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राजीव से लेकर वाजपेयी तक की रहीं खास, आज BJP से है छत्‍तीस का आंकड़ा, कुछ ऐसा है ममता बनर्जी का सियासी सफर

Updated Apr 10, 2021 | 15:31 IST

ममता बनर्जी देश के उन नेताओं में शुमार हैं, जिन्‍होंने अपने आक्रामक तेवर और जुझारूपन से राजनीति में एक मुकाम हासिल किया। बंगाल चुनाव के बीच उनके सियासी सफर पर एक नजर :

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तस्वीर साभार:&nbspBCCL
राजीव से लेकर वाजपेयी तक की रहीं खास, आज BJP से है छत्‍तीस का आंकड़ा, कुछ ऐसा है ममता बनर्जी का सियासी सफर

कोलकाता/नई दिल्ली : पश्चिम बंगाल में चुनावी घमासान के बीच सत्‍तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस और बीजेपी के बीच सीधा टकराव नजर आ रहा है। ममता बनर्जी क अगुवाई वाली टीएमसी से जहां बंगाल की सत्‍ता में बने रहने की कोशिश में है, वहीं बीजेपी ने टीएमसी को सत्‍ता से उखाड़ फेंकने के लिए पूरा जोर लगा रखा है। चुनावी दंगल में किसकी जीत, किसकी हार होगी, इसका पता तो 2 मई को ही चल जाएगा, जब नतीजों की घोषणा होगी, पर इस सियासी लड़ाई पर देशभर की नजरें टिकी हैं, जो देश की राजनीति को आने वाले दिनों में एक नई भी दे सकता है।

बंगाल चुनाव के बीच ममता बनर्जी के सियासी सफर पर एक नजर डालें तो मालूम होता है कि महज 15 साल की उम्र में कांग्रेस से जुड़ने वाली ममता बनर्जी ने राजनीति में एक मुकाम अपने मेहनत, लगन और जुझारू तेवर से पाया है। कांग्रेस से सियासी सफर की शुरुआत करने वाली ममता की गिनती कभी कांग्रेस में राजीव गांधी के भरोसेमंद नेताओं में होती थी, लेकिन फिर पार्टी के शीर्ष नेतृत्‍व से दूर‍ियां ऐसी बढ़ी कि अपनी अलग पार्टी का गठन कर लिया और 13 साल के भीतर इसे उस मुकाम पर पहुंचा दिया, जिसे हासिल करने में पार्टियों को अमूमन कई साल लग जाते हैं।

TMC के गठन के 13 साल बाद बन गईं CM

राजनीति में ममता बनर्जी की गिनती एक जुझारू नेता के तौर पर होती है। उनके पिता स्‍वतंत्रता सेनानी थे। उनका निधन ममता के बचपन में ही हो गया था। बताया जाता है कि पिता के निधन के बाद परिवार की स्थिति बहुत संघर्षपूर्ण हो गई थी और ऐसे में घरवालों की मदद के लिए उन्‍हें दूध बेचने का काम भी करना पड़ा था। कांग्रेस की स्टूडेंट इकाई से 1970 के दशक में राजनीतिक जीवन की शुरुआत करने वाली ममता जल्‍द ही पार्टी की तेज-तर्रार नेताओं में शुमार हो गईं। हालांकि 1998 में उन्‍होंने अपने राजनीतिक जीवन का बड़ा फैसला लिया और कांग्रेस से अलग हो गईं।

कांग्रेस (I) के साथ 1971 में राजनीतिक सफर शुरू करने वाली ममता बनर्जी ने शीर्ष नेतृत्‍व से नाराजगी के बीच 1998 में कांग्रेस से अलग होकर अपनी नई पार्टी तृणमूल कांग्रेस का गठन किया और उसके बाद बंगाल की राजनीति में वह जो बड़ा बदला लेकर आईं, वह इतिहास है। पार्टी के गठन के महज 13 वर्षों बाद 2011 में मिली सियासी सफलता ने उन्‍हें बंगाल का मुख्‍यमंत्री बना दिया। यह चुनाव सिर्फ ममता बनर्जी की जीत के लिहाज से खास नहीं है, बल्कि जिस वामपंथ को हराकर वह सत्‍ता में आईं, उसकी वजह से भी उनकी जीत एक मिसाल बन गई।

ममता बनर्जी जब बंगाल की सत्‍ता में आईं तो उस वक्‍त यहां 34 साल से सीपीएम की अगुवाई वाली वामपंथी सरकार सत्‍ता में थी, जिसे बेदखल करना तब चुनौतीपूर्ण समझा जा रहा था। लेकिन अपने जुझारू तेवर के लिए मशहूर ममता बनर्जी ने बंगाल में वो कर दिखाया, जिसकी कल्‍पना भी तब मुश्किल जान पड़ती थी। यह ममता बनर्जी के नेतृत्‍व का करिश्‍मा ही था कि न केवल 2011 के चुनाव में वह 3 दशक पुरानी वामपंथी सरकार को सत्‍ता से बेदखल करने में कामयाब हुईं, बल्कि 5 साल बाद 2016 में जब चुनाव हुआ तो उनकी पार्टी को पिछले चुनाव से भी अधिक सीटें मिलीं।

BJP से कभी खूब रही थी करीबी

'मां, माटी और मानुष' के नारे के साथ बंगाल की सत्‍ता में काबिज होने वालीं ममता बनर्जी इससे पहले 29 साल की उम्र में 1984 में सबसे युवा सांसद के तौर पर इतिहास बना चुकी थीं। उन्‍होंने कांग्रेस के टिकट पर यह चुनाव दक्षिण कोलकाता (तत्कालीन कलकत्ता) से जीता था। वह केंद्र की कांग्रेस सरकार में मंत्री भी रहीं। आगे चलकर वह प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की अगुवाई में बनी राष्‍ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) सरकार में मंत्री भी रहीं। रेलवे जैसा अहम मंत्रालय उन्‍हें सौंपा गया। तब उनकी पार्टी एनडीए का एक महत्‍वपूर्ण घटक हुआ करती थी।

बीजेपी से उनकी करीबी उस वक्‍त भी थी, जब 2005 में बुद्धदेब भट्टाचार्य की अगुवाई वाली वामपंथी सरकार के भूमि अधिग्रहण के फैसले का उन्‍होंने विरोध शुरू किया था। इसके बाद सिंगूर और नंदीग्राम में जब उन्‍होंने निर्णायक आंदोलन चलाए, उस वक्‍त भी उन्‍हें परोक्ष रूप से बीजेपी का समर्थन हासिल था। लेकिन आज बंगाल की सियासत में बीजेपी और टीएमसी एक-दूसरे के धुर विरोधी बने हुए हैं। सीएए, एनआरसी, जीएसटी, नोटबंदी और किसान आंदोलन जैसे कई अहम मसले हैं, जिन पर ममता का मोदी सरकार से सीधा टकराव रहा है।

सादगी से हमेशा रहा नाता

ममता बनर्जी के व्‍यक्तित्‍व की बात करें तो सियासत में सीढी दर सीढ़ी सफलता हासिल करने के बाद भी सादगी हमेशा उनके जीवन का हिस्‍सा रही। चाहे वह सांसद रही हों या केंद्र में मंत्री या फिर बंगाल की सीएम, उनके पहनावे या रहन-सहन में कोई फर्क नहीं आया। सफेद सूती साड़ी और हवाई चप्पल से आज भी उनका नाता बरकरार है। उनकी पहचान हमेशा जमीन से जुड़ी एक नेता के तौर पर रही है। चाहे सिंगुर में किसानों के समर्थन में धरना और आमरण अनशन का मसला हो या नंदीग्राम में पुलिस की गोलियों के शिकार लोगों के लिए लड़ाई, ममता हमेशा मोर्चे पर आगे खड़ी रहीं। 

अपने आक्रामक रवैये के लिए मशहूर ममता बनर्जी ने पश्चिम बंगाल की पहली महिला मुख्‍यमंत्री के रूप में भी रिकॉर्ड बनाया। उनका जन्‍म 5 जनवरी 1955 को कोलकाता के एक बेहद सामान्य परिवार में हुआ था। जब वह 9 साल की थीं, तभी उनके पिता प्रोमिलेश्वर बनर्जी का निधन हो गया था। उन्‍होंने कोलकाता के जोगोमाया देवी कॉलेज से ग्रैजुएशन और फिर कलकत्ता यूनिवर्सिटी से इस्लामिक हिस्ट्री में पोस्ट ग्रैजुएशन किया। उन्होंने जोगेश सी चौधरी लॉ कॉलेज से कानून की डिग्री भी ली है। उनके व्‍यक्तित्‍व की अन्‍य विशेषताओं में कवि, लेखक और चित्रकार होना भी शामिल है। 

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