- राज ठाकरे की भाजपा नेता नितिन गडकरी से अप्रैल में ही मुलाकात हुई है।
- राज ठाकरे ने इस समय हिंदुत्व की राजनीत पर फोकस कर लिया है।
- बदलते समीकरण में 2024 के विधानसभा चुनावों में भाजपा और मनसे साथ आ सकते हैं।
Raj Thackarey News: उद्धव ठाकरे नहीं अब राज ठाकरे आएंगे काम। लगता है भारतीय जनता पार्टी ने 2024 की चुनावी बिसात के लिए अपने पासे चलने शुरू कर दिए हैं। और वह इसी रणनीति के तहत एक दूसरे ठाकरे को अपना साथी बनाने की तैयारी में है। इसके संकेत भी अप्रैल की दो घटनाओं से मिलने लगे हैं। पहले तो 3 अप्रैल को महाराष्ट्र से भाजपा के कद्दावर नेता और केंद्रीय गृहमंत्री नितिन गडकरी की महाराष्ट्र नव निर्माण सेना प्रमुख राज ठाकरे से मुलाकात और उसके बाद 28 अप्रैल को राज ठाकरे का उद्धव ठाकरे पर सीधा निशाना। यही नहीं उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की प्रशंसा करना। यह घटनाएं साफ बयान करती हैं कि भाजपा और महाराष्ट्र नव निर्माण सेना के बीच कुछ खिचड़ी पक रही है। जिसका असर 2024 के विधानसभा चुनाव में दिखेगा।
भाई के खिलाफ खड़े होंगे राज ठाकरे
कल (28 अप्रैल) को मनसे प्रमुख राज ठाकरे ने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की प्रशंसा करते हुए ट्वीट किया तो उससे दो बातें साफ हो गई हैं। कि राज ठाकरे की भाजपा से नजदीकियां बढ़ रही है। दूसरा उन्होंने जिस तरह योगी आदित्यनाथ को योगी कहते हुए अपने चचेरे भाई उद्धव ठाकरे को बिना नाम लिए भोगी कहा , उससे साफ हो गया कि वह अब उन पर राजनैतिक हमले से परहेज करने की कोशिश नहीं करेंगे।
इस बीच उन्होंने लाउडस्पीकर को लेकर 3 मई का अल्टीमेटम दे रखा है। ठाकरे ने कहा है कि नमाज अदा करने का कोई विरोध नहीं कर रहा है। लेकिन अगर आप इसे लाउडस्पीकर पर करेंगे तो हमलोग भी लाउडस्पीकर का इस्तेमाल करेंगे। मुसलमानों को समझना चाहिए कि धर्म कानून से बड़ा नहीं है। राज ठाकरे ने अक्षय तृतीया के मौके पर परे महाराष्ट्र में लाउडस्पीकर पर महाआरती पाठ का आह्वान भी किया है। इसके पहले वह अपनी पार्टी के तीन रंगों के झंडे को बदलकर भगवा कर चुके हैं। जाहिर राज ठाकरे हिंदुत्व को अपनी नई पहचान बना रहे हैं।
शिवसेना का ही अपनाया हथियार
राज ठाकरे ने जिस तरह लाउडस्पीकर विवाद में अजान बनाम हनुमाल चालीसा का मुद्दा उठाया है। उससे साफ है कि राज ठाकरे 15 साल बाद अपनी राजनीति को नए रंग-रूप में लेकर आ रहे हैं। और नया रंग हिंदुत्व का है। जो कि उनके झंडे के नए रंग से भी दिख रहा है। यही वहीं हिंदुत्व है जिसके सहारे उनके चाचा बाला साहेब ठाकरे ने शिवसेना को खड़ा किया। उद्धव ठाकरे से अलग होकर राज ठाकरे ने जब 2006 में महाराष्ट्र नव निर्माण सेना का गठन किया था, उस वक्त से लेकर अभी तक उनकी राजनीति का केंद्र मराठी अस्मिता ही रही है। लेकिन पिछले 15 साल में उनका यह दांव रंग नहीं दिखा पाया। और वह भाजपा-शिवसेना-एनसीपी और कांग्रेस के बीच कहीं खो गए। हालात ऐसे हो गए कि 2019 का लोकसभा चुनाव उनकी पार्टी ने नहीं लड़ने का फैसला किया। इन 15 सालों में उनकी पार्टी विधानसभा चुनावों मे खास प्रभाव नहीं डाल पाई। 2019 के विधानसभा चुनावों में मनसे को केवल एक सीट पर जीत हासिल हुई।
ऐसे में अब राज ठाकरे की कोशिश हिंदुत्व के मुद्दे के सहारे शिवसेना की जगह लेना है। क्योंकि जो शिवसेना कभी राज्य में कट्टर हिंदुत्व के लिए जानी जाती थी। वह अब कांग्रेस और एनसीपी गठबंधन के बीच नए भूमिका के साथ बढ़ रही है। जिसमें साफ तौर पर दिख रहा है कि उद्धव ठाकरे पुरानी शिवसेना वाले तेवर दिखाने के मूड में नहीं है।
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भाजपा के लिए शिवसेना की भरपाई कर पाएंगे राज ठाकरे
महाराष्ट्र के बदलते राजनीतिक समीकरण में सबसे बड़ा सवाल यही है कि क्या राज ठाकरे, भाजपा के लिए चुनावों में शिवसेना की भरपाई कर पाएंगे। क्योंकि भाजपा-शिवसेना गठबंधन ने मिलकर ही 2019 के विधानसभा चुनाव में बड़ी जीत हासिल की थी। इन चुनावों में भाजपा को जहां 105 सीटों पर जीत हासिल हुई थी। वहीं शिवसेना को 56 सीटों पर जीत हासिल हुई। और इस तरह दोनों दलों के गठबंधन को 288 विधानसभा सीटों वाले सदन में आसानी से बहुमत मिल गया। लेकिन मुख्यमंत्री की कुर्सी को लेकर भाजपा और शिवसेना का 35 साल पुराना गठबंधन टूट गया। इन चुनावों में पहली बार हुआ था, कि भाजपा को महाराष्ट्र में शिवसेना से ज्यादा सीटें मिली थी। और पिछले 35 सालों से राज्य में बड़ा भाई बनकर रहने वाली शिवसेना को छोटा भाई बनकर रहना मूंजर नहीं था। इसलिए उसने एनसीपी और कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार बना ली।
जहां तक राज ठाकरे की बात है तो उनकी पार्टी मनसे को 2019 के विधानसभा चुनाव में केवल एक सीट पर जींत हासिल हुई थी। ऐसे में उनके लिए भाजपा के साथ छोटा भाई बनकर रहने में गुरेज नहीं होगा। साथ ही अगर वह शिवसेना की जगह ले सके तो उनकी राजनीति को भी बड़ा बूस्ट मिलेगा। इसके लिए अलावा भाजपा को राज्य की राजनीति में 105 सीटें जीतने के बावजूद 2019 जैसा खामियाजा शायद नहीं उठाना पड़े। ऐसे में फिलहाल दोनों को एक-दूसरे का साथ रास आ सकता है।