- कृष्ण जन्माष्टमी के अगले दिन मनाया जाता है दही हांडी का उत्सव
- महाराष्ट्र में दही हांडी की रहती है काफी धूम
- दही हांडी में कान्हा की बाल लीलाओं को किया जाता है याद
Dahi Handi 2022: कृष्ण जन्माष्टमी के अगले दिन देश के कई राज्यों में दही हांडी की धूम रहती है। कन्हैया के भक्त उनके बचपन की लीलाओं का इस दिन जमकर आनंद लेते हैं और दही की हांडी को फोड़ते हैं।
कहां से शुरू हुई परंपरा
कहा जाता है कि जबसे कृष्ण जन्माष्टमी की शुरूआत हुई है, तभी से दही हांडी उत्सव भी जारी है। भगवान कृष्ण के जन्मदिवस को मनाने के बाद अगले दिन कान्हा के भक्त यह उत्सव मनाते हैं। दही हांडी उत्सव को भगवान कृष्ण की अराधना का अहम हिस्सा माना जाता है।
क्या होता है इसदिन
इस दिन कन्हैया की बाल लीलाओं को याद किया जाता है। श्रीमद्भगवद् के अनुसार कान्हा अपने बचपन में माखन चुरा कर खाते थे। जिसे बचाने के लिए गोपियां अपने हांडियों को ऊपर करके लटका देती थी, ताकि कान्हा उस तक नहीं पहुंच सकें, लेकिन फिर भी कान्हा अपने साथियों की मदद से हांडी तक पहुंच जाते थे और वहां से चुराकर दही और माखन खा जाते थे।
इसी की याद में इस दिन युवाओं की टोली, जिन्हें गोविंदा कहा जाता है, दही हांडी को फोड़ते हैं। एक हांडी जिसमें दही भरा होता है, उसे रस्सी के सहारे एक ऊंचाई पर लटका दिया जाता है। जिसे गोविंदाओं की टोली को फोड़ना होता है। यह इतना आसान भी नहीं होता है। कान्हा के भक्त पिरामिड की शक्ल बनाते हुए हांडी तक पहुंचने की कोशिश करते है, वहीं साइड से लोग उनपर पानी फेंकते हैं, ताकि वो लोग हांडी तक नहीं पहुंच सकें। पानी फेंकने वाले को गोपियों के रूप में देखा जाता है। जिन गोविंदाओं की टोली हांडी फोड़ने में सफल हो जाती है, उसे विजेता घोषित किया जाता है।
यहां की है फेमस
दही हांडी वैसे तो पूरे देश के कई शहरों में मनाया जाता है, लेकिन महाराष्ट्र और गुजरात में इसका एक अलग ही उत्साह होता है। गली-गली में दही हांडी का उत्सव मनाया जाता है। इस दिन गोविंदाओं की टोली दिनभर धूम मचाते रहती है। कई जगहों पर इस उत्सव में बड़ा इनाम भी रखा जाता है।
क्या है महत्व
कहने के लिए तो यह एक उत्सव है, जो खेल की तरह खेला जाता है, लेकिन इस उत्सव में भगवान कृष्ण के कई संदेश भी छिपे हैं। अर्थात जो लगातार मेहनत करते रहेगा, अंत तक लड़ता रहेगा और जिसने अपना लक्ष्य निर्धारित कर रखा है वो जरूर विजयी होगा।