- गुजरात में स्थित है लोथल, सिंधु घाटी सभ्यता से जुड़ा रहा है नाता
- लोथल में पोत संग्रहालय स्थापित करने का निर्णय
- लोथल को पहले पत्तन शहर के तौर पर भी जाना जाता है।
नई दिल्ली। केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण जब 2020-21 का बजट पेश कर रही थीं तो इतिहास भी अपने झरोखों से खुद के संवरने के सपने सजों रहा था। ऐसा हो भी क्यों नहीं वित्त मंत्री ने जब कहा कि सिंधु घाटी सभ्यता से जुड़े ऐतिहासिक स्थलों के विकास के लिए सरकार प्रतिबद्ध है। वित्त मंत्री ने सिंधु सभ्यता से जुड़े राखीगढ़ी, धोलावीरा और लोथल का जिक्र किया। ये तीनों जगह सिर्फ जमीन के टुकड़े नहीं है। बल्कि एक ऐसी संस्कृति फली फूली थी जो भारत की गौरवमयी गाथा का हिस्सा बन गईं।
अगर भारत को सोने की चिड़िया कहा जाता था तो इन जगहों और यहां की संस्कृति ने आगे की पीढ़ियों को हुत कुछ दिया। यहां पर हम गुजरात राज्य में स्थित लोथल का जिक्र करेंगे जो हड़प्पा या सिंधु सभ्यता का प्रमुख बंदरगाह था। 2020 के बजट में लोथल में पोत परिवहन मंत्रालय द्वारा एक पोत संग्रहालय स्थापित किया जाएगा। पत्तन शहर के तौर पर मशहूर इस जगह का विकास कर वर्तमान पीढ़ी को यह बताने की कोशिश होगी कि हमारा अतीत कितना समृद्धशाली था।
1954 में लोथल के बारे में मिली जानकारी
गुजरात के सौराष्ट्र में आजादी के बाद हड़प्पा सभ्यता से जुड़े शहरों की खोज शुरू हुई और उसमें अच्छी खासी कामयाबी भी मिली। एस.आर. राव की अगुवाई में कई टीमों ने मिलकर 1954 से 1963 के बीच कई हड़प्पा स्थलों की खोज की थी जिनमें में बंदरगाह शहर लोथल भी शामिल है। आम तौर पर हड़प्पा संस्कृति को दो उप-कालखंडों 2400-1900 ईसा पूर्व और 1900-1600 ईसा पूर्व रखा जाता है।
दो हिस्सों में बंटा हुआ था लोथल
लोथल शहर दो हिस्सों में बंटा हुआ था पहला ऊपरी हिस्सा और दूसरा निचला हिस्सा। यहां मिलने वाले ईंट की दीवारों, चौड़ी सड़कों, नालियों और स्न्नागारों की तरफ इशारा करते हैं। इसके बाद ऐसा स्थान दिखाई देता है, जो मनके बनाने वाली फैक्ट्री की तरह लगता है। लेकिन इसके बारे में साफ तौर पर कुछ कह पाना मुश्किल है।
मोहनजोदड़ों की तरह लोथल का भी अर्थ मुर्दों का टीला
मोहनजोदड़ो को मुर्दों का टीला कहा जाता है ठीक वैसे ही लोथल का भी अर्थ है मुर्दों का टीला होता है। खंभात की खाड़ी ( गल्फ ऑफ कैंबे) पास भोगाव और साबरमती नदियों के बीच वर्तमान में लोथल का अस्तित्व कायम है। अहमदाबाद से करीब 80 किमी दूर सारगवाला गांव में लोथल का पुरातात्विक स्थल स्थित है। इस जगह की खासियत ये है कि जब आप वहां पहुंचते है तो आपको लगेगा कि वहां की सभी इमारतों को हाल फिलहाल में बनाया गया है ऐसा नहीं लगता कि यहां के टूटी फूटी इमारतें 2400 ईसा पूर्व की होंगी। सबसे पहले दिखाई देता है एक आयताकार बेसिन, जिसे डॉकयार्ड कहा जाता था। 218 मीटर लंबा और 37 मीटर चौड़ा यह बेसिन चारों तरफ से पक्की ईंटों से घिरा हुआ है।
बड़ी बात ये है कि सिंधु सभ्यता की चित्रात्मक लिपि को पढ़ा नहीं जा सका है, लिहाजा पुख्ता तौर पर यह कह पाना मुश्किल है कि वास्तव में लोशल देश का पहला बंदरगाह शहर था। इसे लेकर इतिहासकारों की राय भी जुदा है। लेकिन यह सच है कि सिंधु सभ्यता से जुड़े दूसरे शहरों के साथ व्यापार से पता चलता है कि लोथल का अपना महत्व था। इसके बाद एक प्राचीन कुआं और एक भंडारगृह के अवशेष देखने को मिलते हैं। ऐसा लगता है जैसे यह शहर का ऊपरी हिस्सा या नगरकोट है।