- गाजियाबाद के मुरादनगर में श्मशान घाट पर छत ढहने से 25 लोगों की मौत
- श्मशान घाट की छत गिरने के मामले में फरार ठेकेदार गिरफ्तार
- आरोपियों के खिलाफ रासुका के तहत कार्रवाई करने के निर्देश
गाजियाबाद: उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद के मुरादनगर में 3 जनवरी को बेहद दर्दनाक हादसा हुआ। यहां एक श्मशान की छत गिर जाने से 25 लोगों की मौत हो गई। इस हादसे में 20 लोग घायल भी हुए। दरअसल, लोग एक शव के अंतिम संस्कार में शामिल होने आए थे, तभी भारी बारिश के बीच सभी एक गलियारे की छत के नीचे जाकर खड़े हो गए और तभी छत गिर गई।
हादसे के बाद भयानक मंजर सामने आया। कई लोग मलबे में दबे रहे और उनकी सांसें अटकी रहीं। किसी का पूरा शरीर मलबे में था तो किसी का हाथ, तो किसी का पैर मलबे में फंसा था। मलबे से निकले कई लोगों ने अपनी आपबीती सुनाई। मलबे से निकले लोगों की बातों से लगा कि वो मौत को करीब से देखकर आए हैं।
लोगों ने सुनाई आपबीती
'अमर उजाला' की खबर के अनुसार एक शख्स ने बताया, 'जब छत गिरी तो मैं समझ नहीं पाया कि क्या हुआ है। मेरा आधा शरीर मलबे के बड़े टुकड़ों के बीच फंसा था। मलबे में दबे हाथ-पैर और पसली में भयंकर दर्द हो रहा था। गनीमत रही कि सिर मलबे के बाहर था। दीवार तोड़कर एक जेसीबी अंदर घुसी तो उम्मीद जगी कि शायद अब बच जाऊंगा। जेसीबी ने काम शुरू किया तो मलबा भरभराकर गिरने लगा। ये सोचकर दिल कांप उठा कि कहीं जेसीबी कोई टुकड़ा उठाए और वो मेरे ऊपर न गिर जाए। लगा कि एक बार तो बच गया, अब दूसरी बार मौत से सामना हो रहा है। दो घंटे बाद मलबे से बाहर निकाला गया तो दोनों पैर झूल गए थे। एक शख्स ने बताया कि मलबा गिरने के बाज इतना भी समय नहीं मिला कि कोई दाएं-बाएं हो सके। जैसे ही छत गिरी, उसके मलबे में मैं पूरी तरह दब गया।
इस मामले में फरार ठेकेदार को गिरफ्तार कर लिया गया। गाजियाबाद पुलिस ने सोमवार को मुरादनगर नगर पालिका की कार्यकारी अधिकारी निहारिका सिंह, जूनियर इंजीनियर चंद्र पाल और सुपरवाइजर आशीष को गिरफ्तार किया था। ये सभी इमारत निर्माण के लिए निविदा प्रक्रिया में शामिल थे। उन्हें 14 दिन के लिए न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया है।
सरकार को मानवाधिकार आयोग का नोटिस
वहीं राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने इस घटना के बाद उत्तर प्रदेश सरकार और राज्य के पुलिस महानिदेशक को नोटिस भेजा है। नोटिस जारी करते हुए आयोग ने यह भी कहा कि ऐसा लगता है कि ठेकेदार और संबंधित विभाग ने लापरवाही से काम किया जिससे कई लोगों के जीवन जीने के अधिकार का हनन हुआ। मानवाधिकार आयोग ने उप्र सरकार के मुख्य सचिव और पुलिस महानिदेश को नोटिस भेजकर कहा है कि इस मामले में चार सप्ताह के भीतर विस्तृत रिपोर्ट दी जाए।