- लोजपा में बगावत के बाद संसदीय दल के नेता बने पशुपति पारस
- लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने पशुपति पारस को संसदीय दल के नेता की मान्यता भी दे दी है
- चाचा पशुपति कुमार पारस पर निशाना साधते हुए चिराग ने पुराना पत्र सार्वजनिक किया है
नई दिल्ली: लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) में फूट पड़ गई है। पार्टी के छह लोकसभा सदस्यों में से 5 पार्टी अध्यक्ष चिराग पासवान को लोकसभा में पार्टी के नेता के पद से हटाने के लिए साथ आए और उनकी जगह उनके चाचा पशुपति कुमार पारस को इस पद के लिए चुना। अब इस पर राष्ट्रीय अध्यक्ष और पार्टी के संस्थापक रामविलास पासवान के बेटे चिराग पासवान की प्रतिक्रिया सामने आई है। उन्होंने ट्विटर पर 6 पन्नों के एक पत्र भी साझा किया है, जो उन्होंने इस साल 29 मार्च को अपने चाचा यानी पशुपति कुमार पारस को लिखा था।
चिराग ने लिखा है, 'पापा की बनाई इस पार्टी और अपने परिवार को साथ रखने के लिए किए मैंने प्रयास किया लेकिन असफल रहा। पार्टी माँ के समान है और माँ के साथ धोखा नहीं करना चाहिए। लोकतंत्र में जनता सर्वोपरि है। पार्टी में आस्था रखने वाले लोगों का मैं धन्यवाद देता हूँ। एक पुराना पत्र साझा करता हूँ।'
6 पन्नों के इस पत्र में चिराग ने बताया है कि किस तरह पार्टी में लंबे समय से तनाव बना हुआ है। ये तनाव पासवान जब जीवित थे, तब भी था। पारस चिराग को पार्टी की कमान दिए जाने से खुश नहीं थे। वो पार्टी की गतिविधियों में हिस्सा नहीं लेते थे। इसका असर परिवार में भी दिख रहा था। चिराग ने पत्र में कई बातों से स्पष्ट लिखा है, जिससे इस पूरे विवाद को समझा जा सकता है।
इससे पहले हाजीपुर से सांसद पारस ने कहा था, 'मैंने पार्टी को तोड़ा नहीं, बल्कि बचाया है। लोजपा के 99 प्रतिशत कार्यकर्ता पासवान के नेतृत्व में बिहार 2020 विधानसभा चुनाव में जद (यू) के खिलाफ पार्टी के लड़ने और खराब प्रदर्शन से नाखुश हैं। पारस ने कहा कि उनका गुट भाजपा नीत राजग सरकार का हिस्सा बना रहेगा और पासवान भी संगठन का हिस्सा बने रह सकते हैं।
असंतुष्ट लोजपा सांसदों में प्रिंस राज, चंदन सिंह, वीना देवी और महबूब अली कैसर शामिल हैं, जो चिराग के काम करने के तरीके से नाखुश हैं। 2020 में पिता रामविलास पासवान के निधन के बाद लोजपा का कार्यभार संभालने वाले चिराग अब पार्टी में अलग-थलग पड़ते नजर आ रहे हैं। उनके करीबी सूत्रों ने जनता दल (यूनाइटेड) को इस विभाजन के लिए जिम्मेदार ठहराते हुए कहा कि पार्टी लंबे समय से लोजपा अध्यक्ष को अलग-थलग करने की कोशिश कर रही थी क्योंकि 2020 के विधानसभा चुनाव में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के खिलाफ जाने के चिराग के फैसले से सत्ताधारी पार्टी को काफी नुकसान पहुंचा था।