद्धारमैया शासन के दौरान 2013 में कानून मंत्रालय ने इस विधेयक का मसौदा तैयार किया था। वही बिल थोड़े बदलाव के साथ हमारे द्वारा प्रस्तावित किया जा रहा है।
सिद्धारमैया इससे असहमत थे और कहा कि तत्कालीन कानून मंत्री ने इस तरह के विधेयक को शुरू करने से इनकार किया था। लेकिन, स्पीकर ने एक दस्तावेज पढ़कर सुनाया जिससे साबित हो गया कि सिद्धारमैया, जो उस समय मुख्यमंत्री थे, ने राज्य मंत्रिमंडल के समक्ष मसौदा पेश करने के लिए कहा था। सिद्धरमैया ने तब सहमति व्यक्त की कि उन्होंने एक धर्मांतरण विरोधी विधेयक के मसौदे की अनुमति देने वाले एक दस्तावेज पर हस्ताक्षर किए हैं। हालांकि, कैबिनेट ने इस मामले को कभी नहीं लिया और न ही इसे आगे बढ़ाया।
मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई ने कहा कि हम एससी/एसटी की स्थिति जानते हैं। उनकी उपेक्षा की जाती है और वे असुरक्षित रहते हैं। इस विधेयक को लाने के पीछे हमारा इरादा अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति समुदायों और महिलाओं की रक्षा करना है।
ये है विधेयक में
यह विधेयक धर्म की स्वतंत्रता के अधिकार की सुरक्षा और गलत बयानी, बल, अनुचित प्रभाव, जबरदस्ती, प्रलोभन या किसी कपटपूर्ण तरीके से एक धर्म से दूसरे धर्म में गैरकानूनी धर्मांतरण पर रोक लगाने का प्रावधान करता है। इसमें दंडात्मक प्रावधानों का भी प्रस्ताव है। जो लोग किसी अन्य धर्म में परिवर्तित होना चाहते हैं, उन्हें संबंधित जिला मजिस्ट्रेट के समक्ष एक निर्धारित प्रारूप में 30 दिन के नोटिस के साथ एक घोषणा दायर करनी होगी। विधेयक में 25,000 रुपए के जुर्माने के साथ तीन से पांच साल तक की कैद का प्रावधान किया गया है जबकि नाबालिगों, महिलाओं, अनुसूचित जाति/जनजाति के प्रावधानों के उल्लंघन पर अपराधियों को तीन से दस साल की कैद और कम से कम 50,000 रुपए का जुर्माने का प्रावधान है। विधेयक में अभियुक्तों को धर्मांतरण करने वालों को मुआवजे के रूप में पांच लाख रुपए तक का भुगतान करने का प्रावधान भी है वहीं सामूहिक धर्मांतरण के मामलों के संबंध में तीन से 10 साल तक की जेल और एक लाख रुपए तक के जुर्माने का प्रस्ताव है।