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Khudiram Bose: वो क्रांतिकारी, जो देश की आजादी के लिए महज 18 साल की उम्र में चढ़ गया था फांसी पर

Updated Aug 11, 2021 | 09:28 IST

Khudiram Bose death anniversary: देश की आजादी की लड़ाई का इतिहास अनेक क्रांतिकारियों के त्याग और बलिदान से भरा पड़ा है। इन्हीं क्रांतिकारियों में एक नाम है खुदीराम बोस का जिन्हें आज के दिन फांसी दी गई थी।

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खुदीराम: आजादी के लिए 18 साल की उम्र में चढ़ गए थे फांसी पर
मुख्य बातें
  • महज 18 की उम्र में फांसी पर चढ़ गए थे क्रांतिकारी देशभक्त खुदीराम बोस
  • खुदीराम बोस द्वारा किए गए एक धमाके ने हिला दी थीं अंग्रेज सरकार की चूलें

नई दिल्ली:  भारत की आजादी के लिए जिन क्रांतिकारियों ने अपने प्राण न्योछावर कर दिए उनमें एक नाम है खुदीराम बोस का। जिस उम्र में युवा अपने भविष्य को लेकर सपने बुनता है उस उम्र यानि महज 18 साल की आयु में खुदीराम बोस खुशी-खुशी फांसी के फंदे पर झूल गए थे, वो भी सिर्फ देश की आजादी के लिए। 1908 में आज ही के दिन खुदीराम बोस को अंग्रेज सरकार ने फांसी की फंदे पर लटका दिया था। 1889 को बंगाल के मिदनापुर जिले में पैदा हुए खुदीराम बोस महज 16 साल की उम्र में आजादी के आंदोलन में कूद गए थे। 

होते थे जुलूसों में शामिल
खुदीराम बोस में देश की आजादी को लेकर किस तरह का जूनून था, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उन्होंने 9 की पढ़ाई बीच में छोड़ इसलिए छोड़ दी क्योंकि उन्हें जंग-ए-आजादी में शामिल होना था। स्कूल छोड़ने के बाद खुदीराम रिवोल्यूशनरी पार्टी के सदस्य बने। 17 साल की उम्र में ही उन्हें दो बार गिरफ्तार किया गया था लेकिन बाद में अंग्रेज सरकार ने उन्हें रिहा कर दिया। खुदीराम बोस में देश की आजादी को लेकर कुछ भी कर गुजरने का जूनून था।

विस्फोट ने हिला थी दी अंग्रेज सरकार की चूलें

30 अप्रैल 1908 को मुजफ्फरपुर क्लब के सामने एक जोरदार बम धमाका हुआ। यह धमाका दमनकारी जज किंग्सफोर्ड को मौत की घाट उतारने के लिए किया गया था, जो रोज उस रास्ते से बग्गी में सवार होकर निकलता था। बम की चपेट में किंग्सफोर्ड तो नहीं आया लेकिन एक अंग्रेज वकील की बेटी और पत्नी दोनों मारे गए। इस धमाके को अंजाम दिया था खुदीराम बोस ने, जिसके बाद अंग्रेजी हकूमत की चूलें हिलने लगी। उसी दिन राम को खुदीराम बोस को अरेस्ट कर लिया गया और उन पर मुकदमा चलाया गया। महज 8 दिन हुई सुनवाई में खुदीराम बोस को फांसी की सजा मुकर्रर हुई। इसके खिलाफ कोलकाता हाईकोर्ट में अपील की गई लेकिन कोर्ट ने सजा को बरकरार रखा और अंतत 11 अगस्त 1908 को खुदीराम बोस को फांसी पर लटका दिया गया।

खुशी-खुशी झूले फांसी के फंदे पर
जब खुदीराम बोस को फांसी के फंदे पर लटकाया जा रहा था तो उनके चेहरे पर कोई शिकन नहीं थी। मुज्जफरपुर सेंट्रल जेल में में जब खुदीराम को फांसी दी गई तो उनके हाथ में गीता थी। शहीद होने के बाद खुदीराम इतने लोकप्रिय हुए कि उनकी खास किस्म की धोती युवाओं में फैशन का आइकन बन गई। इस धोती के किनारे पर खुदीराम लिखा होता था।

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