- नारायण राणे ने 2005 में शिवसेना से अपना नाता तोड़ लिया और कांग्रेस में शामिल हो गए
- बाला साहेब ठाकरे ने 1999 में नारायण राणे को मुख्य मंत्री बनाया था। वह केवल 9 महीने मुख्य मंत्री रहे थे।
- नारायण राणे ने 2017 में कांग्रेस छोड़कर नई पार्टी बना ली थी, जिसका बाद में भाजपा में विलय कर दिया।
नई दिल्ली: महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को थप्पड़ मारने के टिप्पणी के आरोपों पर केंद्रीय मंत्री नारायण राणे को मंगलवार को गिरफ्तार कर लिया। बाद में आधी रात को उन्हें जमानत पर रिहा कर दिया गया। गिरफ्तारी के समय नारायण राणे रत्नागिरी में 'जन आशीर्वाद यात्रा' के दौरे पर थे। इस बीच बुधवार को नारायण राणे को हाई कोर्ट से राहत मिल गई है।हाई कोर्ट ने नासिक में दर्ज FIR मामले में गिरफ्तारी पर रोक लगा दी है। बॉम्बे हाई कोर्ट ने मामले की सुनवाई को 17 सितंबर तक टाल दिया है। इसके पहले नारायण राणे ने जब जन आशीर्वाद रैली की शुरुआत शिवाजी पार्क में बाल ठाकरे मेमोरियल जाकर श्रद्धांजलि अर्पित करने के बाद शुरू की थी। तो शिव-सैनिकों ने उनके जाने के बाद मेमोरियल पर गौमूत्र का छिड़काव किया और उसे शुद्ध करने का दावा किया। इन दो घटनाओं से अंदाजा लगाया जा सकता है कि नारायण राणे और शिव सेना के बीच संबंध कितने खराब हो चुके हैं। जबकि एक समय बाला साहेब ठाकरे ने नारायण राणे को महाराष्ट्र का मुख्य मंत्री बनाया था। तो ऐसा क्या हो गया कि नारायण राणे के शिव सेना से रिश्ते इतने खराब हो गए।
असल में भले ही नारायण राणे ने 2005 में शिव सेना छोड़ी थी, लेकिन उनकी उद्धव ठाकरे से अनबन या यू कहें दुश्मनी 25 साल पुरानी है। जब 1995 में राज्य में शिवसेना की सरकार बनी तो उस वक्त उद्धव ठाकरे, मनोहर जोशी की आपस में और राज ठाकरे, नारायाण राणे की आपस में ज्यादा नजदीकी थी। नारायण काफी आक्रामक नेता थे और वह शांत स्वभाव वाले उद्धव और मनोहर जोशी को पसंद नहीं था। वहीं से दोनों में खींचतान शुरू हो गई। लेकिन बाला साहेब ठाकरे नारायण की आक्रमकता में संभावनाएं देख रहे थे, ऐसे में उन्होंने 1999 में मुख्यमंत्री बना दिया। जो कि उद्धव ठाकरे को पसंद नहीं आया। इसके पहले नारायण राणे चेंबुर में कॉरपोरेटर रहे, मुंबई की सार्वजनिक बस परिवहन 'बेस्ट' कमेटी के तीन साल तक चेयरमैन और बाद में राज्य सरकार में मंत्री बने थे।
2005 में छूटा शिव सेना का साथ
हालांकि नारायण राणे केवल नौ महीने तक राज्य के मुख्यमंत्री रहे। और बीजेपी-शिवसेना गठबंधन ने समय से पहले चुनाव में जाने का फैसला लिया और उस चुनाव में गठबंधन को हार का सामना करना पड़ा था। नारायण राणे ने इस हार के लिए उद्धव ठाकरे को जिम्मेदार ठहराया था। और वह 2003 में उद्दव ठाकरे को कार्यकारिणी का चेयरमैन बनाने का भी खुल कर विरोध कर चुके थे। ऐसे में उनके पास ज्यादा रास्ता नहीं बचा था। उसके बाद नारायण राणे का 2005 में शिवसेना से साथ छूट गया और वह कांग्रेस में शामिल हो गए। राणे 2017 तक कांग्रेस में रहे और उसके बाद उन्होंने महाराष्ट्र स्वाभिमान पक्ष नाम की पार्टी बना ली। जिसका बाद में भाजपा में विलय हो गया।
भाजपा को मिला फायदा
कोंकण क्षेत्र में अच्छा खासा प्रभाव रखने वाले नारायण राणे को भाजपा ने इसलिए मौका दिया। और इस समय वह भाजपा के वरिष्ठ नेताओं में से एक हैं। और साल 2019 के विधान सभा चुनावों में भाजपा पहली बार महाराष्ट्र में 105 सीट जीतकर पहली बार सबसे बड़ा दल बनी। हालांकि पार्टी ने यह चुनाव शिवसेना के साथ मिल कर लड़ा था। लेकिन बाद में मुख्य मंत्री की कुर्सी को लेकर शिवसेना ने भाजपा से नाता तोड़ लिया और एनसीपी, कांग्रेस के सहयोग से मुख्य मंत्री बनकर सरकार चला रहे हैं। राणे जो हमेशा से उद्धव ठाकरे के नेतृत्व क्षमता पर सवाल उठाते रहे हैं, उसका जवाब शायद उद्धव ने पिछले दो साल में दे दिया है। लेकिन हाल के उनके बयान और ठाकरे सरकार की उन पर कार्रवाई से यह भी साफ है कि दोनों की दुश्मनी अब भी जारी है।