- चीन और भारत के बीच पिछले एक महीने से भी अधिक समय से बना हुआ तनाव
- लद्दाख में दोनों देशों की सेना है आमने-सामने, तनाव कम करने के हो रहे हैं तमाम प्रयास
- पूर्व आर्मी चीफ जनरल बिक्रमसिंह ने बताया क्यों कर रहा है चीन ऐसा
नई दिल्ली: भारत औऱ चीन के बीच पिछले एक महीने से भी ज्यादा समय से सीमा पर तनावपूर्ण हालात हैं। पिछले महीने भारतीय सेना और चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी के बीच वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर आमने-सामने आ गई। हालात को सामान्य बनाने के लिए बैठकों का सिलसिला जारी है। लेकिन चीन है कि मानता नहीं, एक तरफ बातचीत कर रहा है तो दूसरी तरफ युद्धाभ्यास। मौजूदा हालात को सामान्य बनाने के लिए तमाम प्रयास किए जा रहे हैं।
चीन के इस रवैये को लेकर पूर्व थलसेना अध्यक्ष जनरल बिक्रम सिंह ने सीएनएन में एक संपादकीय लिखा है जिसमें उन्होंने चीन के मौजूदा कदम को लेकर बाते कहीं है। जनरल सिंह ने लिखा है किजब उत्तरी सिक्किम में तनाव पैदा हुआ था तो उसे स्थानीय स्तर पर प्रोटोकॉल के तहत सुलझा लिया गया था लेकिन पूर्वी लद्दाख में हालात बिल्कुल अलग हैं।
जनरल सिंह ने लिखा है कि भारत और चीन के बीच सबसे बड़ा तनाव हालिया वर्षों में 2017 में पैदा हुआ था जब दो एशियाई दिग्गजों के बीच डोकलाम में में 73 दिनों तनाव रहा था। इसके बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच अनौपचारिक बैठकें हुईं, पहली बार अप्रैल 2018 में वुहान में और फिर अक्टूबर 2019 में तमिलनाडु के मामल्लपुरम में। उन मुलाकातों के दौरान, दोनों नेताओं ने सीमावर्ती क्षेत्रों में शांति के महत्व को दोहराया और संयम बरतने और आपसी समझ तथा विश्वास को मजबूत करने की बात कही।
चीन के सामने असंख्य चुनौतियां
जनरल सिंह लिखते हैं, 'कोरोनोवायरस महामारी के दौरान चीन पहले से ही असंख्य आंतरिक और बाहरी चुनौतियों का सामना कर रहा है और ऐसे में वह हिमालय में किसी भी तरह के जोखिम वाले निर्णय नही लेगा। एक मुख्य प्रतिद्वंदी होने के नाते भारत के साथ उसका संघर्ष न केवल इसकी समस्याओं को बढ़ाएगा बल्कि 2050 तक वैश्विक महाशक्ति बनने के उसके सपने पर भी रोक लगेगी। दरअसल चीन को इस समय कई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। आज शी जिनपिंग के सामने चीन की अर्थव्यवस्था, इसका अमेरिका के साथ उसका ट्रेड वॉर आधि शामिल है। चीन की महत्वाकांक्षी बेल्ट एंड रोड परियोजना पर भी संकट आ सकता है। इसके अलावा चीन के खिलाफ हांगकांग के विरोध प्रदर्शन, ताइवान में उसकी घुसपैठ, और कोरोनोवायरस महामारी में इसकी भूमिका की जांच की वैश्विक स्तर पर मांग उठ रही है।'
1962 वाला भारत नहीं
जनरल सिंह लिखते हैं कि चीन को भारतीय सेना की वर्तमान युद्ध क्षमता के बारे में अच्छे पता है। भारत अब 1962 वाला भारत नहीं है और उसके सेना पहले से कई अधिक मजबूत और ताकतवर हो चुकी है और इसका अंदाजा भी चीन को है। दोनों देशों की सेना कई वर्षों तक साथ अभ्यास कर चुकी है और जिनमें मानवीय सहायता, आपदा राहत और आतंकवाद निरोधी कार्यों को अंजाम देने का प्रशिक्षण लिया गया। वर्तमान राजनीतिक नेतृत्व में भारत ने यह साबित करने में हिचकिचाहट नहीं दिखाई है कि उकसाए जाने पर वह ताकत का इस्तेमाल कर सकता है।
तो इसलिए बौखलाया चीन
पूर्व थल सेना प्रमुख जनरल सिंह ने लिखा, 'भारत को रणनीतिक संदेश भेजने के लिए बीजिंग द्वारा इस तरह के तनावपूर्ण हालात पैदा करने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है। नई दिल्ली भी कोरोनोवायरस महामारी की उत्पत्ति और प्रसार की जांच के लिए न केवल अंतर्राष्ट्रीय मांग का समर्थन कर रहा है बल्कि उसने चीन से प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को मंजूरी देने के लिए स्वचालित मार्ग को भी अवरुद्ध कर दिया है। वहीं भारत और अमेरिका के बीच मजबूत रणनीतिक साझेदारी चीन को खटक रही है। अपनी विफलताओं को छिपाने के लिए भी वह इस तरह के हथकंडे अपना रहा है ताकि उसके खिलाफ देश में उठने वाली आवाजों को राष्ट्रवाद की आड़ में छिपाया जा सके।'
भारत को रहना होगा तैयार
जनरल सिंह आगे अपने लेख में लिखते हैं कि विवाद के जल्द सुधरने के आसार कम ही हैं। यद्यपि निकट भविष्य में एक संघर्ष एक दूरस्थ संभावना है ऐसे में भारत को कोशिश करनी होगी कि सीमा पर आक्रामकता के हालात पर काबू पाने की सेना की क्षमता बढ़ सके। देश के लिए युद्ध जीतने के लिए लड़ना चाहिए। भारत के युद्ध लड़ने के लिए किसी भी बाहरी शक्ति पर भरोसा करना निश्चित रूप से एक अच्छा विचार नहीं है। एक उभरती हुई महाशक्ति के रूप में, भारत को अपनी लकीर बड़ी रखनी चाहिए। जनरल सिंह ने अंत में कहा कि युद्ध किसी भी चीज का हल नहीं है और शांतिपूर्ण समझौता ही हर किसी के लिए बेहतर होगा।