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लॉकडाउन के बीच पीएम मोदी ने फिर की देशवासियों से 'मन की बात', सुनें और पढ़ें हू-ब-हू

Updated Apr 26, 2020 | 11:57 IST

Mann ki Baat on Coronavirus crisis: देशव्यापी लॉकडाउन के बीच पीएम मोदी ने देशवासियों से 'मन की बात' की। उन्होंने क्या है हू-ब-हू पढ़ें और सुनें।

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तस्वीर साभार:&nbspTwitter
मन की बात में पीएम मोदी ने कोरोना वायरस को लेकर बात की
मुख्य बातें
  • पीएम मोदी ने रेडियो कार्यक्रम 'मन की बात' के जरिए देशवासियों से 64वीं बार बात की
  • पीएम मोदी ने कहा कि जब भी इतिहास में कोरोना संकट को लेकर चर्चा होगी तो भारत के लोगों के एक-दूसरे के साथ खड़े होने के बारे में दुनिया में बात जरूर की जाएगी
  • पीएम ने कहा कि हम भाग्यशाली हैं कि आज पूरा देश, देश का हर नागरिक, जन-जन इस लड़ाई का सिपाही है और लड़ाई का नेतृत्व कर रहा है

नई दिल्ली : कोरोना वायरस को रोकने लॉकडाउन की अवधि को तीन मई तक बढ़ा दिया गया है। इस बीच पीएम मोदी ने रेडियो कार्यक्रम 'मन की बात' के जरिए देशावसियों को आज (26 अप्रैल) संबोधित किया। मन की बात का यह 64वां एपिसोड है। पीएम मोदी का यह रेडियो कार्यक्रम हर महीने के अंतिम रविवार को होता है। 25 मार्च से देशभर में लॉकडाउन है। इसके बाद पीएम मोदी ने 29 मार्च के 'मन की बात' कार्यक्रम में कोरोना वायरस महामारी को लेकर बात की थी। उन्होंने लॉकडाउन को लेकर क्षमा मांगते हुए कहा था कि मैं आपकी दिक्कतें समझता हूं, आपकी परेशानी भी समझता हूं लेकिन भारत जैसे 130 करोड़ की आबादी वाले देश को, कोरोना के खिलाफ लड़ाई के लिए, ये कदम उठाए बिना कोई रास्ता नहीं था।

मेरे प्यारे देशवासियों, नमस्कार। 
आप सब lockdown में इस ‘मन की बात’ को सुन रहे हैं। इस ‘मन की बात’ के लिये आने वाले सुझाव, phone call की संख्या, सामान्य रूप से कई गुणा ज्यादा है। कई सारे विषयों को अपने अन्दर समेट, आपकी यह मन की बातें, मेरे तक, पहुँची हैं। मैंने कोशिश की है, कि, इनको ज्यादा-से-ज्यादा पढ़ पाऊँ, सुन पाऊँ। आपकी बातों से कई ऐसे पहलू जानने को मिले हैं, जिनपर, इस आपा-धापी में ध्यान ही नहीं जाता है। मेरा मन करता है, कि, युद्ध के बीच हो रही इस ‘मन की बात’ में, उन्हीं कुछ पहलुओं को, आप सभी देशवासियों के साथ बाटूँ।

साथियों, 
भारत की CORONA के खिलाफ़ लड़ाई सही मायने में  people driven है। भारत में CORONA के खिलाफ़ लड़ाई जनता लड़ रही है, आप लड़ रहे हैं, जनता के साथ मिलकर शासन, प्रशासन लड़ रहा है। भारत जैसा विशाल देश, जो विकास के लिए प्रयत्नशील है, ग़रीबी से निर्णायक लड़ाई लड़ रहा है। उसके पास, CORONA से लड़ने और जीतने का यही एक तरीका है। और, हम भाग्यशाली हैं कि, आज, पूरा देश, देश का हर नागरिक, जन-जन, इस लड़ाई का सिपाही है, लड़ाई का नेतृत्व कर रहा है। आप कहीं भी नज़र डालिये, आपको एहसास हो जायेगा कि भारत की लड़ाई people driven है। जब पूरा विश्व इस महामारी के संकट से जूझ रहा है। भविष्य में जब इसकी चर्चा       होगी, उसके तौर-तरीकों की चर्चा होगी, मुझे विश्वास है कि भारत की यह people driven लड़ाई, इसकी ज़रुर चर्चा होगी। पूरे देश में, गली-मोहल्लों में, जगह-जगह पर, आज लोग एक-दूसरे की सहायता के लिए आगे आये हैं। ग़रीबों के लिए खाने से लेकर, राशन की व्यवस्था हो, lockdown का पालन हो, अस्पतालों की व्यवस्था हो, medical equipment का देश में ही निर्माण हो - आज पूरा देश, एक लक्ष्य, एक दिशा, साथ-साथ चल रहा है। ताली, थाली, दीया, मोमबत्ती, इन सारी चीज़ों ने जो भावनाओं को जन्म दिया। जिस ज़ज्बे से देशवासियों ने, कुछ-न-कुछ करने की ठान ली - हर किसी को इन बातों ने प्रेरित किया है। शहर हो या गाँव, ऐसा लग रहा है, जैसे देश में एक बहुत बड़ा महायज्ञ चल रहा है, जिसमें, हर कोई अपना योगदान देने के लिये आतुर है। हमारे किसान भाई-बहनों को ही देखिये – एक तरफ, वो, इस महामारी के बीच अपने खेतों में दिन-रात मेहनत कर रहे हैं और इस बात की भी चिंता कर रहे हैं कि देश में कोई भी भूखा ना सोये। हर कोई, अपने सामर्थ्य के हिसाब से, इस लड़ाई को लड़ रहा है। कोई किराया माफ़ कर रहा है, तो कोई अपनी पूरी पेंशन या पुरस्कार में मिली राशि को, PM CARES  में जमा करा रहा है। कोई खेत की सारी सब्जियाँ दान दे रहा है, तो कोई, हर रोज़ सैकड़ों ग़रीबों को मुफ़्त भोजन करा रहा है। कोई mask बना रहा है, कहीं हमारे मजदूर भाई-बहन quarantine में रहते हुए, जिस school में रह रहे हैं, उसकी रंगाई-पुताई कर रहे हैं।

साथियों, 
दूसरों की मदद के लिए, आपके भीतर, ह्रदय के किसी कोने में, जो ये उमड़ता-घुमड़ता भाव है ना ! वही, वही CORONA के खिलाफ, भारत की इस लड़ाई को ताकत दे रहा है, वही, इस लड़ाई को सच्चे मायने में people driven बना रहा है और हमने देखा है, पिछले कुछ साल में, हमारे देश में, यह मिज़ाज बना है, निरंतर मज़बूत होता रहा है। चाहे करोड़ों लोगों का gas subsidy छोड़ना हो, लाखों senior citizen का railway subsidy छोड़ना हो, स्वच्छ भारत अभियान का नेतृत्व लेना हो, toilet बनाने हो - अनगिनत बातें ऐसी हैं। इन सारी बातों से पता चलता है - हम सबको - एक मन, एक मजबूत धागे से पिरो दिया है। एक होकर देश के लिए कुछ करने की प्रेरणा दी है।

मेरे प्यारे देशवासियों, 
मैं पूरी नम्रतापूर्वक, बहुत ही आदर के साथ, आज, 130 करोड़ देशवासियों की इस भावना को, सर झुका करके, नमन करता हूँ। आप, अपनी भावना के अनुरूप, देश के लिए अपनी रूचि के हिसाब से, अपने समय के अनुसार, कुछ कर सके, इसके लिए सरकार ने एक Digital Platform भी तैयार किया है। ये platform है – covidwarriors.gov.in। मैं दोबारा बोलता हूँ - covidwarriors.gov.in। सरकार ने इस platform के माध्यम से तमाम सामाजिक संस्थाओं के Volunteers, Civil Society के प्रतिनिधि और स्थानीय प्रशासन को एक-दूसरे से जोड़ दिया है। बहुत ही कम समय में, इस portal से सवा-करोड़ लोग जुड़ चुके हैं। इनमें Doctor, Nurses से लेकर हमारी ASHA, ANM बहनें, हमारे NCC, NSS के साथी, अलग-अलग field के तमाम professionals, उन्होंने, इस platform को, अपना platform बना लिया है। ये लोग स्थानीय स्तर पर crisis management plan बनाने वालों में और उसकी पूर्ति में भी बहुत मदद कर रहें हैं। आप भी covidwarriors.gov.in से जुड़कर, देश की सेवा कर सकते हैं, Covid Warrior बन सकते हैं।

साथियों, 
हर मुश्किल हालात, हर लड़ाई, कुछ-न-कुछ सबक देती है, कुछ-न-कुछ सिखा करके जाती है, सीख देती है। कुछ संभावनाओं के मार्ग बनाती है और कुछ नई मंजिलों की दिशा भी देती है। इस परिस्थिति में आप सब देशवासियों ने जो संकल्प शक्ति दिखाई है, उससे, भारत में एक नए बदलाव की शुरुआत भी हुई है। हमारे Business, हमारे दफ्तर, हमारे शिक्षण संस्थान, हमारा Medical Sector, हर कोई, तेज़ी से, नये तकनीकी बदलावों की तरफ भी बढ़ रहें हैं। Technology के front  पर तो वाकई ऐसा लग रहा है कि देश का हर innovator नई परिस्तिथियों के मुताबिक कुछ-न-कुछ नया निर्माण कर रहा है।

साथियों, 
देश जब एक team बन करके काम करता है, तब क्या कुछ होता है - ये हम अनुभव कर रहें हैं। आज केन्द्र सरकार हो, राज्य सरकार हो, इनका हर एक विभाग और संस्थान राहत के लिए मिल-जुल करके पूरी speed से काम कर रहे हैं।  हमारे Aviation Sector में काम कर रहे लोग हों, Railway कर्मचारी हों, ये दिन-रात मेहनत कर रहें हैं, ताकि, देशवासियों को कम-से-कम समस्या हो। आप में से शायद बहुत लोगों को मालूम होगा कि देश के हर हिस्से में दवाईयों को पहुँचाने के लिए ‘Lifeline Udan (लाइफ-लाइन उड़ान)’ नाम से एक विशेष अभियान चल रहा है। हमारे इन साथियों ने, इतने कम समय में, देश के भीतर ही, तीन लाख किलोमीटर की हवाई उड़ान भरी है और 500 टन से अधिक Medical सामग्री, देश के कोने-कोने में आप तक पहुँचाया है। इसी तरह, Railway के साथी, Lockdown में भी लगातार मेहनत कर रहें हैं, ताकि देश के आम लोगों को, जरुरी वस्तुओं की कमी न हो। इस काम के लिए भारतीय रेलवे करीब-करीब 60 से अधिक रेल मार्ग पर 100 से भी ज्यादा parcel train चला रही है। इसी तरह दवाओं की आपूर्ति में, हमारे डाक विभाग के लोग, बहुत अहम भूमिका निभा रहें हैं। हमारे ये सभी साथी, सच्चे अर्थ में, कोरोना के warrior ही हैं।

साथियों, 
‘प्रधानमंत्री ग़रीब कल्याण पैकेज़’ के तहत, ग़रीबों के Account में पैसे, सीधे transfer किए जा रहे हैं। ‘वृद्धावस्था पेंशन’ जारी की गई है। गरीबों को तीन महीने के मुफ़्त गैस सिलेंडर, राशन जैसी सुविधायें भी दी जा रही हैं। इन सब कामों में, सरकार के अलग-अलग विभागों के लोग, बैंकिंग सेक्टर के लोग, एक team की तरह दिन-रात काम कर रहे हैं। और मैं, हमारे देश की राज्य सरकारों की भी इस बात के लिए प्रशंसा करूँगा कि वो इस महामारी से निपटने में बहुत सक्रिय भूमिका निभा रही हैं। स्थानीय प्रशासन, राज्य सरकारें जो जिम्मेदारी निभा रही हैं, उसकी, कोरोना के खिलाफ़ लड़ाई में बहुत बड़ी भूमिका है। उनका ये परिश्रम बहुत प्रशंसनीय है।

मेरे प्यारे देशवासियों, 
देशभर से स्वास्थ्य सेवाओं से जुड़े लोगों ने, अभी हाल ही में जो अध्यादेश लाया गया है, उस पर अपना संतोष व्यक्त किया है।  इस अध्यादेश में, कोरोना warriors के साथ हिंसा, उत्पीड़न और उन्हें किसी रूप में चोट पहुचाने वालों के खिलाफ़ बेहद सख्त़ सज़ा का प्रावधान किया गया है। हमारे डॉक्टर, Nurses , para-medical staff, Community Health Workers और ऐसे सभी लोग, जो देश को ‘कोरोना-मुक्त’ बनाने में दिन-रात जुटे हुए हैं,उनकी रक्षा करने के लिए ये कदम बहुत ज़रुरी था।

मेरे प्यारे देशवासियों, 
हम सब अनुभव कर रहे हैं कि महामारी के खिलाफ़, इस लड़ाई के दौरान हमें अपने जीवन को, समाज को, हमारे आप-पास हो रही घटनाओं को, एक fresh नज़रिए से देखने का अवसर भी मिला है। समाज के नज़रिये में भी व्यापक बदलाव आया है। आज अपने जीवन से जुड़े हर व्यक्ति की अहमियत का हमें आभास हो रहा है। हमारे घरों में काम करने वाले लोग हों, हमारी ज़रूरतों को पूरा करने के लिए काम करने वाले हमारे सामान्य कामगार हों, पड़ोस की दुकानों में काम करने वाले लोग हों, इन सबकी कितनी बड़ी भूमिका है - हमें यह अनुभव हो रहा है। इसी तरह, ज़रुरी सेवाओं की delivery करने वाले लोग, मंडियों में काम करने वाले हमारे मज़दूर भाई-बहन, हमारे आस-पड़ोस के ऑटो-चालक, रिक्शा-चालक - आज हम अनुभव कर रहे हैं कि इन सब के बिना हमारा जीवन कितना मुश्किल हो सकता है।

आज कल Social Media में हम सबलोग लगातार देख रहे हैं कि  LOCKDOWN के दौरान, लोग अपने इन साथियों को न सिर्फ़ याद कर रहे है, उनकी ज़रूरतों का ध्यान रख रहे हैं, बल्कि उनके बारे में, बहुत सम्मान से लिख भी रहे हैं। आज, देश के हर कोने से ऐसी तस्वीरे आ रही हैं कि लोग सफाई-कर्मियों पर पुष्प-वर्षा कर रहे हैं। पहले, उनके काम को संभवतः आप भी कभी notice नहीं करते थे। डॉक्टर हों, सफाईकर्मी हों, अन्य सेवा करने वाले लोग हों - इतना ही नहीं, हमारी पुलिस-व्यवस्था को लेकर भी आम लोगों की सोच में काफ़ी बदलाव हुआ है। पहले पुलिस के विषय में सोचते ही नकारात्मकता के सिवाय, हमें कुछ नज़र नहीं आता था। हमारे पुलिसकर्मी आज ग़रीबों, ज़रुरतमंदो को खाना पंहुचा रहे हैं, दवा पंहुचा रहे हैं। जिस तरह से हर मदद के लिए पुलिस सामने आ रही है इससे POLICING का मानवीय और संवेदनशील पक्ष हमारे सामने उभरकर के आया है, हमारे मन को झकझोर दिया है, हमारे दिल को छू लिया है। एक ऐसा अवसर है जिसमें आम-लोग, पुलिस से भावात्मक तरीक़े से जुड़ रहे हैं। हमारे पुलिसकर्मियों ने, इसे जनता की सेवा के एक अवसर के रूप में लिया है और मुझे पूरा विश्वास है - इन घटनाओं से, आने वाले समय में, सच्चे अर्थ में, बहुत ही सकारात्मक बदलाव आ सकता है और हम सबने इस सकारात्मकता को कभी भी नकारात्मकता के रंग से रंगना नहीं है।

साथियों, 
हम अक्सर सुनते हैं – प्रकृति, विकृति और संस्कृति, इन शब्दों को एक साथ देखें और इसके पीछे के भाव को देखें तो आपको जीवन को समझने का भी एक नया द्वार खुलता हुआ दिखेगा। अगर, मानव- प्रकृति की चर्चा करें तो ‘ये मेरा है’, ‘मैं इसका उपयोग करता हूँ’ इसको और इस भावना को, बहुत स्वाभाविक माना जाता है। किसी को इसमें कोई ऐतराज़ नहीं होता। इसे हम ‘प्रकृति’ कह सकते हैं। लेकिन ‘जो मेरा नहीं है’, ‘जिस पर मेरा हक़ नहीं है’ उसे मैं दूसरे से छीन लेता हूँ, उसे छीनकर उपयोग में लाता हूँ तब हम इसे ‘विकृति’ कह सकते हैं। इन दोनों से परे, प्रकृति और विकृति से ऊपर, जब कोई संस्कारित-मन सोचता है या व्यवहार करता है तो हमें ‘संस्कृति’ नज़र आती है। जब कोई अपने हक़ की चीज़, अपनी मेहनत से कमाई चीज़, अपने लिए ज़रूरी चीज़, कम हो या अधिक, इसकी परवाह किये बिना, किसी व्यक्ति की ज़रूरत को देखते हुए, खुद की चिंता छोड़कर, अपने हक़ के हिस्से को बाँट करके किसी दूसरे की ज़रुरत पूरी करता है - वही तो ‘संस्कृति’ है। साथियो, जब कसौटी का काल होता है, तब इन गुणों का परीक्षण होता है|                     

आपने पिछले दिनों देखा होगा, कि, भारत ने अपने संस्कारो के अनुरूप, हमारी सोच के अनुरूप, हमारी संस्कृति का निर्वहन करते हुए कुछ फ़ैसले लिए हैं। संकट की इस घड़ी में, दुनिया के लिए भी, समृद्ध  देशों के लिए भी, दवाईयों का संकट बहुत ज्यादा रहा है। एक ऐसा समय है की अगर भारत दुनिया को दवाईयां न भी दे तो कोई भारत को दोषी नहीं मानता। हर देश समझ रहा है कि भारत के लिए भी उसकी प्राथमिकता अपने नागरिकों का जीवन बचाना है। लेकिन साथियो,  भारत ने, प्रकृति, विकृति की सोच से परे होकर फैसला लिया। भारत ने अपने संस्कृति के अनुरूप फैसला लिया। हमने भारत की आवश्यकताओं के लिए जो करना था, उसका प्रयास तो बढ़ाया ही, लेकिन, दुनिया-भर से आ रही मानवता की रक्षा की पुकार पर भी, पूरा-पूरा ध्यान दिया। हमने विश्व के हर जरूरतमंद तक दवाइयों को पहुँचाने का बीड़ा उठाया और मानवता के इस काम को करके दिखाया। आज जब मेरी अनेक देशों के राष्ट्राध्यक्षों से फ़ोन पर बात होती है तो वो भारत की जनता का आभार जरुर व्यक्त करते है। जब वो लोग कहते हैं  ‘Thank You India , Thank You People of India’  तो देश के लिए गर्व और बढ़ जाता है। इसी तरह इस समय दुनिया-भर में भारत के आयुर्वेद और योग के महत्व को भी लोग बड़े विशिष्ट-भाव से देख रहे हैं। Social Media पर देखिये, हर तरफ immunity बढ़ाने के लिए, किस तरह से, भारत के आयुर्वेद और योग की चर्चा हो रही है। कोरोना की दृष्टि से, आयुष मंत्रालय ने immunity बढ़ाने के लिए जो protocol दिया था, मुझे विश्वास है कि आप लोग, इसका प्रयोग, जरुर कर रहे होंगे। गर्म पानी, काढ़ा और जो अन्य दिशा-निर्देश, आयुष मंत्रालय ने जारी किये हैं, वो, आप अपनी दिनचर्या में शामिल करेगें तो आपको बहुत लाभ होगा।

 साथियों, 
वैसे ये दुर्भाग्य रहा है कि कई बार हम अपनी ही शक्तियाँ और समृद्ध परम्परा को पहचानने से इंकार कर देते हैं। लेकिन, जब विश्व का कोई दूसरा देश, evidence based research के आधार पर वही बात करता है। हमारा ही formula हमें सिखाता है  तो हम उसे हाथों-हाथ ले लेते हैं। संभवत:, इसके पीछे एक बहुत बड़ा कारण - सैकड़ों वर्षों की हमारी गुलामी का कालखंड रहा है। इस वजह से कभी-कभी, हमें, अपनी ही शक्ति पर विश्वास नहीं होता है। हमारा आत्म-विश्वास कम नज़र आता है। इसलिए, हम अपने देश की अच्छी बातों को, हमारे पारम्परिक सिद्दांतों को, evidence based research के आधार पर, आगे बढ़ाने के बजाय उसे छोड़ देते हैं, उसे, हीन समझने लगते हैं। भारत की युवा-पीढ़ी को, अब इस चुनौती को स्वीकार करना होगा। जैसे, विश्व ने योग को सहर्ष स्वीकार किया है, वैसे ही, हजारों वर्षों पुराने, हमारे आयुर्वेद के सिद्दांतों को भी विश्व अवश्य स्वीकार करेगा। हाँ! इसके लिए युवा-पीढ़ी को संकल्प लेना होगा और दुनिया जिस भाषा में समझती है उस वैज्ञानिक भाषा में हमें समझाना होगा, कुछ करके दिखाना होगा।

साथियों,
 वैसे covid-19 के कारण कई सकारात्मक बदलाव, हमारे काम करने के तरीके, हमारी जीवन-शैली और हमारी आदतों में भी स्वाभाविक रूप से अपनी जगह बना रहे हैं। आपने सबने भी महसूस किया होगा, इस संकट ने, कैसे अलग-अलग विषयों पर, हमारी समझ और हमारी चेतना को जागृत किया है। जो असर, हमें अपने आस-पास देखने को मिल रहे हैं, इनमें सबसे पहला है – mask पहनना और अपने चेहरे को ढ़ककर रखना। कोरोना की वजह से, बदलते हुए हालत में, mask भी, हमारे जीवन का हिस्सा बन रहा है। वैसे, हमें इसकी भी आदत कभी नहीं रही कि हमारे आस-पास के बहुत सारे लोग mask में दिखें, लेकिन, अब हो यही रहा है। हाँ! इसका ये मतलब नहीं है, जो mask लगाते हैं वे सभी बीमार हैं। और, जब मैं  mask की बात करता हूँ, तो, मुझे पुरानी बात याद आती हैं। आप सबको भी याद होगा। एक जमाना था, कि, हमारे देश के कई ऐसे इलाके होते थे, कि, वहाँ अगर कोई नागरिक फल खरीदता हुआ दिखता था तो आस-पड़ोस के लोग उसको जरुर पूछते थे – क्या घर में कोई बीमार है? यानी, फल – मतलब, बीमारी में ही खाया जाता है - ऐसी एक धारणा बनी हुई थी। हालाँकि, समय बदला और ये धारणा भी बदली। वैसे ही mask को लेकर भी धारणा अब बदलने वाली ही है। आप देखियेगा, mask, अब सभ्य-समाज का प्रतीक बन जायेगा। अगर, बीमारी से खुद को बचना है, और, दूसरों को भी बचाना है, तो, आपको mask लगाना पड़ेगा, और, मेरा तो simple सुझाव रहता है – गमछा, मुहँ ढ़कना है।

साथियो, हमारे समाज में एक और बड़ी जागरूकता ये आयी है कि अब सभी लोग ये समझ रहे हैं कि सार्वजनिक स्थानों पर थूकने के क्या नुकसान हो सकते हैं। यहाँ-वहाँ, कहीं पर भी थूक देना, गलत आदतों का हिस्सा बना हुआ था। ये स्वच्छता और स्वास्थ्य को गंभीर चुनौती भी देता था। वैसे एक तरह से देखें तो हम हमेशा से ही इस समस्या को जानते रहें हैं, लेकिन, ये समस्या, समाज से समाप्त होने का नाम ही नहीं ले रही थी - अब वो समय आ गया है, कि इस बुरी आदत को, हमेशा-हमेशा के लिए ख़त्म कर दिया जाए। कहते भी हैं कि “better late than never”। तो, देर भले ही हो गई हो, लेकिन, अब, ये थूकने की आदत छोड़ देनी चाहिए। ये बातें जहाँ basic hygiene का स्तर बढ़ाएंगी, वहीं, कोरोना संक्रमण को फैलने से रोकने में भी मदद करेगी।            

मेरे प्यारे देशवासियों, 
ये सुखद संयोग ही है, कि, आज जब आपसे मैं ‘मन की बात’ कर रहा हूँ तो अक्षय-तृतीया का पवित्र पर्व भी है। साथियो, ‘क्षय’ का अर्थ होता है विनाश लेकिन जो कभी नष्ट नहीं हो, जो कभी समाप्त नहीं हो वो ‘अक्षय’ है। अपने घरों में हम सब इस पर्व को हर साल मनाते हैं लेकिन इस साल हमारे लिए इसका विशेष महत्व है। आज के कठिन समय में यह एक ऐसा दिन है जो हमें याद दिलाता है कि हमारी आत्मा, हमारी भावना, ‘अक्षय’ है। यह दिन हमें याद दिलाता है कि चाहे कितनी भी कठिनाइयाँ रास्ता रोकें, चाहे कितनी भी आपदाएं आएं, चाहे कितनी भी बीमारियोँ का सामना करना पड़े - इनसे लड़ने और जूझने की मानवीय भावनाएं अक्षय है। माना जाता है कि यही वो दिन है जिस दिन भगवान श्रीकृष्ण और भगवान सूर्यदेव के आशीर्वाद से पांडवों को अक्षय-पात्र मिला था। अक्षय-पात्र यानि एक ऐसा बर्तन जिसमें भोजन कभी समाप्त नही होता है। हमारे अन्नदाता किसान हर परिस्थिति में देश के लिए, हम सब के लिए, इसी भावना से परिश्रम करते हैं। इन्हीं के परिश्रम से, आज हम सबके लिए, गरीबों के लिए, देश के पास अक्षय अन्न-भण्डार है। इस अक्षय-तृतीया पर हमें अपने पर्यावरण, जंगल, नदियाँ और पूरे Ecosystem के संरक्षण के बारे में भी सोचना चाहिए, जो, हमारे जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। अगर हम ‘अक्षय’ रहना चाहते हैं तो हमें पहले यह सुनिश्चित करना होगा कि हमारी धरती अक्षय रहे।

क्या आप जानते हैं कि अक्षय-तृतीया का यह पर्व, दान की शक्ति यानि Power of Giving का भी एक अवसर होता है! हम हृदय की भावना से जो कुछ भी देते हैं, वास्तव में महत्व उसी का होता है। यह बात महत्वपूर्ण नहीं है कि हम क्या देते हैं और कितना देते हैं। संकट के इस दौर में हमारा छोटा-सा प्रयास हमारे आस–पास के बहुत से लोगों के लिए बहुत बड़ा सम्बल बन सकता है। साथियो, जैन परंपरा में भी यह बहुत पवित्र दिन है क्योंकि पहले तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव के जीवन का यह एक महत्वपूर्ण दिन रहा है। ऐसे में जैन समाज इसे एक पर्व के रूप में मनाता है और इसलिए यह समझना आसान है कि क्यों इस दिन को लोग, किसी भी शुभ कार्य को प्रारंभ करना पसन्द करते हैं। चूँकि, आज कुछ नया शुरू करने का दिन है, तो, ऐसे में क्या हम सब मिलकर, अपने प्रयासों से, अपनी धरती को अक्षय और अविनाशी बनाने का संकल्प ले सकते हैं ? साथियो, आज भगवान बसवेश्वर जी की भी जयन्ती है। ये मेरा सौभाग्य रहा है कि मुझे भगवान बसवेश्वर की स्मृतियाँ और उनके सन्देश से बार–बार जुड़ने का, सीखने का, अवसर मिला है। देश और दुनिया में भगवान बसवेश्वर के सभी अनुयायियों को उनकी जयन्ती पर बहुत–बहुत शुभकामनाएँ।

साथियों, 
रमज़ान का भी पवित्र महीना शुरू हो चुका है। जब पिछली बार रमज़ान मनाया गया था तो किसी ने सोचा भी नहीं था कि इस बार रमज़ान में इतनी बड़ी मुसीबतों का भी सामना करना पड़ेगा। लेकिन, अब जब पूरे विश्व में यह मुसीबत आ ही गई है तो हमारे सामने अवसर है इस रमज़ान को संयम, सद्भावना, संवेदनशीलता और सेवा-भाव का प्रतीक बनाएं। इस बार हम, पहले से ज्यादा इबादत करें ताकि ईद आने से पहले दुनिया कोरोना से मुक्त हो जाये और हम पहले की तरह उमंग और उत्साह के साथ ईद मनायें। मुझे विश्वास है कि रमज़ान के इन दिनों में स्थानीय प्रशासन के दिशा-निर्देशों का पालन करते हुए कोरोना के खिलाफ़ चल रही इस लड़ाई को हम और मज़बूत करेंगे। सड़कों पर, बाज़ारों में, मोहल्लों में, physical distancing के नियमों का पालन अभी बहुत आवश्यक है। मैं, आज उन सभी Community leaders के प्रति भी आभार प्रकट करता हूँ जो                  दो गज दूरी और घर से बाहर नहीं निकलने को लेकर लोगों को जागरूक कर रहे हैं। वाक़ई कोरोना ने इस बार भारत समेत, दुनिया-भर में त्योहारों को मनाने का स्वरुप ही बदल दिया है, रंग-रूप बदल दिए हैं। अभी पिछले दिनों ही, हमारे यहाँ भी, बिहू, बैसाखी, पुथंडू, विशू, ओड़िया New Year ऐसे अनेक त्योहार आये। हमने देखा कि लोगों ने कैसे इन त्योहारों को घर में रहकर, और बड़ी सादगी के साथ और समाज के प्रति शुभचिंतन के साथ त्योहारों को मनाया। आमतौर पर, वे इन त्योहारों को अपने दोस्तों और परिवारों के साथ पूरे उत्साह और उमंग के साथ मनाते थे। घर के बाहर निकलकर अपनी ख़ुशी साझा करते थे। लेकिन इस बार, हर किसी नें संयम बरता। लॉकडाउन के नियमों का पालन किया। हमने देखा है कि इस बार हमारे ईसाई दोस्तों ने ‘ईस्टर(Easter)’ भी घर पर ही मनाया है। अपने समाज, अपने देश के प्रति ये ज़िम्मेदारी निभाना आज की बहुत बड़ी ज़रूरत है। तभी हम कोरोना के फैलाव को रोक पाने में सफल होंगे। कोरोना जैसी वैश्विक-महामारी को परास्त कर पाएँगे|
 
मेरे प्यारे देशवासियों, 
इस वैश्विक-महामारी के संकट के बीच आपके परिवार के एक सदस्य के नाते , और आप सब भी मेरे ही परिवार-जन हैं, तब कुछ संकेत करना,कुछ सुझाव देना, यह मेरा दायित्व भी बनता है। मेरे देशवासियों से, मैं आपसे, आग्रह करूँगा – हम कतई अति-आत्मविश्वास में न फंस जाएं, हम ऐसा विचार न पाल लें कि हमारे शहर में, हमारे गाँव में, हमारी गली में, हमारे दफ़्तर में, अभी तक कोरोना पहुंचा नहीं है, इसलिए अब पहुँचने वाला नहीं है। देखिये,ऐसी ग़लती कभी मत पालना। दुनिया का अनुभव हमें बहुत कुछ कह रहा है। और, हमारे यहाँ तो बार–बार कहा जाता है – ‘सावधानी हटी तो दुर्घटना घटी’ याद रखिये, हमारे पूर्वजों ने हमें इन सारे विषयों में बहुत अच्छा मार्ग-दर्शन किया है। हमारे पूर्वजों ने कहा है –

‘अग्नि: शेषम् ऋण: शेषम् ,
व्याधि: शेषम् तथैवच।
पुनः पुनः प्रवर्धेत,
तस्मात् शेषम् न कारयेत।|

अर्थात, हल्के में लेकर छोड़ दी गयी आग, कर्ज़ और बीमारी, मौक़ा पाते ही दोबारा बढ़कर ख़तरनाक हो जाती हैं। इसलिए इनका पूरी तरह उपचार बहुत आवश्यक होता है। इसलिए अति-उत्साह में, स्थानीय-स्तर पर, कहीं पर भी कोई लापरवाही नहीं होनी चाहिए। इसका हमेशा–हमेशा हमने ध्यान रखना ही होगा। और, मैं फिर एक बार कहूँगा – दो गज दूरी बनाए रखिये, खुद को स्वस्थ रखिये - “दो गज दूरी, बहुत है ज़रूरी”। आप सबके उत्तम स्वास्थ्य की कामना करते हुए, मैं मेरी बात को समाप्त करता हूँ। अगली ‘मन की बात’ के समय जब मिलें तब, इस वैश्विक-महामारी से कुछ मुक्ति की ख़बरें दुनिया भर से आएं, मानव-जात इन मुसीबतों से बाहर आए – इसी प्रार्थना के साथ आप सबका बहुत-बहुत धन्यवाद। (इनपुट-पीआईबी)

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