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Kuno National Park: 750 वर्ग किलोमीटर में फैला है चीतों से गुलजार होने वाला कुनो पार्क, इन खूबियों से है लैस

Updated Sep 17, 2022 | 09:49 IST

Kuno National Park :कूनो में अफ्रीकी चीतों के लिए 5 वर्ग किलोमीटर का एक बाड़ा तैयार किया गया है, जिसमें जंगल में छोडऩे से पहले कुछ माह तक चीतों को रखा जाएगा। इसके साथ ही हाईरेंज सीसीटीवी से इन चीतों पर नजर रखी जाएगी और हर 2 किलोमीटर पर वॉच टॉवर भी बनाए गए हैं।

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चीतों के आने के बाद मध्य प्रदेश में पर्यटन को मिलेगी नई रफ्तार
मुख्य बातें
  • मध्य प्रदेश के श्योपुर जिले में स्थित कूनो अभयारण्य में नामीबिया के चीतों से होगा गुलजार
  • चीतों के आने के बाद मध्य प्रदेश में पर्यटन को मिलेगी नई रफ्तार
  • करीब 750 वर्ग किलोमीटर में फैला है कूनो नेशनल पार्क

Kuno National Park : दुनिया का सबसे तेज दौड़ने वाला जानवर चीता के मध्यप्रदेश के कूनो नेशनल पार्क में आने का इंतजार खत्म होने जा रहा है। 17 सितंबर को कूनों में चीतों के आगमन के बाद मध्यप्रदेश पर्यटन को नई रफ्तार मिलेगी। कूनो नेशनल पार्क, श्योपुर सहित पूरा ग्वालियर-चंबल अंचल मध्यप्रदेश का नया पर्यटन हब बनेगा। इसके साथ ही प्रदेश को वैश्विक पटल पर पर्यटन के क्षेत्र में अलग स्थान मिलेगा। यही नहीं देश में 70 साल बाद हो रही चीतों की वापसी से देश में एक बड़ा और नया टूरिज्म कॉरिडोर भी बन जाएगा, जिसकी अहम कड़ी कूनो नेशनल पार्क रहेगा। टाइगर स्टेट मध्यप्रदेश की जलवायु कई लिहाज से वन्य-जीवों की आदर्श आश्रय स्थली और प्रजनन के सर्वाधिक अनुकूल है। यहां लम्बे समय से चीते लाने के प्रयास किये जा रहे थे जो अब रंग लाए हैं।  

चीतों के स्वागत के लिए कूनो तैयार   

कूनो चीते के स्वागत के लिये पूरी तरह तैयार है। विलुप्त हो चुके इस चीते का नया आशियाना अफ्रीका से लाकर कूनो में बनाया गया है। कूनो अभयारण्य को चीतों के अनुकूल पाया गया है । इस अभयारण्य में वे सभी विशेषताएं हैं, जो इसे दुनिया के महत्वपूर्ण संरक्षित क्षेत्रों में शामिल कर सकती हैं। चीतों को भारत लेने के प्रस्ताव को मंजूरी मिलने के बाद एक्सपर्ट्स ने श्योपुर के कूनो राष्ट्रीय उद्यान को चीतों के लिए सबसे बेहतर माना। कूनो राष्ट्रीय उद्यान की स्थापना 1981 को एक वन्य अभयारण्य के रूप में की गई थी बाद में इसे 2018 में राष्ट्रीय उद्यान का दर्जा दिया गया था। कूनो नेशनल पार्क में चीतों के लिए सुरक्षा, शिकार और आवास की भरपूर जगह है, जो इनके लिए उपयुक्त है। यहां चीतों के रहने के लिए 10 से 20 वर्ग किमी क्षेत्र, उनके प्रसार के लिए पर्याप्त है। समतल जंगल अफ्रीकी चीतों के सर्वथा अनुकूल है। कूनो नेशनल पार्क करीब 750 वर्ग किलोमीटर में फैला है जो चीतों के रहने के लिए अनुकूल है। इस अभ्यारण में इंसानों की किसी भी तरह की बसाहट भी नहीं है। देश के यहां चीतों के लिए अच्छा शिकार भी मौजूद है, क्योंकि यहां पर चौसिंगा हिरण, चिंकारा, नीलगाय, सांभर एवं चीतल बड़ी तादाद में पाए जाते हैं।

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चीतों के लिए ऐसी है तैयारी

चीतों को बसाने से पहले कूनो अभयारण्य से लगे हुए गांव में जानवरों का टीकाकरण किया जा चुका है। आसपास के सभी गांवों में विशेष शिविर लगाए गए हैं। साथ ही चीतों के रहने के हिसाब से माहौल तैयार किया गया है। नरसिंहगढ़ से चीतल लाकर कूनो में छोड़े गए हैं। विशेषज्ञों के अनुसार क्षेत्र में शिकार का घनत्व चीतों के लिए पर्याप्त है। नर चीते दो या दो से अधिक के समूह में साथ रहते हैं। सबसे पहले चीतों को दो-तीन सप्ताह के लिए छोटे-छोटे पृथक बाड़ों में रखा जाएगा। एक माह के बाद इन्हें बड़े बाड़ों में स्थानांतरित किया जाएगा। विशेषज्ञों द्वारा बड़े बाडों में चीतों के अनुकूलन संबंधी आंकलन के बाद पहले नर चीतों को और उसके पश्चात मादा चीतों को खुले जंगल में छोड़ा जाएगा। इस संबंध में आवश्यक प्रोटोकॉल के अनुसार कार्यवाही की जाएगी।

विलुप्त हुए चीते की फिर से वापसी 

चीता दुनिया का सबसे तेज़ रफ़्तार से दौड़ने वाला जानवर है जो 100 किलोमीटर प्रति घंटे  से अधिक की रफ़्तार से दौड़ सकता है। आज पूरी दुनिया में सिर्फ़ अफ्रीका में गिने-चुने चीते  हैं । भारत समेत एशिया के कमोबेश हर देश से ये जानवर विलुप्त हो चुका है। इतने सालों बाद फिर से चीतों की वापसी हो रही है। 1947 में ली गई सरगुजा महाराज रामानुशरण सिंह के साथ चीते की तस्वीर को अंतिम मान लिया गया था। इसके बाद 1952 में देश को चीता लुप्त घोषित कर दिया गया था।  दौड़ते वक्त आधे से अधिक समय हवा में रहता है। चीता जब पूरी ताक़त से दौड़ रहा होता है तो सात मीटर तक लंबी छलांग लगा सकता है।

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मध्यप्रदेश के चंबल अंचल का आदिवासी बाहुल्य जिला श्योपुर प्रधानमंत्री के स्वागत के लिए भी आतुर है। पीएम बनने के बाद नरेंद्र मोदी मध्यप्रदेश कई बार आ चुके हैं लेकिन आजादी के बाद प्रदेश के श्योपुर आने वाले वह पहले प्रधानमंत्री होंगे। श्योपुर के जनजातीय समुदाय में इस बात का भी हर्ष है कि चीतों के आने से पूरे इलाके को विश्व पटल पर नई पहचान मिलेगी। 

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