- उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद में स्थित गुरूद्वारे ने ऑक्सीजन लंगर शुरू कर 14 हजार से ज्यादा लोगों की जान बचाई।
- अस्पताल पहुंचाने के लिए जब एंबुलेंस का किराया मनामने ढंग से लिया जा रहा था, उस वक्त छत्तीसगढ़ के रविंद्र ने कार को एंबुलेंस में बदलकर मुफ्त सेवा दी।
- संक्रमण के डर से जब रिश्तेदारों ने साथ छोड़ दिया तो दिल्ली के राघव मंडल सहारा बने और डेढ़ महीने तक सैकड़ों परिवारों को मुफ्त में खाना पहुंचाते रहे।
नई दिल्ली: साल 2021 भारतीयों के लिए कोरोना की दूसरी लहर की ऐसी त्रासदी लेकर आया, जिसकी कल्पना किसी ने भी नहीं की थी। लहर के दौरान हमने देखा कैसे लोग तेजी से संक्रमित हो रहे थे और ऑक्सीन और अस्पतालों में बेड के लिए दर-दर भटक रहे थे। उस समय हमें ऐसे रियल नायक मिले, जो हमारे बीच से ही निकले। इन लोगों को न तो किसी संक्रमण का डर था और न ही अपनी जमा पूंजी खत्म होने का डर। उनका एक ही मकसद था "मानवता की सेवा"। संकट में जिस तरह ये लोगों के काम आए, उससे यह हजारों लोगों की नजर में मसीहा और देवदूत से कम नहीं थे। स्वतंत्रता दिवस के मौके पर हम ऐसे ही रियल नायकों के बारे में बता रहे हैं...
ऑक्सीजन लंगर (गाजियाबाद स्थित गुरद्वारा)
गाजियाबाद के इंदिरापुरम में स्थित गुरूद्वारा श्री गुरू सिंह सभा ने खालसा हेल्प इंटरनेशल के साथ मिलकर ऑक्सीजन लंगर शुरु किया था। मकसद यही था कि जो भी उनके पास आए, उसे ऑक्सीजन कमी नहीं होने पाए। उस समय हालात ऐसे हो गए थे। लोग गाड़ियों में बैठकर ऑक्सीजन ले रहे थे। खालसा हेल्प इंटरनेशनल के फाउंडर गुरप्रीत सिंह टाइम्स नाउ नवभारत डिजिटल से उस दौर को याद करते हुए कहते हैं "यह सफर, एक महिला के हमारे पास पहुंचने से शुरू हुआ, जब वह हमारी पास आईं तो उनका ऑक्सीजन लेवल 55 था। उन्हें हमने गाड़ी में ही ऑक्सीजन दिया गया तो उनका लेवल 90 पहुंच गया। उस वीडियो को सोशल माीडिया पर डालते ही लोगों की लाइन लगनी शुरू हो गई। हमने उस दौर में 28 दिन तक लोगों को बिना कोई पैसे लिए ऑक्सीजन की आपूर्ति कराई। इस दौरान 14 हजार मरीजों को ऑक्सीजन दिलाई। जिनका ऑक्सीजन लेवल 50 से भी कम था। " इस दौरान हमने 2000 सिलेंडर की व्यवस्था की, इसके लिए आस-पास के इलाकों के साथ-साथ हिसार, हरिद्वार, बद्दी, जयपुर, अमृतसर आदि शहरों से भी ऑक्सीजन मंगवाई। कई ऑक्सीजन संयंत्रों के मालिकों को जब पता चला कि हम इलाज मुफ्त में करा रहे हैं, तो उन्होंने भी हमसे पैसे नहीं लिए।
इसके अलावा हमने सीटी स्कैन भी मुफ्त में कराना शुरू कर दिया। उत्तर प्रदेश सरकार ने हमें एक अस्पताल में अस्थायी रुप से जगह दी। वहां पर हमने 485 मरीजों का अपने डॉक्टरों और विशेषज्ञों की टीम से मुफ्त में इलाज किया और और वह ठीक होकर अपने घर गए। उस दौरान हमनें 1500-2000 लोगों का सीटी स्कैन भी मुफ्त में कराया। साथ ही फ्री में एबुलेंस सेवा भी दी। अब हम इंदिरापुम में एक अस्पताल बना रहे हैं। जहां पर मरीजों का मुफ्त में इलाज किया जाएगा। जहां एंबुलेस की सेवा भी मुफ्त में मिलेगी। जहां तक फंडिंग की बात है तो लोगों से हमें काफी समर्थन मिल रहा है। ऐसे में फंड की कोई समस्या नहीं है।
कार को बना दिया एंबुलेस
छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर के रहने वाले रविंद्र सिंह क्षत्री ने अपने दोस्त के साथ मिलकर शहर में लोगों की दिक्कतों को देखते हुए, कार को ही एंबुलेंस में ही बदल दिया। वह टाइम्स नाउ नवभारत से उस दौर को साझा करते हुए कहते है "लॉकडाउन लगने के अगले दिन ही 40-50 लोगों के फोन अस्पताल में बेड के लिए आने लगे। शहर की हालत देखकर हम समझ नहीं पा रहे थे कि क्या करें। हमें यह समझ में आया कि लोगों को अस्पताल पहुंचने में ही दिक्कत हो रही थी। क्योंकि मौका का फायदा उठाकर 200-400 मीटर की दूरी पर छोड़ने के लिए लोगों से 4000-6000 रुपये मांग रहे थे। पहले तो हमने सोचा कि एंबुलेस किराए पर लेकर लोगों को अस्पताल पहुचाएं, लेकिन वह भी नहीं मिल रही थी। ऐसे में मेरे एक दोस्त ने अपनी एक कार दे दी। उसी को हमने एंबुलेस में परिवर्तित किया और लोगों को मु्फ्त में अस्पताल पहुंचाने का काम शुरू किया। धीरे-धीरे हमने 8 कारों को एंबुलेंस में परिवर्तित कर दिया। हमारे इस काम में आईआईटी भिलाई ने भी अपनी एंबुलेंस, हमें इस काम के लिए दे दी। इस दौरान हमने 300-400 मरीजों को अपनी सेवाएं दी। हमने क्राउड फंडिंग के जरिए 15 लाख रुपये जुटाए हैं और अत्याधुनिक सुविधाओं वाली एंबुलेंस Yr तैयार कर रहे हैं। इसके तहत हम न्यूनतम खर्च पर एंबुलेंस सेवाएं देंगे। जबकि गरीब तबके को मुफ्त में एंबुलेंस सेवा देंगे।
44 दिनों तक मुफ्त में खिलाया खाना
दिल्ली के रहने वाले राघव पाल मंडल कोरोना की दूसरी लहर के दौरान 44 दिनों तक लोगों को मुफ्त में खाना खिलाया। इसके तहत हर रोज दो टाइम मिलाकर 700-800 लोगों को खाना पहुंचाया। इसके अलावा हमने 15 दिनों तक 2700 लोगों को राशन पहुंचाया। इसके लिए मेरे साथ 50-60 वॉलंटियर्स जुड़े थे। जिनके जरिए हम लोगों ने अपने स्तर पर खाने की व्यवस्था की थी। राघव कहते हैं " हमने होम आइसोलेशन में रह रहे लोगों को सर्विस देनी शुरू की थी और उन लोगों को खाने की जरूरत पड़ती थी, लेकिन लॉकडाउन के वजह से उनके लिए रेस्टोरेंट से भी खाना नहीं पहुंच पा रहा था। कई लोगों से तो रिश्तेदारों ने भी दूरी बना ली थी। वह कोरोना से पीड़ित होने के वजह से वह खाना भी नहीं बना पर रहे थे। उनकी जरूरत को देखते हुए हमने यह काम शुरू किया। और करीब डेढ़ महीने तक खाना पहुंचाया।
एसयूवी बेचकर पहुंचाया ऑक्सीजन सिलेंडर
मुंबई के शाहनवाज शेख ने जब कोरोना की पहली लहर के दौरान अपने दोस्त की बहन को ईलाज के बिना तड़प कर मरते देखा तो उसके बाद उनकी दुनिया ही बदल गई। उन्होंने उस वक्त ही यह सोच लिया कि लोगों को ऑक्सीजन उपलब्ध कराएंगे। और उसके बाद से पहली लहर के दौरान उन्होंने 5 हजार लोगों को और दूसरी लहर के दौरान 3 हजार लोगों को मुफ्त में ऑक्सीजन पहुंचाया। पेशे से बिजनेसमैन शाहनवाज को जब पैसे की किल्लत हुई तो उन्होंने 22 लाख की एसयूवी गाड़ी तक बेच डाली। शाहनवाज की इस पहल के चलते लोग उन्हें "ऑक्सीजन मैन" कहने लगे हैं। वह कहते हैं भारत सरकार ने मेरा कहानी को शेयर किया है। कोराना के दौरान हर रोज 500-600 कॉल आती थी। जब ऑक्सीजन की किल्ल्त होने लगी तो हमें 100-100 किलोमीटर जाकर ऑक्सीजन की व्यवस्था करनी पड़ी। हमारी टीम में 20 लोग हैं। अब हम यूनिटी एंड डिग्निटी फाउंडेशन के जरिए इस अभियान को चला रहे हैं। इसके तहत सिलाई स्कूल शुरु किया है। जिसमें महिलाओं को मुफ्त में सिलाई का हुनर सिखाएंगे। हमारा फोकस महिला सशक्तीकरण पर है।