- पश्चिम बंगाल चुनाव में नंदीग्राम की लड़ाई दिलचस्प हो गई है
- यहां ममता बनर्जी का मुकाबला सुवेंदु अधिकारी से है
- सुवेंदु अधिकारी हाल ही में टीएमसी से बीजेपी में गए हैं
पश्चिम बंगाल चुनाव में इस बार नंदीग्राम चर्चा का विषय बना हुआ है। ऐसा इसलिए है क्योंकि यहां मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का मुकाबला उनके ही करीबी रहे और अब बीजेपी के हो चुके सुवेंदु अधिकारी से है। नंदीग्राम को अधिकारी का गढ़ कहा जाता है, ऐसे में सवाल है कि क्या ममता को यहां उनसे कड़ी चुनौती मिलेगी या वो आसानी इस सीट को जीत जाएंगी। नंदीग्राम इसलिए भी चर्चा का विषय बना हुआ है, क्योंकि नंदीग्राम आंदोलन से तृणमूल कांग्रेस को सत्ता में पहुंचने में आसानी हुई।
नंदीग्राम आंदोलन की मदद से ममता बनर्जी ने 2011 में 34 साल के लेफ्ट के शासन को खत्म कर दिया था। नंदीग्राम को सुवेंदु अधिकारी के परिवार का गढ़ कहा जाता है। अधिकारी 2016 में यहां से टीएमसी के टिकट पर चुनाव जीते। अब ममता बनर्जी का उन्हीं सुवेंदु से यहां मुकाबला होना है।
नंदीग्राम हिंसा
पश्चिम बंगाल की कम्युनिस्ट सरकार द्वारा एक विशेष आर्थिक क्षेत्र (SEZ) के लिए भूमि अधिग्रहण करने में विफल परियोजना के बाद 2007 में नंदीग्राम में हिंसा हुई। सरकार ने सलीम ग्रूप को 'स्पेशल इकनॉमिक जोन' नीति के तहत नंदीग्राम में एक केमिकल हब की स्थापना करने की अनुमति प्रदान करने का फैसला किया था। ग्रामीणों ने इस फैसले का प्रतिरोध किया जिसके परिणामस्वरूप पुलिस के साथ उनकी मुठभेड़ हुई जिसमें 14 ग्रामीण मारे गए। पुलिस पर बर्बरता का आरोप लगा था। ममता बनर्जी और तृणमूल कांग्रेस पार्टी ने इस मुद्दे को खूब उठाया और उनके चुनाव अभियानों में मा माटी मानुष (माँ, मातृभूमि और लोग) नारे का इस्तेमाल हुआ। बाद में केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) ने गोलीबारी के लिए बुद्धदेव भट्टाचार्य सरकार को जिम्मेदार ठहराया।
सिंगूर और नंदीग्राम से मिली सत्ता
हाल ही में ममता बनर्जी ने कहा कि यदि पहले सिंगूर में भूमि अधिग्रहण विरोधी आंदोलन नहीं होता तो नंदीग्राम आंदोलन जोर नहीं पकड़ता। सिंगूर आंदोलन नंदीग्राम आंदोलन से कुछ महीने पहले हुआ था। मैंने दिसंबर 2006 में सिंगूर भूमि अधिग्रहण के खिलाफ अपनी 26 दिनों की भूख हड़ताल पूरी की थी। इसके बाद 2007 में नंदीग्राम आंदोलन हुआ था। सिंगूर आंदोलन ने नंदीग्राम आंदोलन को जरूरी ऊर्जा प्रदान की थी। गौरतलब है कि ये दोनों ही स्थान भूमि अधिग्रहण के खिलाफ राज्य में हुए आंदोलन का मुख्य केंद्र रहे थे और इस आंदोलन ने ममता को 2011 में मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंचाया था। अधिकारी अक्सर की खुद को भूमिपुत्र बताते हुए तृणमूल कांग्रेस प्रमुख पर पलटवार करते रहे हैं।