नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जस्टिस मार्कंडेय काटजू ने दिल्ली के शाहीन बाग में नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) के खिलाफ जारी प्रदर्शन को लेकर पिछले दिनों कहा था कि इसने अनजाने ही सही दिल्ली विधानसभा चुनाव में बीजेपी को फायदा पहुंचाने का काम किया है, क्योंकि देश की 80 प्रतिशत आबादी सांप्रदायिक और सामंती सोच की है, चाहे वे हिन्दू हों या मुसलमान। अब एक बार फिर उन्होंने देश के मुसलमानों से कहा है कि वे पैगम्बर मुहम्मद के रास्ते से भटककर शरिया, बुर्का, मदरसा और मौलानाओं के चंगुल में फंस गए हैं, जिनकी वजह से वे खुद का नुकसान कर रहे हैं।
फेसबुक और ट्विटर पर अपने पोस्ट में उन्होंने सच्चर कमेटी की रिपोर्ट का हवाला देते हुए लिखा है कि देश के अधिकांश मुसलमान गरीब और पिछड़े हैं, जिसकी वजह यह है कि वे आंख बंद कर शरिया, बुर्का, मदरसा और मौलानाओं का अनुपालन करते हैं। लेकिन वास्तव में ये उन्हें कमजोर बना रहे हैं। उन्होंने सवालिया लहजे में कहा, 'क्या पैगम्बर मुहम्मद के वक्त में मदरसे और मौलाना हुआ करते थे?' उन्होंने कहा कि कुछ निहित स्वार्थी लोगों के कारण ये अस्तित्व में आए, जो लोगों को 'मूर्ख' बनाए रखना चाहते हैं, ताकि उनका शोषण किया जा सके।
देश के मुसलमानों से उन्होंने कहा, 'आप महान पैगम्बर के दिखाए रास्ते से भटक गए हैं, जिनका कहना था कि ज्ञान के लिए आपको अगर चीन भी जाना पड़े तो जाएं। इसके बदले आज आपको बताया जा रहा है कि किसी भी जानकारी के लिए मौलाना के पास जाएं, मदरसे जाएं। लेकिन वहां आपकी सोचने समझने की क्षमता को बेतुकी व अवैज्ञानिक बातों से कुंद कर दिया जाता है।'
जस्टिस (सेवानिवृत्त) काटजू ने तुर्की के महान सुधारक मुस्तफा कमाल पाशा का जिक्र करते हुए कहा कि उन्होंने प्रगति का जो रास्ता दिखाया था, उसे लोगों ने नकार दिया और सामंती कानूनों, शरिया, बुर्का, मदरसा जैसी रूढ़िवादिता को खत्म करने वाले कमालपाशा के हर कदम को गैर-इस्लामिक करार देते हुए उनकी आलोचना शुरू कर दी।
उन्होंने यह भी कहा कि उनके पोस्ट भले ही किसी समुदाय के लोगों को पसंद न आएं, पर वह इसी तरह अपनी बात रखते रहेंगे। वह उन पर होने वाले जुल्म के खिलाफ बोलेंगे, जैसा कि उनका रिकॉर्ड भी है, पर उनकी सामंती सोच और रूढ़िवादी रीतियों के खिलाफ भी अवाज उठाते रहेंगे। उन्होंने कहा, 'मैं ऐसा आपकी ही बेहतरी के लिए करता रहूंगा, भले ही बदले में मुझे आप भला-बुरा कहते रहें।'
अपने लंबे पोस्ट में उन्होंने यह भी कहा कि उन्हें न तो लोकप्रियता चाहिए और न ही वोट। वह इसकी परवाह भी नहीं करते कि उनकी बात से कोई खुश होता है या नाखुश। उन्होंने साफ कहा, 'अगर आपको खुश होना है तो ओवैसी या जाकिर नाईक या कुछ मौलाना के पास जाएं, जो अपने शब्दों को चाशनी में लपेटकर आपको खुश करेंगे... मैं आपको खुश करने के लिए 2+2= 3 या 5 नहीं कहूंगा, बल्कि 4 ही कहूंगा, जो होता है।'