Last Cheetahs of India: एक समय भारत के ऊंचे पर्वतीय इलाकों, तटीय क्षेत्रों और पूर्वोत्तर को छोड़कर पूरे देश में चीतों के गुर्राने की गूंज सुनाई दिया करती थी, लेकिन भारत सरकार ने साल 1952 में घोषणा कर बताया कि चीता आधिकारिक तौर पर देश से विलुप्त हो चुके हैं। जंगली जानवर चीते के विलुप्त होने के कुछ कारण थे, जिसमें शिकार और रहने का ठिकाना नहीं होने को माना जाता है।
1952 में आधिकारिक तौर पर भारत से विलुप्त हो चुके थे चीता
आईएफएस प्रवीण कस्वां के अनुसार भारत के अंतिम तीन चीतों का शिकार मध्य प्रदेश के कोरिया के महाराजा रामानुज प्रताप सिंह देव ने 1947 में किया था। तीनों चीते 6 फीट 4-5 इंच के समान माप के वयस्क थे और सभी का रात में शिकार किया गया था। इसके बाद कभी भी भारत में न चीते दिखाई दिए गए और न ही उनके गुर्राने की गूंज सुनाई दी गई।
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कोरिया के महाराजा ने किया था भारत में आखिरी 3 चीतों का शिकार
महाराजा रामानुज प्रताप सिंह देव शिकार के काफी शौकीन थे। गांववालों ने महाराजा से शिकायत की कोई जंगली जानवर उनके मवेशियों का शिकार कर रहा है। इसके बाद राजा जंगल में गए और तीन चीतों को मार गिराया। कहा जाता है कि उनके शिकार की आखिरी फोटो और दस्तावेज महाराजा के निजी सचिव ने बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी को सौंपे थे।
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भारत में चीतों को पकड़ने में अंग्रेजों की बहुत कम दिलचस्पी थी, हालांकि वे कभी-कभी ऐसा किया करते थे। लेकिन अंग्रेजों के भारत से जाने और रियासतों के एकीकरण के बाद भारतीय चीतों की संख्या कम होने के साथ-साथ इनसे किए जाने वाले शिकार का चलन भी खत्म हो गया।
ऐतिहासिक रिकॉर्ड से पता चलता है कि चीता मनुष्यों के साथ सबसे कम संघर्ष में थे। उन्हें पालतू बनाया जाता था और शिकार करने वाले दलों द्वारा व्यापक रूप से उपयोग किया जाता था। यहां तक कि कुछ उन्हें 'शिकार करने वाला तेंदुआ' भी कहते थे।