लाइव टीवी

Hindi Diwas 2022: संस्कृत की कोख से निकली है हिंदी, ऐसे सामने आई दुनिया की चौथी सबसे बड़ी भाषा  

Updated Sep 13, 2022 | 19:46 IST

Hindi Diwas : वैदिक संस्कृत से लौकिक संस्कृत, लौकिक संस्कृति पालि, पालि से प्राकृत, प्राकृत से अपभ्रंश और अपभ्रंष की अंतिम अवस्था जिसे अवहट्ठ कहा जाता है, उससे हिंदी का विकास हुआ। हिंदी अंग्रेजी, स्पेनिश और मंडारिन के बाद हिंदी दुनिया में सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषा है। 

Loading ...
अपभ्रंष की अंतिम अवस्था से हिंदी का विकास माना जाता है।

Hindi Diwas 2022: आज हम जो हिंदी भाषा बोलते, सुनते और समझते हैं, उसकी उत्पत्ति एवं विकास हजार साल पुराना है। लेकिन एक भाषा के रूप में इसके विकास क्रम और मूल उद्भव को हम देखेंगे तो पाएंगे कि दूसरी भारतीय भाषाओं की तरह इसका भी विकास संस्कृत से हुआ है। हजार वर्ष के विकास क्रम में इसका रूप निखरता रहा। संस्कृत दुनिया की सबसे पुरानी भाषा है। द्रविड़ एवं उत्तर भारत की अन्य भाषाओं का जन्म भी संस्कृत से हुआ है। हिंदी अंग्रेजी, स्पेनिश और मंडारिन के बाद हिंदी दुनिया में सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषा है। 

कुछ ऐसा है हिंदी का विकास क्रम

हिंदी के विकास क्रम को समझने के लिए यह जरूरी है कि हम इसके विकास क्रम को समझें और इसके मूल में जाएं। भारतीय भाषाओं का विकास क्रम देखेंगे तो हिंदी उत्पत्ति इस तरह दिखाई देगी। वैदिक संस्कृत से लौकिक संस्कृत, लौकिक संस्कृति पालि, पालि से प्राकृत, प्राकृत से अपभ्रंश और अपभ्रंष की अंतिम अवस्था जिसे अवहट्ठ कहा जाता है, उससे हिंदी का विकास हुआ। 

लौकिक संस्कृत में ही रामायण, महाभारत की रचना

वैदिक संस्कृत का समय 1500 ई.पू. से 1000 ई.पू. माना जाता है। वैदिक संस्कृत में चारों वेदों, ब्राह्मण ग्रंथों,तीनों संहिताओं एवं उपनिषदों की रचना हुई है। कहा जाता है कि ऋग्वेद में वैदिक भाषा का प्राचीनतम स्वरूप सुरक्षित है। वैदिक संस्कृति के पाद लौकिक संस्कृति का कालखंड आता है। इसका कालखंड 1000ई.पू. से 500 ई.पू. माना जाता है। लौकिक संस्कृत में ही रामायण, महाभारत जैसा लौकिक साहित्य रचा गया। पाणिनी की 'अष्टाध्यायी' भी लौकिक साहित्य में रची गई। 

Hindi Diwas Speech 2022: हिंदी दिवस पर भाषण देते समय ध्यान रखें ये टिप्स, सुपरहिट होगी स्पीच

पालि भाषा में हैं भगवान बुद्ध के संदेश

लौकिक संस्कृति से पालि का विकास हुआ। भगवान बुद्ध के उपदेश और बुद्ध साहित्य पालि भाषा में मिलता है। पालि की विकास यात्रा में 500ई.पू. से 1000 ई. तक का समय मध्यकालीन आर्य भाषा का रहा। पालि से प्राकृत भाषा निकली। पालि का विकास तीन रूपों में हुआ। प्रथम प्राकृत,द्वितीय प्राकृत एवं तृतीय प्राकृत। पालि के तृतीय रूप से अपभ्रंश का विकास हुआ और अपभ्रंश की अंतिम अवस्था अवहट्ठ से हिंदी का विकास माना जाता है। 

Hindi Diwas 2022: आपको भी आती है हिंदी भाषा? इन 5 तरीकों से घर बैठे कमा सकते हैं नोट

अपभ्रंष की अंतिम अवस्था से हिंदी का विकास

अपभ्रंश शब्द का प्राचीनतम प्रयोग पतंजलि के महाभाष्य में मिलता है। भाषा के अर्थ में अपभ्रंश का प्राचीनतम प्रयोग चण्ड के 'प्राकृत लक्षण' ग्रंथ में मिलता है। भाषा वैज्ञानिक भोलेनाथ तिवारी ने अपभ्रंश के क्षेत्रिय आधार पर पांच भेद प्रस्तुत किए। शौरसेनी (मध्यवर्ती), मागधी (पूर्वीय), अर्धमागधी (मध्यपूर्वीय), महाराष्ट्री (दक्षिणी), व्राचड-पैशाची (पश्चिमोत्तरी)। भोलानाथ तिवारी ने अपभ्रंश के तीन रूपों शौरसेनी, मागधी और अर्धमागधी से हिंदी का विकास माना है। 

Times Now Navbharat पर पढ़ें India News in Hindi, साथ ही ब्रेकिंग न्यूज और लाइव न्यूज अपडेट के लिए हमें गूगल न्यूज़ पर फॉलो करें ।